प्रयागराज (ब्यूरो)। वर्तमान में डेंगू का प्रकोप सिर चढ़कर बोल रहा है। शहर में मरीजों की संख्या बढ़कर 800 के ऊपर पहुंच चुकी है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग मरीजों के बेहतर इलाज की कोशिशों में लगा है। ऐसे में डॉक्टर्स का कहना है कि सिंगल डोनर प्लेटलेट विधि काफी फायदेमंद है। इसकी एक डोज से ही मरीज के शरीर में 40 से 50 हजार प्लेटलेट काउंट बढ़ जाता है वह स्वस्थ होने लगता है।
क्या है इस विधि के फायदे
आमतौर पर मरीजों को ब्लड बैंकों में तैयार नार्मल प्लेटलेट दी जाती हैं। यह अलग-अलग मरीजों के ब्लड से निकाली गई होती हैं और इनको चढ़ाने के बाद मरीज को रिएक्शन के भी चांसेज होते हैं। इसी तरह डोनर को भी अपनी ओर से होल ब्लड देना पड़ता है जबकि जरूरत केवल प्लेटलेट की होती है। सिंगल डोनर प्लेटलेट विधि में एफेरेसिस मशीन की मदद से केवल एक डोनर की बॉडी से ही प्लेटलेट ली जाती है और निकालने के बाद रेड ब्लड सेल्स, व्हाइट ब्लड सेल और प्लाज्मा वापस उसकी बॉडी में डाल दिया जाता है। वहीं मरीज को भी केवल एक मरीज से फुल डोज मिलती है इससे उसमें रिएक्शन के चांस कम होते हैं।
महंगी पड़ती है सुविधा
हालांकि यह सुविधा मरीज को थोड़ी महंगी पड़ती है। इसकी एक डोज की कास्ट प्राइवेट ब्लड बैंकों में दस से बारह हजार या इससे अधिक हो सकती है। क्योंकि इसमें यूज होने वाली किट की कास्ट 8 हजार से अधिक होती है। और वह डिस्पोजेबल होती है। साथ ही नियम है कि जिस डोनर की खून की नस पतली होगी उससे ब्लड नही लिया जाएगा। क्योंकि जब मशीन बॉडी में वापस आरबीसी, डब्ल्यूबीसी और प्लाज्मा फेकने लगती है तब पतली वेन इस प्रेशर को झेल नही पाती है। इसलिए डोनर रिजेक्ट भी हो जाते हैं।
एसआरएन में सुविधा के लिए प्रशासन से मांगा सुझा
एसआरएन अस्पताल में कोरोना काल में एफरेसिस मशीन लगाई गई थी। इसलिए यहां भी सिंगल डोनर प्लेटलेट की सुविधा मरीजों को मिल सकती है। लेकिन रेट डिसाइड नही होने की वजह से अस्पताल प्रशासन को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। इस मामले में प्रशासन से गाइड लाइन मांगी गई है। उचित सुझाव मिलते ही डेंगू के मरीजों को यहां भी सिंगल डोनर प्लेटलेट मिलने लगेगी।
यह विधि काफी फायदेमंद है लेकिन लोगों को इसकी जानकारी नही है। जबकि सिंगल डोनर प्लेटलेट चढ़ाने से मरीज का प्लेटलेट काउंट तेजी से बढ़ता है। इसमें एक डोनर की बॉडी से केवल प्लेटलेट ही निकाली जाती है। ब्लड के बाकी कम्पोनेंट वापस बॉडी में चले जाते हैं।
डॉ। राजेश मौर्या, उपाध्यक्ष, इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन