प्रयागराज (ब्यूरो)।तंबाकू की खेती से भूमि एवं पर्यावरण को भी गंभीर क्षति हो रही है। दुनिया भर में सालाना 35 लाख हेक्टेयर भूमि का उपयोग तंबाकू की खेती के लिए किया जाता है। इससे जमीन की उपजाऊ शक्ति भी कम होती हैै। तंबाकू के सेकन से वातावरण में अनेक हानिकारक पदार्थ पैदा होते हैं। इसके निर्माण, पैकेजिंग एवं परिवहन से भी पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ता है। तंबाकू के कारण हजारों टन जहरीले पदार्थ एवं ग्रीन हाउस गैसेस पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहीं हैं। यह बातें विश्व तंबाकू निषेध दिवस के मौके पर प्रो। जीएम तोमर ने कहीं। उन्होंने कहा कि इस साल विश्व तम्बाकू निषेध दिवस का नारा है, हमें भोजन की आवश्यकता है, तम्बाकू की नहीं। इस पर सभी को मिलकर अमल करना चाहिए।
बच्चों को ज्यादा खतरा
उन्होंने कहा कि बच्चों में सेकंड हैंड स्मोकिंग के कारण दिल का दौरा पडऩे व स्ट्रोक का खतरा बहुत अधिक रहता है। इससे महिलाओं में बाँझपन का भी खतरा बढ़ जाता है। भारत में करीब 50 प्रतिशत लोग पैसिव स्मोकिंग के शिकार होते हैं। तंबाकू के सामान्य दुष्प्रभावों में नेत्र रोग, आतों में सूजन, हाई ब्लड प्रेशर, दमा, मुंह का कैंसर, बांझपन, डायबिटीज, डिप्रेशन एवं फेफड़ों का कैंसर मुख्य हैं। हर तीन कैंसर रोगियों में से एक रोगी मुख कैंसर से पीडि़त है। जिसका मुख्य कारण पान मसाला, खैनी, गुटखा, बीड़ी, सिगरेट आदि के रूप में तम्बाकू सेवन ही है।
घर में तैयार करें तंबाकू छोडऩे की औषधि
डॉ तोमर ने 250 व्यक्तियों पर किए गए अपने एक शोध अध्ययन का हवाला देते हुए यह बताया कि पानमसाला एवं गुटखा की लत को छुड़ाने के लिए उन्होंने कुछ मुख शोधक आयुर्वेदीय औषधियों को मिलाकर एक ऐसा मिश्रण तैयार किया जिसका प्रयोग तम्बाकू युक्त विभिन्न उत्पादों के सेवन की इच्छा होने पर कराया गया। दृढ़ इच्छा शक्ति वाले लगभग 60 फीसदी व्यक्तियों को इस वैकल्पिक मिश्रण के प्रयोग से औसतन एक माह में तम्बाकू के व्यसन से मुक्ति दिलाई जा सकी। 25 फीसदी व्यक्तियों ने पहले माह के प्रयोग के दौरान तम्बाकू सेवन बंद तो किया लेकिन बाद में संकलित आँकड़ों में मिली जानकारी के अनुसार उन्होंने फिर से तम्बाकू सेवन प्रारम्भ कर दिया। 15 फीसदी व्यक्ति एक से तीन सप्ताह तक ही इसका प्रयोग किए बाद में इस अध्ययन में सम्मिलित नहीं रहे। यह तथ्य इस बात की तरफ़ इंगित करता है कि तम्बाकू की लत मनोवैज्ञानिक है।