प्रयागराज (ब्यूरो)। डॉ। शुक्ला ने कहा कि भारत में प्राथमिकता आज भी सामान्य ड्रग सेंसेटिव टीबी की है। लेकिन ड्रग रजिस्टेंट टीबी जांच और उपचार में नए आयाम जुड़ रहे हैं। ड्रग रजिस्टेंट टीबी की जांच जहां पहले कइ्र सप्ताह में होती थी, वही अब यह 90 मिनट में संभव हो जाती है। इसके इलाज के लिए नई दवाओं का पचास साल बाद अविष्कार हुआ है।
बाजार में उपलब्ध हैं दवाएं
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ। एके तिवारी ने बताया कि ड्रग रजिस्टेंट टीबी की नई दवाएं सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध हैं। यह दवाए बाजार में नही मिलेंगी। एचआईवी संक्रमित व्यक्ति, गर्भवती महिला, बच्चों, शरणार्थी व निराश्रय व्यक्तियों में ड्रग रजिस्टेँट टीबी एक अलग चुनौती पेश करती है। टीबी की सभी दवाएं डॉट पद्धति से ली जानी चाहिए।
लगातार जारी है प्रयास
एएमए सचिव डॉ। आशुतोष गुप्ता ने कहा कि प्रधानमंत्री के द्वारा घोषित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु वर्ष 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने के प्रयास लगातार जारी है। एएमए अध्यक्ष इलेक्ट डॉ। सुबोध जैन ने दोनों वक्ताओं को स्मृति चिंह व चेयरपर्सन डॉ। आलोक चंद्रा, डॉ। जीएस सिन्हा और डॉ। आशुतोष गुप्ता को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। वैज्ञानिक सचिव डॉ। अनुभा श्रीवास्तव ने सेमिनार का संचालन किया। सचिव ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर डॉ। एमके मदनानी, डॉ। अशोक अग्रवाल, डॉ। प्रभाकर राय, डॉ। राजेश मौर्या, डॉ। आशा जायसवाल, डॉ। सुभाष वर्मा, डॉ। गौतम सेन, डॉ। अभिनव अग्रवाल, पीआरओ डॉ। अनूप चौहान आदि उपस्थित रहे।