जैन मंदिर में अक्षय तृतीया के पूर्व संध्या पर जैन साध्वी श्रीसिद्धिमती का भक्तों को मिला आशीष
ALLAHABAD: अक्षय तृतीया की पूर्व संध्या पर जीरो रोड स्थित जैन मंदिर विशेष आयोजन किया गया। इस अवसर पर जैन साध्वी श्रीसिद्धिमती एवं अहिंसाश्री के सानिध्य में पं। सुरेश चन्द्र जेन एवं सुनील जैन के निर्देशन में सुबह भगवान का अभिषेक, शांतिधारा, नित्य नियम पूजा व आरती एवं शांतिनाथ विधान सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर साध्वी श्रीसिद्धिमती ने मंदिर में मौजूद श्रद्धालुओं को अक्षय तृतीया के विशेष महत्व को बताते हुए दान और धर्म के बारे में उपदेश दिया। उन्होंने कहा कि आहार दान की परम्परा भगवान आदिनाथ से प्रारम्भ हुई। भगवान आदिनाथ को अक्षय तृतीया के दिन राजा श्रेयांश व रानी सोम ने गन्ने के रस का आहार दिया था। इसलिए प्रथम आहार दान दाता के लिए जाना जाता है।
साधु के पैर घर में पड़ने मिलता है पुण्य
जैन मतावलंबियों को आर्शीवाद देते हुए साध्वी श्रीसिद्धिमती ने कहा कि सोना चांदी व जमीन आदि का दान एक मुट्ठी अन्न के दान की बराबरी नहीं कर सकता। एक मुट्ठी अन्न का दान सुमेरू पर्वत जितना और एक अंजलि भर पानी का सागर जितना फल प्राप्त होता है। उन्होंने कहा जिस घर में साधु के पैर पड़ते है, वहां सभी प्रकार के त्योहार एक ही दिन हो जाते हैं। यदि व्यक्ति के मन में आतिथ्य भाव है तो उसके पास कुछ भी नहीं होने पर, वहीं सबसे बड़ा आहारदाता है। इस दौरान अक्षय तृतीया की कथा को भी उन्होंने विस्तार से समझाया। इसके बाद आदिकुमार से आदिनाथ भगवान तक की नाटिका का चित्रण किया गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में जैन धर्म के अनुयायी मौजूद रहे।