प्रयागराज (ब्यूरो)। कोरोकाल में इवि प्रशासन ने जिला प्रशासन की मदद से हास्टलों को खाली कराते हुए छात्र-छात्राओं को उनके घर भिजवा दिया था। कुछ दिन बाद छात्र बगैर अनुमति दोबारा हास्टलों में आकर रहने लगे। इस पर सात जनवरी को इवि प्रशासन ने च्च्चस्तरीय बैठक में इन छात्रों के खिलाफ पांच गुना अर्थदंड लगाते हुए डिग्री रोकने समेत कई अन्य कार्रवाई का फैसला लिया। इसके विरोध में छात्र 45 दिन से डीएसडब्ल्यू कार्यालय के सामने अनशनरत हैं। कई बार हंगामा भी किया। गुरुवार को छात्रों ने अनशन को भूख हड़ताल में बदल दिया। इस बीच अब तक सात छात्रों की हालत भी बिगड़ चुकी है। छात्रों का कहना है कि इवि प्रशासन 15 हजार रुपये अर्थदंड का फैसला वापस ले। इस दौरान छात्रसंघ के पूर्व उपाध्यक्ष अखिलेश यादव, पूर्व महामंत्री शिवम ङ्क्षसह, कल्पेश ङ्क्षसह, हरिकेश कुमार, सौरभ द्विवेदी, आशुतोष पांडेय, राहुल पटेल, विकास नायक, सत्यम कुशवाहा, अजय पांडेय आदि मौजूद रहे।

चीफ प्राक्टर प्रो। हर्ष कुमार, डीएसडब्ल्यू प्रो। केपी ङ्क्षसह, पीआरओ डा। जया कपूर और एपीआरओ डा। चित्तरंजन कुमार की तरफ से इस मसले को लेकर विश्वविद्यालय के अतिथि गृह में प्रेस वार्ता बुलाई गई। यहां बताया गया कि छात्रों से अर्थदंड नहीं वसूला जा रहा है। यह विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा खर्च की गई वह राशि है, जिसका भुगतान सामान्य तौर पर छात्रों को करना होता है। यह देय उन 1097 छात्रों का है, जो लाकडाउन के दौरान अवैध रूप से हास्टल में रहे। बताया गया कि 1097 छात्र न सिर्फ गलत तरीके से छात्रावासों में महीनों तक रहे बल्कि उन्होंने छात्रावासों का ताला तोड़कर डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट और डैमेज टू पब्लिक प्रापर्टी कानून का भी उल्लंघन किया। यह पूरी तरह से अवैध था लेकिन महामारी की विषम परिस्थितियों के कारण उस समय कोई कार्रवाई नहीं की गई। छात्रों ने इस दौरान छात्रावासों की सुविधाओं जैसे बिजली, पानी, ब्लॉक सर्वेंट, माली,कर्मचारी आदि का भी उपयोग किया। ऐसे में जो छात्रावासों में सिर्फ एक महीने अथवा उससे कम रहे हैं उन्हें पांच हजार, जो एक या दो महीने रहे उन्हें 10 हजार और जिन छात्रों ने इससे ज्यादा की अवधि तक छात्रावासों की सुविधाओं का उपयोग किया है। उन्हें 15 हजार की राशि का भुगतान करना होगा।