प्रयागराज (ब्यूरो)विभिन्न विषयों पर छह दिवसीय 'प्रयाग साहित्य महोत्सवÓ का आयोजन हिंदुस्तानी एकेडमी एवं नया परिमल द्वारा किया जा रहा है। यह आयोजन 10 दिसम्बर से 15 दिसम्बर तक चलेगा। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि प्रो। नंदकिशोर पांडेय ने कहा कि- परिमल ने हिंदी साहित्य ही नहीं भारतीय राजनीति को परिवर्तित किया। काशी की साहित्यिक परंपरा प्रेमचंद और प्रसाद के बाद लुप्त हो गई। हमें पुरखों द्वारा रचित संस्थाओं को विनष्ट होने से बचाना चाहिए। प्रो पांडेय ने कहा कि साहित्य का उद्देश जनजागरण है। त्रिवेणी संगम अनेक विचार सरणियों का संगम है। काव्यनाटक के क्षेत्र में धर्मवीर भारती ने 'अंधा युगÓ में बड़ा प्रयोग किया। 'धर्मयुगÓ हर घर में हर टेबल की शोभा होती थी। 1971 के युद्ध का बार्डर से रिपोर्टिंग की धर्मवीर भारती ने धर्मयुग में। धीरेन्द्र वर्मा लेखक भी थे और प्रशासक भी। भारतीय हिन्दी परिषद की स्थापना धीरेन्द्र वर्मा ने 1942 में किया था जो आज 80 वर्षों से निरंतर चल रही है।

यह है परिमत का पुनर्जन्म

मुख्य वक्ता प्रो। अवनिजेश अवस्थी ने कहा कि परिमल की स्थापना 10 दिसंबर को 78 साल पहले हुई थी। 'नया परिमलÓ 'परिमलÓ का पुनर्जन्म है। विशिष्ट अतिथि प्रो। योगेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि परिमल नामक संस्था कोई नया नाम नहीं है। जब हिंदी को लेकर संघर्ष चल रहा था तभी परिमल का प्रादुर्भाव हुआ। अध्यक्षता कर रहे हिंदुस्तानी एकेडमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ। उदय प्रताप सिंह ने कहा कि हिंदुस्तानी एकेडमी की स्थापना 1927 में हुई। अपने वक्तव्य का समापन उन्होंने गालिब के शेर के साथ किया। संचालन डॉ। सुजीत कुमार सिंह ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ। विनम्रसेन ने किया।

हिंदी आलोचना पर हुआ विमर्श

भोजनोपरांत द्वितीय सत्र की शुरुआत हुई जिसमे 'हिंदी आलोचना: कल आज और कलÓ पर संवाद हुआ। मंचासीन विद्वत्जनों में प्रो। त्रिभुवन नाथ शुक्ल, प्रो। राम किशोर शर्मा, डॉ। रविनंदन सिंह और डॉ। अवनीशचंद्र पाण्डेय उपस्थित थे। जिनसे संचालक डॉ। अमरेंद्र त्रिपाठी ने आलोचना के विविध पहलुओं पर प्रश्न किया। प्रसिद्ध आलोचक डॉ। कन्हैया सिंह, पिंडीवासा, प्रो.धनंजय चोपड़ा, डॉ। चितरंजन, डॉ। सुजीत सिंह, डॉ। लक्ष्मण गुप्ता, स्नातक-परास्नातक के छात्र तथा शोध छात्र-छात्राओं और अन्य अनेक विद्वानों की उपस्थिति रही। शाम को सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया।