प्रयागराज (ब्यूरो)। प्रिंसिपल मीट के दौरान अपने सवाल और उन पर प्रिंसिपल की राय लेते हुए अमृता विश्वविद्यापीठम एकेडमिक मैनेजर एवं काउंसलर डॉ। शौर्य कुटप्पा ने पूछा कि आखिर एक साल में क्या चुनौतियां फेस करनी पड़ी। इसके अलावा वह खुद के कॅरियर में चेंजेज के लिए कितने तैयार हैं। भविष्य की जरूरतें क्या हैं और इसके लिए खुद को कितना चेंज करना होगा। इस पर प्रिंसिपल ने अपने तरीके से बात रखी।
पिछले एक साल में टीचर्स ने कई नई चीजों को एडाप्ट किया। हालांकि इस दौरान कई तरह की चुनौतियों का भी सामना स्कूलों और उनके टीचर्स को करना पड़ा।
सुष्मिता कानूनगो
वर्तमान की चुनौतियां कहां है? और हमें कहां जाना है। इसको पता लगाने की जरूरत है। हमको बच्चों को पढऩे लायक बनाना है। उसके बाद वह खुद से पढऩे लगेंगे।
बांके बिहारी पाण्डेय
कोराना काल के दौरान टीचर्स को आन लाइन और आफ लाइन दोनों क्लासेस पर एक साथ नजर बनाए रखनी पड़ती थी। जो एक टफ टास्क था। इसके अलावा भी कई तरह की चुनौतियां थी।
डॉ। वंदना मिश्रा
आफ लाइन क्लासेस का कोई विकल्प नहीं है। ऑन लाइन क्लासेस भले ही समय की जरूरत है। लेकिन आफ लाइन क्लासेस में स्टूडेंट्स की एकाग्रता अधिक होती है।
क्रिस वेल्स
कोरोना काल ने टीचर्स के साथ ही सभी को नई चीजों को समझने और खुद को समय-समय पर अपडेट करने के लिए तैयार कर दिया। जो लोग कल तक इन चीजों से दूर रहते थे, वह खुद को अपडेट करने लगे है।
निधि शर्मा
टीचिंग में भी काफी बदलाव हुआ है। टीचर्स और स्टूडेंट्स दोनों ही इन बातों को समझने लगे है। लेकिन यह बात सहीं है कि आफ लाइन क्लासेस में बच्चे ज्यादा कांफटेबल रहते है।
जया सिंह
गवर्नमेंट स्कूल में कई ऐसे बच्चें थे, जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं थे। ऐसे में उनको ज्यादा दिक्कत आयी। टीचर्स को भी उन्हें पढ़ाने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ा।
अर्चना जयसवाल
आन लाइन क्लासेस के दौरान टीचर्स को लर्निंग आउट कम पर भी ध्यान रखना पड़ता था। साथ ही लर्निंग गैप को किसी तरह कवर करें। इस पर भी ध्यान देना पड़ता था।
उमा सिन्हा
टीचर्स को भी अपना गोल निर्धारित करना पड़ेगा। क्योकि यह जरूरी है, जब हम बेहतर करना चाहते है। तो ऐसे समय में इस तरह के अच्छा कार्य किया जा सकता है।
अमिता सक्सेना
कोरोना काल में जिन चुनौतियों की चर्चा हो रही है। टीचर्स ने उन सभी चुनौतियों को बेहतर ढंग से सॉल्व किया। हालांकि इन बदलाव और चुनौतियों ने काफी अपडेट कर दिया।
दिनेश चन्द्र मिश्रा
जो भी बदलाव एजूकेशन फील्ड में हुए, वह अभी नहीं होते तो आने वाले 10 सालों में होते। ऐसे में इसे बेहतर ढंग से भी लिया जा सकता है।
डॉ। एमएम पाण्डेय
कोरेाना के दौर में क्लासेस को व्यवस्थित बनाए रखना ही अपने आप में टफ टास्क था। क्योकि आन लाइन क्लासेस में स्टूडेंट क्या कर रहा है। इसका पता ही नहीं चल पाता था।
अनिल कुमार त्रिवेदी
यह बात सहीं है कि पिछले एक साल में एजूकेशन के फील्ड में जो भी बड़े बदलाव हुए है। उसका सकारात्मक असर भी देखने को मिला। हालांकि पैरेंट्स का सहयोग हमेशा ही जरूरी होता है। तभी इन बदलावों का असर पॉजिटिव दिखेगा।
राजीव मिश्रा