प्रयागराज ब्यूरो । शुक्रवार को सिविल लाइंस में एक घंटे तक स्कूल के बच्चे एक-दो नहीं बल्कि दो दर्जन से अधिक गाडिय़ों के काफिले के साथ दरवाजे पर लटककर वीडियो बना रहे थे। ज्यादातर युवा रील्स ही बना रहे थे। हर चौराहे पर तैनात पुलिसकर्मियों के सामने से ही निकल भी रहे थे। इनको कोई रोकने व टोकने वाला तक नहीं था। सबके हाथों में मोबाइल था। जब युवाओं का खतरनाक रील्स बनाने की बात फैली तो पुलिस एक्टिव हो गई। रोककर युवाओं से पहले पुलिस ने पूछा कि इतने बच्चे एक साथ कहां से आ रहे है। युवाओं ने जवाब दिया कि वह फेयरवेल पार्टी से आ रहे है। कुछ तो पुलिस ने चालान किया तो कुछ को समझा कर छोड़ दिया।
केस 01
बेली अस्पताल के डाक्टर एआर पाल बताते हैं कि कुछ महीने पहले उनके सामने एक केस रील्स से जुड़ा आया था। पंद्रह साल के युवक का ट्रेन के सामने खड़े होकर वीडियो बनाने के दौरान हाथ फैक्चर हो गया था। करीब बीस दिन अस्पताल में एडमिट होने के साथ प्लास्टर लगाना पड़ा। आज भी हाथ में समस्या रहती है। इलाज के दौरान युवक ने खुद ही बताया था कि
रील्स बनाते वक्त ट्रेन के तेज हवा से हाथ टकरा गया था।
केस 02
एसआरएन के डाक्टर संतोष सिंह बताते है कि एक केस नवंबर माह में सामने आया था। जहां सीढी से कूदकर रील्स बनाते वक्त तेलियरगंज का रहने वाला एक युवक का सिर फट गया था। एक यूनिट खून तक चढ़ाना पड़ा। युवक की जान तो बच गई थी। लेकिन कई दिनों तक भर्ती था। परिजनों ने बताया कि मोबाइल पर वीडियो बनाकर कूद रहा था। तभी पैर लड़खड़ाने से गिर कर सीधे नीचे आ गया।
केस 03
बेली अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डाक्टर एमके अखोरी बताते है कि युवा ही नहीं। बल्कि छोटे बच्चे तक खतरनाक वीडियो बनाने के चलते रिक्स ले रहे है। चार माह पहले आठ साल के बच्चे का केस सामने आया था। बच्चे के आंख के ठीक बगल गहरी चोट लगी थी। बच्चे के परिजनों द्वारा बताया कि चाकू व मोमबत्ती के साथ बच्चा अपने भाई के साथ कोई वीडियो बना रहा था। वह वीडियो भी किसी अन्य वीडियो को देखकर बनाया जा रहा था। इसी दौरान चाकू आंख के बगल में लग गई थी।
हर घर की बन रही कहानी
पहले जहां हाई सोसाइटीज में ही बच्चों के सोशल मीडिया एडिक्शन के मामले सामने आते थे, वहीं अब यह लगभग हर घर की समस्या बनती जा रही है। कोविड से पहले जहां तीस फीसदी बच्चे साइबर वल्र्ड व रील्स बनाने की दुनिया से अंजान थे, वहीं अब करीब 23 फीसदी बच्चे व युवा साइबर वल्र्ड व रील्स बनाने की दुनिया में अपना कमांड रखते है।
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अगर आपको भी लगता है कि सोशल मीडिया के ज्यादा इस्तेमाल की वजह से बच्चे रास्ते से भटक रहे है, तो अपनी राय हमें यहां दिए नंबर पर जरूर भेजें।
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ये कदम उठाने होंगे
- बच्चों के लिए समय निकालना होगा।
- स्पोट्र्स या कल्चरल एक्टिविटीज से जोडऩा होगा
- बीच-बीच में बच्चों की काउंसिलिंग करना होगा
- समझाने व काउंसिलिंग का असर न हो तो फौरन मनोचिकित्सक से मिलना होगा।
- बच्चों के साथ फ्रेंड बनकर ही बात करना व समझाना होगा।
देखने में आता है कि बिजी लाइफ के चलते पैरेंट्स बच्चों पर ध्यान नहीं देते है। जिसमें बच्चे सोशल मीडिया की दुनिया में खो जाते है। पैरेंट्स के लिए जरूरी है कि वे सप्ताह में एक बार बच्चे संग क्वालिटी टाइम स्पेंड करें। उनके मोबाइल का डाटा एक फ्रेंड की तरह चेक करें। कोई रिक्स भरा वीडियो देख रहे है या फिर बनाने का कभी प्रयास किया है तो आराम से बैठकर समझाए।
डा। राजीव कुमार सिंह, सीनियर डाक्टर