नर्सरी में लास्ट इयर एडमिशन लेने वाले बच्चों ने नहीं देखा स्कूल

ऑनलाइन पढ़ाई के चलते स्कूली दिनचर्या से भी रहे दूर

कोरोना महामारी के कारण लास्ट इयर से ही हर कोई परेशान रहा। हर क्षेत्र के लोग महामारी और लॉकडाउन के बाद सरकार की ओर से जारी पाबंदियों से प्रभावित हुआ। इसका असर उन नन्हे मासूमों पर भी पड़ा जिन्होंने लास्ट इयर स्कूल में एडमिशन तो लिया लेकिन जा नहीं सके। उनके जीवन में पूरे एक साल से कोई बदलाव नहीं हुआ। एडमिशन के बाद भी उन्हें अपना स्कूल देखने का मौका नहीं मिला। उनकी दिनचर्या पहले की तरह ही रही। अंतर सिर्फ इतना ही दिखा, कि जहां घर पर पैरेंट्स या बड़े उन्हें अक्षर का ज्ञान देते थे। वहीं मोबाइल व लैपटाप पर ऑनलाइन उन्हें स्कूल टीचर से ये जानकारी मिलने लगी। घरों में आखिर कैसे बीत रहा दिन ऐसे ही बच्चों के पैरेंट्स से दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट ने बातचीत की।

नहीं बन सका स्कूल यूनीफार्म

पहली बार स्कूल में दाखिला लेने के बाद बच्चों को नए स्कूल यूनीफार्म का बड़ा क्रेज होता है। ऐसे में उनके यूनीफार्म पहनकर स्कूल जाने का सपना पूरा नहीं हो सका। मौजूदा हाल को देखते हुए आगे भी कुछ महीनों तक संभावना नहीं के बराबर है। पैरेंट्स की माने तो लास्ट इयर जब एडमिशन हुआ, तो बच्चे बेहद खुश थे। उसके बाद से ही बुक्स और स्कूल यूनीफार्म, स्कूल बैग, पानी की बॉटल, टिफिन ये सारे सामान खरीदने की डिमांड भी करते रहे। लेकिन जब स्कूल जाना ही नहीं हुआ, तो ये सारी चीजें खरीदना भी फिजूलखर्ची ही लगी। इसी कारण काफी दिनों तक बच्चे नाराज भी रहे। लेकिन धीरे-धीरे ये डिमांड बंद हो गई। लेकिन आज भी बच्चे पूछते है कि स्कूल कब जाना हेागा। उनके इन सवालों का कोई जवाब नहीं है। क्योकि इस महामारी के कारण स्कूल कब खुलेंगे और बच्चे पहले की तरह स्कूल कब जा सकेंगे। ये कोई कह नहीं सकता है।

स्कूल में सीखते हैं अनुशासन

पैरेंट्स ने बताया कि नर्सरी में एडमिशन के पीछे सबसे बड़ा मकसद होता है कि बच्चे घर के माहौल से थोड़ हट कर स्कूल के माहौल में ढल सके। साथ ही स्कूल में उठने और बैठने का मैनर, क्लास का अनुशासन, समय की पाबंदी, पढ़ाई का तरीका ये सब सीख सके। कुल मिलाकर बात करें तो बच्चों के अंदर घर की सेफ जोन से हट कर बाहर की दुनिया को समझने की शुरुआत हो सके। साथ ही स्कूल में दूसरों बच्चों के साथ घुलने मिलने की सीख भी उनके अंदर डवलप हो सके।

लास्ट इयर बेटी का एडमिशन एसएमसी म्योराबाद में कराया था। लेकिन साल भर से वह स्कूल लाइफ की इंज्वाय नहीं कर सकी। जबकि छोटी क्लास में एडमिशन का मतलब है कि बच्चे स्कूल में रहना सीख सके। घर के सेफ जोन के बाहर की चीजों को समझ सके।

रंजीता गुप्ता

बेटी का एडमिशन जीएचएस में नर्सरी में कराया। बेटी उसके बाद से यूनीफार्म और बैग से लेकर सभी चीजों की डिमांड करने लगी। स्कूल कब जाएंगे, ये उसका शुरु के कुछ महीनों तक रोज का सवाल रहता था। लेकिन अब उसको लगने लगा है कि घर से ही पढ़ाई होती है।

प्रेरणा श्रीवास्तव

संक्रमण के चलते पिछले साल स्कूल बंद थे। यही कारण था कि बेटी का एडमिशन नहीं कराया। इस साल उम्मीद पर एडमिशन तो करा लिया लेकिन स्कूल खुलने की संभावना कम है।

अंकित टंडन

बेटी हर वक्त पूछती रहती है कि स्कूल कब से जाना है। लेकिन एक साल बाद भी स्कूल जाने की नौबत नहीं आई। अब घर में ही शिक्षा दे रही हूं।

नीतू