प्रयागराज ब्यूरो । ओटीटी का प्लेटफॉर्म हो या फिर, सिनेमा का अथवा टेलीविजन का। यहां एक्टिंग का मौका तो भरपूर मिलता है लेकिन जो सैटिस्फैक्शन थियेटर से मिलता है, वह दूसरे किसी भी प्लेटफॉर्म में नहीं मिलता। थियेटर में ट्रेनिंग चाहे एक दिन की हो या फिर एक साल की, प्रजेंटेशन का टाइम आता है तो कोई टेक नहीं मिलता। डेट फिक्स है तो आपको हर दूसरे चैलेंज को अॅवायड करके अपने काम ही कंसंट्रेट करना होगा। यहां रीटेक से सीन को दुबारा लाइव करने की कोई गुंजाइश नहीं होती है। इसलिए यहां से एक्टर निकलते हैं स्टार नहीं। इसीलिए यहां पैशनेट लोग ही टिक पाते है, शार्टकट के जरिए सक्सेज हासिल करने की चाह रखने वाले लोग नहीं। यह बातें उन आर्टिस्ट्स से बातचीत के दौरान निकलकर सामने आयीं जो इन दिनो एनसीजेडसीसी में चल रही वर्कशाप में पार्टिसिपेट कर रहे हैं। दो मई से शुरू हुई इस वर्कशाप में देश के विभिन्न प्रांतों से कुल 40 सेलेक्टेड आर्टिस्ट को पार्ट करने का मौका मिल रहा है। इन्हें ट्रेनिंग देने के लिए एनसीजेडसीसी और नेशनल स्कूल ऑफ का टाइअप है। फाइनल लाइव प्रजेंटेशन 10 जून को होनी है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने कुछ कलाकारों से बातचीत की।
पैसा नहीं सुकून जरूर देता है थियेटर
वेबसिरीज फिसड्डी में एक्टर के तौर पर काम कर चुके अभिषेक गिरी मूल रूप से प्रयागराज के हैं लेकिन मुंबई के स्ट्रगल से वाकिब हैं। उन्हें एक्टिंग के लिए कई अवार्ड भी मिल चुके हैं। इसके बाद भी वह इस वर्कशाप में ट्रेनिंग ले रहे हैं। इस वर्कशाप में आना क्यों हुआ? इसके जवाब में अभिषेक ने कहा कि आप बेस्ट एक्टर थिएटर के रास्ते ही बन सकते हैं। मेरी भी इच्छा है कि बेस्ट एक्टर बनूं। स्टार बनने की चाहत नहीं है, इसलिए यहां हूं और सीख रहा हूं। मेरी इच्छा है कि युवाओं को एक्टिंग की बारीकियां बताऊं।
थियेटर में न पैसा है न स्कोप फिर इसे ही क्यों चुना?
इसके जवाब में अभिषेक का कहना है कि एक्टिंग फील्ड में कॅरियर देखने वाले आर्टिस्ट्स के लिए थिएटर एक बड़ा माध्यम है। इसमें युवाओं को सीधे इंट्री मिल जाती है। लाइव परफारमेंस का मौका मिलता है तो वे सीखते चले जात हैं। इसके जरिए वह कला प्रेमियों के दिलो दिमाग पर अपना प्रभाव जमाते हैं। इसी से उनके एक्टिंग कॅरियर की विंडो ओपन हो जाती है।
थियेटर और मूवी में एक्टिंग कितनी डिफरेंट है?
इसके जवाब में अभिषेक ने कहा कि स्क्रीन पर प्रजेंट किया जाने वाला कोई भी कंटेंट बिना एडिटिंग के नहीं जाता। मूवीज, वेबसिरीज और डेली सोप्स की शूटिंग के दौरान कई बार रीटेक लिये जाते हैं। यह मौका थिएटर नहीं देता। थिएटर अधिक सामुदायिक अनुभव होता है। इसलिए युवा थिएटर को महत्व देते हंै और इस फील्ड में करियर बनाने के लिए इसे सेलेक्ट करते हैं.
घर वालों का कितना सपोर्ट है इसमें
अभिषेक गिरी कहते हैं कि थिएटर के रास्ते ही मुझे अपना कॅरियर बनाना है। छह साल से थिएटर कर रहा हूं। मेरे पैरेंट्स मुझे पूरा सहयोग देते हैं। उनका सपना है कि वह मुझे एक दिन बड़े पर्दे पर एक्टिंग करते हुए देखें.
बचपन में देखा था सपना
वर्कशाप में शामिल हो रहे शुभेंदु कुमार ने कहा कि मैनें बचपन में ही मन बना लिया था थिएटर करुंगा। एक्टिंग फील्ड से आने वाले ग्लैमर से अनभिज्ञ नहीं हूं। इसका प्रभाव मेरे ऊपर था। इसीलिए अपने आप को पूरी तरह से इसी काम के लिए डेडीकेट कर दिया है.
नाम नहीं काम का जरिया है थियेटर
वर्कशाप का हिस्सा बन रहीं नेहा यादव की माता वर्किंग लेडी हैं। नेहा बताती हैं कि मां भी उन्हें इस फील्ड में कॅरियर बनाने में सपोर्ट कर रहे हैं। नेहा को चेस का भी शौक है। वह एसएमवी में चैस काम्पिटीशन में गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं। 2017 में उन्होंने थिएटर को अपने कॅरियर के लिए चुना और अपने को थियेटर के लिए डेडीकेट कर दिया। नेहा कहती हैं कि थिएटर अब सिर्फ नाम का नही काम का भी जरिया बना रहा है युवाओं के लिए। मंच पर लाइव एक्टिंग आपको हर दिया नया अनुभव देता है। आपको आडियंस का लाइव फीडबैक मिलता है इससे आपको हर दिन सीखने का मौका मिलता है। रंग मंच की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें संगीत, नृत्य, ललित कला, दृश्य कला सहित कला के अन्य सभी रुप समाहित होते हैं। इसीलिए इसे जी रहा हूं.
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