प्रयागराज ब्यूरो । के साथ लोगों से बातचीत कर समझने की कोशिश की तो उक्त बातें निकलकर सामने आई। ज्यादातर पैरेंट्स खुद की लाइफ में उलझे हुये हैं। इसलिए बच्चे मोबाइल में फंस रहे हैं। वह अपनी मर्जी के हिसाब से मोबाइल यूज कर रहे है। साइबर थाने व साइबर सेल से मिले डाटा चौकाने वाला था। हर दस केस में एक मामला बच्चो से जुड़ा मिला। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा। बच्चे व युवा साइबर वल्र्ड के डार्क साइड में जा रहे हैं।
एक्सपर्ट ने साझा की बात
साइबर एक्सपर्ट राजीव कुमार तिवारी ने बताया कि पिछले दो सालों में गेमिंग ऐप का यूज सबसे अधिक हुआ है। जिसके जरिये ऑनलाइन ठगी तक हो रही है। बिना सोचे समझे बच्चे लिंक पर क्लिक कर डिटेल्स व गोपनीय पिन शेयर कर दे रहे हैं। यह इसलिए क्योंकि तमाम ऐसे हाईटेक गेम है। जिसमें नेक्स्ट लेवल पर जाने के लिए सोच तक नहीं पा रहे है। यह ऐसी ठगी है जिसमें पीडि़त शख्स आखिरी वक्त तक नहीं समझ पाता कि वह एक बहुत बड़े रैकेट का हिस्सा बन चुका है। जब उसे यह समझ आता है तब तक वह अपना अकाउंट खाली कर चुका होता है। बच्चों का नाम सामने न आए। इसलिए पैरेंट्स खुद शिकायत करते है। तीन महीने के अंतराल में 467 केस में से 82 केस बच्चों व उनके द्वारा गलतियां की गई है। कुछ तो ऐसे भी केस है। जिसमें पैरेंट्स सबकुछ जानकार भी शांत हो जाते है। जिसमें उनके बच्चों द्वारा साइबर क्राइम किया गया होता है। साइबर एक्सपर्ट बताते है कि सोशल मीडिया और ऑनलाइन सिस्टम के जितने फायदे है। उतने ही नुकसान भी है। सावधानी नहीं बरती तो हर मोड पर साइबर क्रिमिनल्स आपके लाडले को बिगाडऩे के साथ शिकार बना सकते है।
केस 01
आशोक नगर के रहने वाले डा। विनोद सिंघल रायबरेली के जाने-माने डाक्टर में से एक है। उनका बड़ा बेटा बीएससी फस्र्ट इयर की पढ़ाई कर रहा है। बेटे को पॉकेट मनी टयूशन फीस, पेट्रोल व अन्य जरूरतों के लिए उन्होंने अपने बैंक अकाउंट से दो डेबिट कार्ड बनवाए थे। जिसमें से एक वह अपने एक पास रखते थे जबकि दूसरा बेटे को दे रखे थे। धीरे-धीरे अकाउंट में पैसा खाली होने लगा। पूछने पर बेटे द्वारा असंतोषजनक जवाब मिला। वह प्रयागराज पहुंच बेटे से बातचीत की। वह समझ गए, उनका बेटा साइबर अपराधियों चपेट में आ गया। जिसके बाद धीरे से अपने नाम से साइबर सेल में ठगी की शिकायत की। साइबर क्राइम टीम ने अकाउंट की जांच की तो पता चला कि उनके अकाउंट से कूपन रिडीम को पेमेंट की गई थी। उनके बेटे ने मोबाइल फोन पर कूपन रिडीम गेम डाउनलोड किया था।
केस 02
बैंक रोड के रहने वाले आशीष कुमार के अकाउंट से उनके छोटे बेटे ने ही पेटीएम अकाउंट बना लिया। बेटा आठवीं कक्षा में पढ़ता है। पिता के अकाउंट से पहले 4899 रुपये खर्च हुआ। वह समझ नहीं पाए। उसके बाद दो बार 17088 रुपये कट गया गया। अकाउंट से पैसा कटने पर उन्होंने साइबर थाने में शिकायत की। जांच में पता चला कि उनके अकाउंट का पेटीएम अकाउंट बनाया गया है और जिस नंबर से पेटीएम बनाया गया वह उनके बेटे का है। बेटे ने गेमिंग व मंहगे शौक पूरे करने के लिए तमाम बड़ी दुकानों पर पेमेंट किए गये थे। जिसमें मोबाइल फोन व महंगी घड़ी तक शामिल थी। बेटे का नाम सामने आते ही उन्होंने मामला खत्म होने पर पुलिस पर जोर बनाया। जिसके बाद पुलिस ने मामले में एफआर लगा दी।
केस 03
करेलाबाग निवासी अब्बास अहमद एक बिजनेसमैन है। उनकी चौक व शाहरगंज में कास्मेटिक की दुकान है। उनका 15 वर्षीय बेटा मोबाइल फोन पर फ्री फायर गेम डाउनलोड कर उसे खेलने लगा। गेम के आगे बढऩे पर उसे अकाउंट की डिटेल मांगी गई तो उसने फादर की दुकान पर नोट पेटीएम डिटेल तक बिना सोचे समझें भर दिया। धीरे-धीरे 48 हजार रुपये अकाउंट से खाली हो गए। जब फादर ने साइबर थाने में फ्राड की शिकायत की तो साइबर क्राइम थाने की जांच में सामने आया कि फ्री फायर को पेटीएम के जरिए पेमेंट की गई है। छानबीन में पता लगा कि उनके बेटे ने पेटीएम के जरिए पेमेंट की थी।
केस 04
सोबतियाबाग में रहने वाली एक बुजुर्ग महिला के अकाउंट से एक महीने के अंतराल में 70 हजार रुपये के करीब कई बार में कट गया। जब उन्होंने एक दिन एटीएम से बैलेंस चेक किया तो जानकारी हुई। वह अपनी पोती को लेकर साइबर सेल पहुंची। उन्होंने शिकायत के माध्यम से साइबर शातिरों के खिलाफ एफआईआर कराई। जब जांच शुरू हुई तो पता चला कि उनके रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर आने वाले गोपनीय पिन को शेयर किया जा रहा था। तीन से चार बार पिन को शेयर किया गया था। जांच जब आगे बढ़ी तो पोती का दोस्त ही निकला। उसने ऑनलाइन गेम के जरिए ऑनलाइन शॉपिंग करता फिर पेमेंट के समय उसका डिटेल्स भर पिन गेम का कोड कहकर पूछ उड़ा देता। सूत्रों की माने तो दोनों पक्ष आपस में बैठकर पैसा रिटर्न कर मामले को निपटा लिए है।
बच्चों पर ये पड़ा रहा असर
- आपराधिक प्रवृत्ति का बढऩा
- पढ़ाई-लिखाई पर विपरीत असर
- मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक
प्रभाव
- सोशल आइसोलेशन की आदत
- ऑनलाइन हिसंक गेमिंग की लत से सीरियस हेल्थ डिसऑर्डर
- बच्चों में सुसाइड की घटना का
बढऩा
- रिसर्च फर्म रेडसीर के अनुसार 2026 तक भारत में गेमिंग सेक्टर की वैल्यू 7 बिलियन डॉलर (लगभग 57,000 करोड़ रुपये) के लगभग होगी।
- जन गेम्स में पैसों का इनवॉलमेंट है
उन पर केंद्र सरकार नया नियम बना सकती है।
इन गेम में करना पड़ता है पेमेंट
- फ्री फायर
- कूपन रिडीम
- तीन पत्ती
- रमी
- कसीनो
- ब्लैक जैक
- पोकर