प्रयागराज ब्यूरो इत्र के कारोबार में अगरवुड की खासी डिमांड है। ऐसे में अगरवुड की खुशबू को प्रयागराज से देशभर में फैलाने की तैयारी है। वन अनुसंधान केंद्र ने अगरवुड को प्रयागराज में इंट्रोड्यूज किया है। अभी तक परिणाम संतोष जनक रहा है। ऐसे में अब वन अनुसंधान केंद्र अगरवुड के बाग लगवाने की कवायद में जुट गया है। इसके लिए युवाओं को जोडऩे और प्रेरित करने का प्रयास किया जा रहा है। वन अनुसंधान केंद्र का प्रयास है कि आने वाले समय में अगरवुड प्रयागराज की पहचान बने। युवाओं को रोजगार मिले। युवाओं की इनकम बढ़े।

क्या है अगरवुड
त्रिपुरा, मेघालय और असम के जंगलों में पाए जाने वाले अगरवुड का इस्तेमाल इत्र, परफ्यूम, डियो और धूपबत्ती बनाने में किया जाता है। अगरवुड को एलोववुड और ईगलवुड के नाम से भी जाना जाता है। सात या आठ साल पुराने अगरवुड के पेड़ में एक विशेष प्रकार के परजीवी कवक को कृत्रिम रूप से प्रवेश कराया जाता है। जिससे अगरवुड के पेड़ में फंगस इंफ्ेक्शन होता है। पेड़ से इंफेक्शन के बाद गहरे काले रंग का राल निकलता है। पेड़ में जिस जगह से राल निकलता है उसकी कीमत बढ़ जाती है।

इत्र व्यापारी खरीद लेते हैं अगरवुड
अगरवुड का पौधा जब सात या आठ वर्ष पुराना होता है तो इत्र व्यवसायी पेड़ को खरीद लेते हैं। फिर अपनी देखरेख में पेड़ को तैयार करवाते हैं। इत्र व्यापारी अपनी निगरानी में पेड़ में कृत्रिम फंगस डालकर इंफेक्शन होने का इंतजार करते हैं। इसके बाद जब राल निकलने लगता है तो पेड़ कटवा लेते हैं। अंदाजन एक पेड़ में तीन से चार किलो लकड़ी निकलती है।

सत्तर लाख किलो तक है कीमत
कीमत की बात की जाए तो फिर ये अगरवुड बहुत ही कीमती पेड़ है। अगरवुड की कीमत ढाई लाख रुपये किलो से लेकर सत्तर लाख रुपये किलो तक है। बस बात क्वालिटी की है। अगर क्वालिटी मेनटेन है तो फिर अच्छे दाम मिलते हैं।

रिटायर्ड कर्मचारी ने लगाए पौधे
करछना के हर्रई गांव के रहने वाले अशोक श्रीवास्तव ने अगरवुड के पौधे लगाए हैं। अशोक श्रीवास्तव कलेक्ट्रेट में प्रशासनिक अधिकारी थे। 2019 में रिटायर होने के बाद अशोक कुछ नया करना चाहते थे। ताकि उनका काम युवाओं के लिए नजीर बने। अशोक ने पिछले वर्ष अक्तूबर में अगरवुड के पचास पेड़ वन अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डा.आलोक यादव की देखरेख में लगाए थे। इस वर्ष अक्तूबर में पौधरोपण को एक वर्ष हो गए हैं। अशोक श्रीवास्तव के मुताबिक पचास में 26 पौधे बचे हैं। बचे पेड़ की ग्रोथ ठीक है। ऐसे में माना जा रहा है कि अगरवुड का पौधा यहां सक्सेस हो जाएगा। अशोक श्रीवास्तव ने बातचीत में बताया कि बिजनेस के लिहाज से बहुत सी वेरायटी के पेड़ हैं। जिनकी खेती आर्थिक रूप से मजबूत कर सकती है। इसके लिए युवाओं को आगे आना होगा।

अगरवुड को रास आ गया यहां का मौसम
अगरवुड बेसिकली तराई क्षेत्र का पौधा है। जहां पर टेंपरेचर ज्यादा नहीं होता है। तराई क्षेत्र में तापमान मैक्सिमम 40 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है। ऐसे में प्रयागराज में अगरवुड के पौधे को लेकर तापमान की दिक्कत हो सकती थी। क्योंकि प्रयागराज में तापमान 48 से 49 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। ऐसे में जब पिछले वर्ष अक्तूबर में अशोक श्रीवास्तव के खेत में अगरवुड के पौधे लगाए गए तो वैज्ञानिक डा.आलोक यादव को तापमान को लेकर चिंता थी। मगर एक वर्ष पूरा होने के बाद भी अगरवुड के पौधों की ग्रोथ नार्मल है। अब इसे बड़े पैमाने पर लगवाने की तैयारी है।

70 लाख रुपये प्रति किलो तक है कीमत
49 डिग्री तापमान में भी जीवित रहा पौधा
50 पौधों से शुरू कराई अगरवुड की खेती
1 साल में 26 पौधों की ग्रोथ है नार्मल
4 किलो लकड़ी निकली है एक पेड़ से
10 साल में बिक्री योग्य हो जाता है अगरवुड

अगरवुड के पौधे की उम्र सात से आठ साल हो जाने पर उसमें कृत्रिम इंफेक्शन किया जाता है। दो से चार साल बाद अगरवुड के पेड़ से तीन से चार किलो लकड़ी निकलती है। इस लकड़ी से प्राप्त राल से औध तेल निकाला जाता है। जिसका इस्तेमाल परफ्यूम बनाने में किया जाता है।
डा.आलोक यादव
साइंटिस्ट, वन अनुसंधान केंद्र