समाप्त हुई दो केस फाइलों पर बहस की अनिवार्यता, ओपन कोर्ट शुरू होने पर बहाल हो जाएगी पुरानी व्यवस्था

इलाहाबाद हाई कोर्ट में कार्यरत राज्य विधि अधिकारियों को बिना बहस किए भी फीस मिलेगी। राज्य सरकार ने दो केस फाइलों पर बहस की अनिवार्यता समाप्त कर दी है। हालांकि जैसे ही कोर्ट पूर्व की तरह काम करने लगेगी, यह नियम स्वत: खत्म हो जाएंगे और 1999 की फीस व्यवस्था बहाल हो जाएगी। अभी तक दो केस में बहस पर पूरी फीस व एक केस पर आधी फीस देने का नियम था।

फीस भुगतान का नया आदेश जारी

प्रमुख सचिव (विधि एवं न्याय) पीके श्रीवास्तव ने कोरोना संक्रमण काल में फीस भुगतान संबंधी नया आदेश जारी किया है। यह वर्चुअल अथवा खुली अदालत में सुनवाई, दोनों स्थिति में लागू होगा। कोर्ट में बहस का जोखिम उठाने वाले और घर बैठे राज्य विधि अधिकारियों को एक ही पलड़े में रखा गया है। बहस न करने वालों व करने वालो में भेदभाव नहीं है किंतु कार्यदिवस में कटौती जारी है। आपराधिक मामलों में पैरवी करने वाले सरकारी अधिवक्ताओं को माह के 80 फीसद कार्यदिवस और सिविल मामलों से जुड़े सरकारी वकीलों को 70 फीसद कार्यदिवस का ही भुगतान दिया जाएगा। फीस में क्रमश: 20 और 30 फीसद प्रतिमाह कटौती जारी रहेगी। शासकीय अधिवक्ता, अपर शासकीय अधिवक्ता प्रथम व द्वितीय, मुख्य स्थायी अधिवक्ता, अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता, स्थायी अधिवक्ता व वाद धारकों, सभी राज्य विधि अधिकारियों पर यह नियम लागू होगा।

अप्रैल से रुका है फीस का भुगतान

इस आदेश से राज्य विधि अधिकारियों की अप्रैल माह से रुकी फीस के भुगतान का रास्ता साफ हो गया है। कटौती से महाधिवक्ता और अपर महाधिवक्ताओं को मुक्त रखा गया है। राज्य सरकार ने कोरोना काल में सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों के वेतन में कोई कटौती नहीं की है, वरन उन्हें विशेष भत्ता दिया जा रहा है। केवल हाई कोर्ट के सरकारी वकीलों की फीस में ही कटौती की गई है, जिससे उनमें आक्रोश देखा जा रहा है। कृपापर्यंत नियुक्ति के नियम के कारण इस अन्याय के खिलाफ बोलने का साहस कोई नहीं जुटा पा रहा है। हालांकि दबी जुबान से सभी फीस कटौती के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि वह कोरोना संक्रमण का जोखिम उठाकर कोर्ट में सरकार का बचाव कर रहे है और गाज भी उन्ही पर गिरी है। दिलचस्प यह भी है कि कटौती आदेश जिला अदालतों में सरकारी वकीलों पर लागू नहीं है।