प्रयागराज (ब्‍यूरो)। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मेटेरियल साइंस विभाग के प्रोफेसर रविन्द्र धर का नाम विश्व के सर्वश्रेष्ठ 2 प्रतिशत वैज्ञानिकों की सूची मे शामिल है। सूची में 350096 वां स्थान सिक्योरि करने वाले प्रोफेसर रविंद्र धर को यह उपलब्धि दिलाने में उनके रिसर्च वर्क लिक्विड क्रिस्टल का यूज ने महत्वपूर्ण रोल प्ले किया है।

क्या है लिक्विड क्रिस्टल?
वो सारी वस्तुएं जिनके ऊपर कुछ न कुछ प्रदर्शित किया जा सके, उसे लिक्विड क्रिस्टल कहते हैं। प्रो। धर बताते हैं कि लिक्विड क्रिस्टल का आविष्कार आस्ट्रियन वनस्पति वैज्ञानिक फ्रेडरिक रेंजीयर ने 1888 में किया था। सालों पहले उन्होंने इस शोध की शुरूआत की तो किसी ने अंदाजा भी नहीं लगाया था कि उनके द्वारा किया गया शोध इस आयाम तक पहुंच जाएगा। इस पर रिसर्च और उसके रिजल्ट का नतीजा है कि लोग डिस्प्ले को किचन से लेकर के बाथरूम तक मे इस्तेमाल कर पा रहे हैं। वह बताते हैं कि इसका इस्तेमाल बायो मेटेरियल और फिजीकल मेटेरियल दोनों तरह से किया जा सकता है। बायो मेटेरियल में लिक्विड मेटेरियल के इस्तेमाल की बात करें तो यदि हमारे शरीर की मांसपेशियां किसी कारणवश खराब हो जाएं, उनका दोबारा से जुड़ पाना संभव न हो। तो इसके लिए डॉक्टरों के द्वारा मरीज के शरीर में कृत्रिम मांसपेशियों का संवर्धन किया जाता है। इससे मरीज को दर्द से निजात मिल जाती है। इन कृत्रिम मांसपेशियों के निर्माण में जिन सामाग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है वो सारी सामाग्री लिक्विड क्रिस्टल से मिलकर बनी होती है। बिना लिक्विड क्रिस्टल के इन मांसपेशियों को बना पाना संभव ही नहीं है। लिक्विड क्रिस्टल के फिजकली इस्तेमाल करे बात करे तो यह टीवी की स्क्रीन से लेकर के घड़ी के डायल और मोबाइल की स्क्रीन तक है।

डिस्प्ले की क्वालिटी सुधारने पर शोध
रिपोर्टर से बातचीत के दौरान प्रोफेसर ने बताया की साल 1966 में घडिय़ों के आसमान छू रहे थे। उस वक्त हर किसी के लिए घड़ी खरीदना संभव नहीं था। इसके बाद वैज्ञानिकों ने घड़ी में लिक्विड क्रिस्टल का इस्तेमाल करना प्रारंभ किया। वैज्ञानिकों के अथक प्रयास के चलते साल 1980 आते आते घडिय़ों के दाम इतने कम हो गये की अब उस घड़ी हर व्यक्ति खरीद कर उसे अपनी कलाई पर पहन सकता था। लिक्विड क्रिस्टल मेटेरियल का इस्तेमाल करके डिस्प्ले की गुणवत्ता को सुधारने के ऊपर शोध किया जा रहा है। इससे ये फायदा ये होगा की डिस्प्ले खुलने में कम समय लेगी। डिस्प्ले मे नंबर ऑफ पिक्सल बढने के चलते डिस्प्ले की क्वालिटी मे और सुधार आजाएगा। फास्ट वीडियो एप्लीकेशन के लिए इस शोध को किया जा रहा है। जिससे अगर हम वीडियों का शीघ्र बदलाव करें तो उस वीडियों की गुणवत्ता न बिगडऩे पाए। जिसे कुछ इस प्रकार समझ सकते हैं कि यदि हमें किसी तेज गति वाली वस्तु जैसे की राकेट की गति को दिखाना है तो हम इसके लिए ऐसे डिस्प्ले का इस्तेमाल करेगे जिससे वीडियो प्ले हा तो उसकी क्वालिटी पर कोई फर्क न पड़े। वह बताते हैं कि रिसर्च का पार्ट यह भी कि सोलर पैनल की साइज को छोटा किया जाय। शोध सफल हुआ तो बड़े सोलर पैनल की जगह हम सोलर शीट्स को पुताई होने वाले पेंट्स की तरह सीधे कमरों एवं छत की दीवारों पर पोत सकेंगे।