विभिन्न इलाकों से लाए गये ताजिया और मेहंदी के फूल कर्बला में दफन
उमड़ा अकीदतमंदों का सैलाब, मजलिसों में हुआ मातम
ALLAHABAD: मोहर्रम की दसवीं तारीख को इमाम हुसैन और उनके जांबाज साथियों को विदाई दी गई। वेडनसडे को बड़ा व बुढ्डा ताजिया के अलावा मेहंदी और झूले के फूलों को चकिया स्थित कब्रिस्तान में दफन किया गया।
सुबह से पहुंचने लगे लोग
इमामबाड़ों से निकलने वाले ताजिया, मेहंदी और झूले आदि के फूलों को अकीदतमंदों ने परंपराओं के साथ कर्बला में दफन किया। चकिया स्थित कर्बला में सुबह से ही लोगों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था। इस दरमियान दरियाबाद-रानीमंडी आदि मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में मातमी मजलिसें मंजरे आम रहीं। अंजुमनों ने जंजीर, कमा और हाथों से मातम कर जंगे कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलि दी। निर्धारित समय पर बुढ्डा और बड़ा ताजिया के फूलों को भी दफनाया गया।
कुर्बानी के किस्से हुये बयान
नूरउल्ला रोड से बुढ्डा ताजिया और जानसेनगंज से बड़ा ताजिया के फूलों को ले जाया गया। अकबरपुर, निहालपुर, करेली, नूरउल्लारोड, चकिया, जानसेनगंज, दरियाबाद, रानीमंडी, बख्शीबाजार, गंगागंज आदि क्षेत्रों में मोहर्रम की नवीं तारीख से लोग पर्व की रस्मों रिवाज से जुड़ गये थे। शहादत के बयान में आलिमे दीन ने इमाम हुसैन और उनके साथियों की कुर्बानी के किस्से को बयान किया।
दिखी गंगा-जमुनी तहजीब
मोहर्रम की नवीं और दशहरा एक साथ होने से भले ही शासन-प्रशासन की सांसे थमी रहीं, लेकिन हिंदु-मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इस रात कौमी एकता की मिसाल कायम की। जहां एक तरफ दशहरा का आयोजन चरम पर था। वहीं मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में रतजगा चल रहा था। सड़कों पर जहां दशहरे की चौकियां निकल रहीं थीं। मुस्लिम समुदाय के लोग जुलूस और ताजिया की परंपराओं में जुटे रहे।
विभिन्न मार्गो पर उमड़ा हुजूम
कर्बला के शहीदों के फूलों को देखने के लिए सड़क के दोनों तरफ महिलाओं का हुजूम देखने को मिला। बड़ा ताजिया के फूल निरंजन सिनेमा, जानसेनगंज, नखास कोहना होते हुए कर्बला पहुंचे। वहीं बुढ्ढा ताजिया के फूल नूरउल्लारोड से मर्करी चौराहा, जीटी रोड होते हुए कर्बला पहुंचे। धार्मिक एवं स्वयंसेवी संस्थाओं ने जगह जगह लंगर का आयोजन किया। रास्तों में लाठियों के करतब में विभिन्न मोहल्लों के लोग शामिल हुए। ऊंट और घोड़े आदि पर बैठकर लोग जुलूस में शामिल हुए। ताजियों का बोसा लेने वालों में बड़ों के साथ बच्चों को भी शामिल किया गया। शाम को मगरिब की नमाज के बाद ताजियों के फूलों को कर्बला में दफना दिया गया। लोगों ने इमाम हुसैन और उनके परिवारवालों के लिए फातेहा पढ़ी।