प्रयागराज (ब्यूरो)। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश में संचालित बालगृहों की खस्ताहाल स्थिति पर चिंता जताई है। कहा है कि बालगृहों में बच्चों को पौष्टिक आहार की जरूरत है। कोर्ट ने एक रिपोर्ट के हवाले से टिप्पणी की है कि बालगृहों की स्थिति जेलों से भी बदतर है। कमियों को तुरंत दूर करने के लिए सरकार को निर्देश देते हुए कोर्ट ने महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव से कहा है कि बालगृहों और उनमें बच्चों की संख्या बताएं तथा स्थिति में सुधार के लिए उठाए गए कदमों की भी जानकारी व्यक्तिगत हलफनामे में प्रकरण की अगली सुनवाई पर दें। यह आदेश चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस अजय भनोट की बेंच ने स्वत: संज्ञान लेते हुए कायम जनहित याचिका पर दिया है।
जस्टिस ने खुद किया था निरीक्षण
कोर्ट ने कहा कि जस्टिस अजय भनोट द्वारा किए गए बालगृहों के निरीक्षण में कई कमियों का पता चला है। किशोर न्याय और पाक्सो समिति द्वारा विभिन्न निर्देश जारी कर ऐसे बालगृहों को अन्यत्र स्थानांतरित करने के लिए तत्काल उपाय करने के लिए कहा गया है, जहां बच्चों की संख्या अधिक है और पर्याप्त सुविधाओं की कमी है। कोर्ट ने सरकार को खेल और बाहरी गतिविधियों की पर्याप्त सुविधाओं के साथ इन घरों को अधिक सुविधा संपन्न स्थान पर स्थानांतरित करने का निर्देश दिया है। बाल गृहों में तैनात कर्मचारी या पर्यवेक्षकों की कुशलता पर सवाल खड़े करते हुए कोर्ट ने कहा कि पर्यवेक्षक अथवा कर्मचारी पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं है। इससे बच्चों के व्यक्तित्व का पूरा विकास नहीं हो पा रहा है, उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। बच्चों के खाद्य पदार्थ सहित जीवन की अन्य आवश्यकताओं के लिए कई वर्षों से बजट आवंटन नहीं बढ़ाया गया है। इसका भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है। कोर्ट ने शैक्षिक सुविधाओं के विकास पर भी बल दिया है। कहा है कि बच्चों के प्रदर्शन पर सतत निगरानी रखने की जरूरत है, ताकि कमियों को पहचान कर उन्हें दूर किया जा सके।
शारीरिक गतिविधियां बढ़ाएं
कोर्ट ने बच्चों में भावनात्मक विकास और शारीरिक गतिविधियों पर ध्यान देने की आवश्यकता बताई है। कहा है कि यहां रहने वाले बच्चे परिवारों से दूर रहते हैं। लिहाजा, प्रोफेशनल संस्थाओं के परामर्श से परिवर्तनकारी वातावरण और गतिविधि प्रणाली विकसित करने की जरूरत है। कोर्ट ने औपचारिक शिक्षा प्रणाली विकसित करने की जरूरत बताई और व्यावसायिक प्रशिक्षण पर भी जोर दिया ताकि बाजार के नियोक्ताओं से इन बच्चों को जोड़ा जा सके। कहा है कि बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए वैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है और संवैधानिक न्यायालय द्वारा मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है। इसलिए प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी है कि बालगृहों में शिक्षा के अधिकार का पालन कराया जाए। बालगृह में रह रहे बच्चों को आसपास के प्रतिष्ठित स्कूलों में दाखिला दिलवाने का सुझाव कोर्ट ने दिया है। यह भी कहा है कि बच्चों की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उनके परिवारों की आय प्रमाणपत्र की आवश्यकता खत्म करने पर भी राज्य सरकार विचार करे।
यह संविधान का अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है। बालगृहों की स्थिति यह है कि वहां सूरज की रोशनी तक नहीं पहुंच रही। ताजी हवा नहीं मिल रही। खेल मैदान अथवा खुली जगह नहीं है। इस तरह का रहन-सहन बच्चों के सर्वांगीण विकास में बाधक है।
-इलाहाबाद हाई कोर्ट