- कोरोना मरीजों के लिए प्राइवेट एंबुलेंस बनी रही सहारा
- जमकर हुई कमाई, सैकड़ों ने कॉल किया लेकिन नहीं गए अस्पताल
प्रयागराज- कोरोना काल में हजारों मरीजों का जीवन बचाने का श्रेय प्राइवेट एंबुलेंस को जाता है। उन्होंने मरीजों को लूटा जरूर लेकिन समय पर हॉस्पिटल भी पहुंचाया जिससे उनकी जान बच गई। अगर मरीज केवल सरकारी एंबुलेंस के भरोसे होते तो कब का घर पर दम तोड़ चुके होते। यह हम नहीं कह रहे बल्कि सरकार आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं। बता दें कि अप्रैल और मई में कुल मिलाकर 800 मरीजों को 108 और एएलएस एंबुलेंस के जरिए अस्पताल पहुंचाया जा सका। वही सैकड़ों मरीज ऐसे रहे जिन्होंने आईसीसीसी में कॉल तो किया लेकिन उन्हें समय से सरकारी एंबुलेंस एंबुलेंस मुहैया नहीं हो सकी।
649 को नहीं मिली एंबुलेंस
केवल अप्रैल की बात करें तो 1245 कोरोना मरीजों ने आईसीसीसी में फोन करके सरकारी एंबुलेंस की मांग की थी। इसमें से महज 596 को यह सेवा मिल सकी। बाकी 649 मरीज प्राइवेट एंबुलेंस या अपने निजी वाहन से अस्पताल तक गए। इसी तरह मई में 22 तारीख तक के आंकड़ों पर जाएं तो 325 कोरोना मरीजों ने एंबुलेंस के लिए कॉल किया था और इसमें से 214 एडमिट कराए गए। बाकी 110 मरीजों को यह सेवा नहीं मिल सकी। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि यह मरीज होम आइसोलेशन में रह गए। वहीं
एक मरीज की डेथ हो गई। इस तरह से दो माह में कुल 759 मरीजां को कॉल करने के बावजूद एंबुलेंस की सेवा नही मिली।
शहर में लगी थी 13 एंबुलेंस
बता दें कि कोरोना काल में शहर में केवल 13 एंबुलेंस लगाई गई थीं। वही गंगा और यमुना पार एरिया में 4-4 सरकारी एंबुलेंस को लगाया गया था। यह सभी आईसीसीसी से जीपीएस से अटैच थीं। मरीज का कॉल आने के बाद इन एंबुलेंस को स्पॉट पर भेजा जाता थॉ लेकिन मरीजों की संख्या इतनी अधिक थी कि एंबुलेंस की संख्या कम पड़ गई थी। जिले में लगी 23 एंबुलेंस में दो एएलएस थी जिनको एडवांसा लाइफ सपोर्ट कहा जाता है। बाकी 21 एंबुलेंस 108 सेवा से जुड़ी थीं। एएलएस एंबुलेंस से 62 इमरजेंसी मरीजों को अस्पताल पहुंचाया गया।
समझ नहीं सके अधिकारी
कोरोना की पहली लहर में इन एंबुलेंस ने बेहतर काम किया था। लेकिन दूसरी लहर में किसी को मरीजों की संख्या इतनी अधिक होने का अंदाजा नहीं था। यही पर अधिकारी धोखा खा गए। उन्होंने जितनी एंबुलेंस लगाई उससे कई गुना अधिक मरीज ट्रेस हुए। ऐसे में सैकड़ों मरीज एंबुलेंस के अभाव में घर पर पड़े रह गए या प्राइवेट एंबुलेंस को पैसा देकर जैसे तैसे अस्पताल पहुंच सके।
एंबुलेंस प्रत्येक मरीज तक पहुंची है। लेकिन कई मरीजों ने कॉल करने के बाद अस्पताल जाने से मना कर दिया। इसलिए मिस्ड पेशेंट की संख्या अधिक दिख रही है। सभी एंबुलेंस जीपीएस से कनेक्ट थीं और फील्ड में लगातार काम करती रहीं।
- डॉ। एके चौरसिया, एसीएमओ स्वास्थ्य विभाग प्रयागराज