प्रयागराज ब्यूरो लाइफ में हर किसी का अपना गोल होता है। जिसको पाने के लिए लोग अपना सबकुछ दांव पर लगा देते हैं। लेकिन, हाउस वाइफ यानी घरेलू महिला इससे काफी अलग होती हैं। वह अपने पति और बच्चों की खुशी के लिए अपने सपनों से समझौता कर लेती हैं। जो लक्ष्य वह पा सकती थीं, अपने परिवार के लिए उनसे भी मुंह मोड़ लेती हैं। इसी को हाउस वाइफ कहा जाता है। आज हाउस वाइफ डे है और आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ महिलाओं की कहानी।

बेटे और श्वसुर के लिए कर लिया कम्प्रोमाइज
अंबिकापुर छत्तीसगढ़ की रहने वाली रितु केसरवानी बचपन से पढऩे में काफी तेज थीं। उनका सपना शादी के बाद पीएचडी करने के साथ सिविल सर्विसेज में जाने का था। उनकी शादी 2103 में प्रयागराज के रोहित केसरवानी के साथ हुई। शुरुआत में पति और फादर इन लॉ ने उनका पूरा साथ दिया। उनकी प्रेरणा से रितु ने राव आईएएस कोचिंग भी ज्वाइन कर ली। उन्होंने सिविल सर्विस का फार्म भरा और एक या दो नंबर से उनका सेलेक्शन होने से रह गया। उम्मीद थी कि नेक्स्ट टाइम उनका सेलेक्शन जरूर हो जाएगा। लेकिन ऐसा होने से पहले ही उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया और इसके बाद फादर इन लॉ की तबियत खराब रहने लगी। अचानक परिवार की जिम्मेदारी आने के बाद रितु ने अपनी गृहस्थी को संभालने के लिए बेहतर हाउस वाइफ बनने का निर्णय लिया। आज वह अपने परिवार के साथ पूरी तरह खड़ी हैं। परिवार की खुशी ही उनके लिए सबकुछ है।

टीचर बनने की जगह गृहणी बनना स्वीकार किया
तकरीबन बीस साल पहले सुमन की शादी प्रीतम नगर के रहने वाले मनु मिश्रा के साथ हुई थी। सुमन का सपना एक टीचर बनने का था। जिससे समाज को शिक्षा के साथ जोड़कर देश के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें। शादी के बाद मनु के सपोर्ट के चलते उन्होंने टीचर बनने की तैयारी शुरू कर दी, इससे पहले की सफलता मिलती ससुराल की जिम्मेदारियां बढऩे लगीं। इस बीच बच्चे ने जन्म ले लिया। इससे सुमन के कंधों पर पे्रेशर बढऩे लगा। पति का भी करियर स्ट्रगल में फंसा था। तब उन्होंने निर्णय लिया कि अब परिवार की देखभाल में पूरा ध्यान देना होगा। शादी के इतने साल भी वह अपने दो बेटे और एक बेटी के लिए एक बेहतर मां, पति के लिए पत्नी और बच्चों के लिए किसी टीचर से कम नही हैं। उनका कहना है कि आपमें योग्यता है तो प्रतिकूल परिस्थितियों को भी अनुकूल बनाया जा सकता है।

पति का करियर बनाने में निभाई अहम भूमिका
म्योराबाद के रहने वाले एमडी फिजीशियन डॉ। अनिल द्विवेदी का करियर बनाने के लिए उनकी पत्नी शालिनी द्विवेदी का अहम योगदान रहा। इसके लिए उन्होंने अपने सपनों की आहूति दी तो यह कहना गलत नही होगा। 2002 में जब दोनों की शादी हुई तो उस समय डॉ। अनिल गोरखपुर से एमबीबीएस कर रहे थे। पत्नी शालिनी की इच्छा भी पढ लिखकर जॉब करने की थी। लेकिन जब उन्होंने देखा कि पति का सपना उनके त्याग और तपस्या के बिना पूरा नही होगा तो उन्होंने हाथ पीछे खीच लिए। आज उनके पति शहर के जाने माने फिजीशियन हैं और वह एक सफल गृहणी। वह कहती हैं कि मेरे लिए यही सबसे बड़ा इनाम है। फिलहाल उनका पूरा समय अपनी तीन बच्चियों की परवरिश में खर्च हो रहा है। इसके लिए वह दिन रात परिवार की सेवा में जुटी रहती हैं।