व‌र्ल्ड साइकिल डे स्पेशल

90 के दशक में किराए पर साइकिल उपलब्ध कराना था बड़ा बिजनेस

दो रुपये तक खर्च करके पूरे दिन साइकिल के इस्तेमाल करने का मिल जाता था मौका

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वक्त बदल गया है। जरूरतें अब भी वैसी ही हैं। पहले सैलरी बेहद कम हुआ करती थी और पब्लिक ट्रांसपोर्ट आलमोस्ट ना के बराबर था। इस स्थिति में प्रयागराज में आकर पढ़ाई और तैयारी करने वालों का बड़ा सहारा हुआ करती थी साइकिल। दो रुपये तक खर्च करके पूरे दिन इस्तेमाल करने की आजादी। यह छात्रों और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वालों के लिए सुविधाजनक था। न चोरी का झंझट और न खरीदने का लफड़ा। यह शहर में बड़ी बिजनेस ऑप्च्र्युनिटी देता था। वक्त बदलने के साथ सीन चेंज हो गया। अब साइकिल की सवारी हेल्थ के लिए जरूरत बन गयी है तो घर-घर में इसकी इंट्री हो चुकी है।

1 रुपए प्रति घंटे होता था रेट

मालवीय नगर एरिया में रहने वाले अरविंद मालवीय बताते हैं कि बात 1996 की है। उस समय किराए पर साइकिल का तेजी से चलन हुआ करता था। उस समय एक रुपए प्रति घंटे की दर से साइकिल किराए पर मिला करती थी। साइकिल लेने के पहले दुकानदार अपने रजिस्टर में नाम, पता और टाइमिंग लिखते थे। उसके बाद किसी पहचान वाले की गारंटी भी लेते थे। फिर साइकिल किराए पर मिला करती थी। इससे पूरा दिन का काम निकल जाता था।

साइकिलिंग का था अपना अलग क्रेज

कल्याणी देवी के पाण्डेय चौराह के पास रहने वाले अरुण कुमार पाण्डेय बताते है कि उस दौर में साइकिलिंग का अपना अलग ही क्रेज हुआ करता था। तब तो यही परिवार की शान हुआ करती थी। शौक के साथ जरूरत पर भी लोग साइकिल किराए पर लिया करते थे। वह बताते है कि उन्होंने तो साइकिल किराए पर लेकर चलाई है। उनके बच्चों और भतीजों ने भी साइकिल किराए पर लेकर खूब मस्ती की। खासतौर पर दुर्गा पूजा के समय सिटी के बारवारियों में दुर्गा पूजा देखने के लिए किराए की साइकिल ही काम आती थी। अगर कुछ मिनट भी लेट साइकिल जमा करने पहुंचते थे। तो दुकानदार से बहस भी होती थी कि देर से साइकिल लेकर क्यों आए हो, एक्स्ट्रा पैसा लगेगा। लेकिन कोई एक्स्ट्रा पैसे देता नहीं था।