प्रयागराज ब्यूरो । इलाहाबाद हाई कोर्ट और इसकी लखनऊ बेंच में स्टेट लॉ ऑफिसर्स की नियुक्ति में मनमानी पर सुनवाई गुरुवार को हाई कोर्ट में पूरी हो गयी। इस याचिका पर चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की बेंंच ने सुनवाई की। पीआईएल दाखिल करने वालों ने तर्क दिया है कि नियुक्तियों में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से तय की गयी गाइड लाइन का भी पालन नहीं किया गया है। कोर्ट ने सुनवाई के बाद इस पर फैसला सुरक्षित कर लिया है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं

यह जनहित याचिका अधिवक्ता सुनीता शर्मा एवं प्रियंका श्रीवास्तव की तरफ से दाखिल की गयी है। दो जजों की बेंच के सामने इस पर बहस करते हुए अधिवक्ता विजय चंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि सरकारी वकीलों को नियुक्त करते समय राज्य ने निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया है। नियुक्ति पा चुके तमाम अधिवकताओं में हाई कोर्ट में वकालत के अनुभव और योग्यता की कमी है। इसी का नतीजा है कि वे प्रभावी पैरवी नहीं कर पा रहे हैं और विचाराधीन मुकदमों की संख्या बढ़ती जा रही है। उन्होंने कहा कि ऐसे कई वकीलों को राज्य विधि अधिकारी की जिम्मेदारी सौंप दी गयी है जिन्हें हाईकोर्ट में न्यायिक कार्य का अनुभव ही नहीं है। उनका रजिस्ट्रेशन भी हाई कोर्ट में दो से तीन साल ही पुराना है। नियुक्ति पाने वालों में कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के हैं तो कई जिला न्यायालय में वकालत करने वाले। नियुक्तियों में बृजेश्वर चहल बनाम स्टेट आफ पंजाब मामले में पारित सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश की अनदेखी की गई है। अधिवक्ता विजय श्रीवास्तव ने रिटायर जस्टिस की कमेटी बनाकर ऐसी नियुक्तियों की जांच कराने की मांग की। कमेटी देखे कि मानकों का उल्लंघन हुआ है या नहीं और भविष्य में प्रक्रिया के अनुसार योग्य अनुभवी अधिवक्ता की नियुक्ति की जाए।

याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति

स्टेट की तरफ से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति की। कहा, सभी नियुक्तियां महाधिवक्ता की अध्यक्षता वाली शीर्ष अधिकारियों की समिति ने गहन जांच के बाद कानून के अनुसार की हैं। वकील को वकीलों के खिलाफ याचिका दायर नहीं करनी चाहिए। जनहित याचिका के जरिए नियुक्त किए गए वकीलों की योग्यता पर सवाल उठाना उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाना होगा। बिना पक्षकार बनाए उन्हें अयोग्य कहना अनुच्छेद 21के तहत मिले गरिमामय जीवन के मूल अधिकार का हनन है। अपर महाधिवक्ता ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि यह उन लोगों ने की याचिका है जिन्हें नियुक्ति नहीं मिल पाई है। याची अधिवक्ता ने पूरक हलफनामे में कुछ नये तथ्य दाखिल करने की अनुमति मांगी किंतु कोर्ट ने समय देने से मना कर दिया।