प्रयागराज (ब्यूरो)। नीट एक्सपर्ट एमके गुप्ता की माने तो भारत और यूक्रेन के मेडिकल पाठ्यक्रम में अंतर है। इसलिए भारत में कोई आपात नीति बनाई भी जाएगी तो उसमें इन छात्रों का समायोजन मुश्किल है। नीट का बैरियर भी आड़े आ सकता है। सिर्फ यूक्रेन के मित्र देश ही इसका समाधान निकाल सकते हैं। युद्ध में इतनी बर्बादी के बाद यूक्रेन तो फिलहाल ऑनलाइन पढ़ाई की स्थिति में नहीं होगा। ऐसे में तो इन छात्रों का कॅरियर ब्रेक ही माना जाएगा।
छात्रों को समायोजित करना संभव नहीं
मेडिकल कॉलेज के डाक्टर व प्रवक्ता संतोष सिंह कहते हैं कि कुछ छात्रों को तो समायोजित किया जा सकता है लेकिन 20 हजार को संभव नहीं है। कश्मीर में आतंकियों के हमलों में मेडिकल स्टूडेंट को 1989-90 में देश के अन्य मेडिकल कॉलेजों में समायोजित किया गया था। इस मामले में संभव नहीं दिख रहा है। मित्र देश यूक्रेन में पढऩे वाले छात्रों को समायोजित करने की योजना बनाए तो कुछ बात बन सकती है।
मेडिकल की पढ़ाई बिना प्रैक्टिकल संभव नहीं
मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल एसपी सिंह का कहना है कि ऐेसी स्थिति पहली बार सामने आई है। सैलेबस में अंतर है। इसलिए भारत में आपात नीति के बाद भी छात्रों को दिक्कत होगी। यहां पर मेडिकल शिक्षा में केन्द्र और राज्य सरकार सभी के कॅरियर की गारंटी लेते हैं कि अगर आपात स्थिति आएगी तो छात्रों को अन्य मेडिकल कॉलेज में भेजकर कोर्स पूरा कराएंगे। यूक्रेन के छात्रों की गारंटी नहीं है। भारत में तो नहीं यूक्रेन के पड़ोसी देशों में ही समायोजन संभव है। इसके साथ ही मेडिकल की पढ़ाई बिना प्रैक्टिकल के संभव नहीं है। फस्र्ट समेस्टर की पढ़ाई तो ऑनलाइन की जा सकती है। लेकिन फस्र्ट समेस्टर के बाद प्रैक्टिकल की पढ़ाई के लिए ऑफलाइन क्लास ही संभव है। बिना प्रैक्टिकल के डाक्टरी का ढांचा खड़ा कर पाना बड़ा मुश्किल है।
दूसरे देशों में हो सकता है ट्रांसफर
गर्वमेंट मेडिकल कॉलेज के नीट एक्सपर्ट एके वर्मा की माने तो कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया के अलावा कई ऐसे पश्चिमी देश हैं, जहां मेडिकल यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स को ट्रांसफर मिल सकता है। हालांकि इन देशों में यूक्रेन की तुलना में पढ़ाई महंगी होगी। उनका कहना है कि कई प्राइवेट मेडिकल यूनिवर्सिटीज इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश कर सकती हैं। ऐसे में स्टूडेंट्स को सोच समझकर फैसला लेना होगा। अगर उनको यूक्रेन से एमबीबीएस की डिग्री किसी दूसरे देश ट्रांसफर करानी पड़े, तो पहले अच्छी तरह रिसर्च करें। अभी तो डिग्री पर भी संकट है।
लास्ट इयर के स्टूडेंट्स को चुनाव कर पाना कठिन
डा। अरूण गुप्ता का कहना है कि मेडिकल की पढ़ाई इंडिया में पूरा कर पाना इतना संभव नहीं है। जो स्टूडेंट्स लास्ट इयर में हैं या दो या तीन साल का कोर्स पूरा कर चुके हैं, उनके सामने संकट अधिक है। उनको अपने बजट के अनुसार आसपास के देशों और यूरोपियन कंट्री का चुनाव करने से पहले वहां के राजनैतिक हालात और भारत के साथ उनके रिश्तों पर भी ध्यान देना होगा। जिन देशों से हमारे रिश्ते अच्छे हैं, वहां कोर्स पूरा करना आसान होगा।
ऑनलाइन पढ़ाई वाली मेडिकल डिग्री मान्य नहीं
मेडिकल कॉलेज के हार्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर अभिषेक सचदेवा का कहना है कि नेशनल मेडिकल कमीशन के नियमानुसार, मेडिकल शिक्षा में सिर्फ वही डिग्री स्वीकार की जाती है जो पूर्णकालिक नियमित पाठ्यक्रम का हिस्सा है। ऑनलाइन की गई पढ़ाई वाली डिग्री मेडिकल शिक्षा क्षेत्र में स्वीकार नहीं की जाती है। यूरोपीय देशों की तर्ज पर क्रेडिट सिस्टम योजना लागू नहीं होने से किसी एक देश, राज्य या एक यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे छात्र किसी भी दूसरे देश, राज्य और यूनिवर्सिटी में दाखिला नहीं ले सकते हैं। हमारे यहां इतनी मेडिकल सीटें नहीं हैं कि सभी को भारत में पढऩे की स्वीकृति मिल जाए।
इतना होता है खर्च
यूपी के मेडिकल कॉलेजों में इस साल न्यूनतम फीस 11 लाख और अधिकतम 13.73 लाख सालाना फीस है। 1.5 लाख हॉस्टल व एक लाख अन्य मदों की फीस निर्धारित है। इस तरह सरकार ओर से निर्धारित फीस के हिसाब से पांच साल में छात्र को निजी कॉलेजों में 67.5 लाख से 81 लाख रुपये तक चुकाने होंगे। माइनॉरिटी कॉलेजों में छात्रों को पांच साल में एक करोड़ से भी अधिक फीस चुकानी पड़ जाती है। नीट एक्सपर्ट एमके गुप्ता ने बताया कि यूक्रेन और चीन में 15 से 20 लाख रुपये में भी छात्र एमबीबीएस कर लेते हैं। यूपी में एमबीबीएस की महज 8735 सीटें हैं, इसमें 3235 सीटें सरकारी कॉलेजों की हैं, जिनमें फीस तो कम है, लेकिन यह कॉलेज हाई रैंक पर ही मिलते हैं। बाकी 4500 सीट निजी कॉलेजों की हैं। इनमें भी नीट स्कोर के माध्यम से ही दाखिला मिलता है।