प्रयागराज ब्यूरो । - सुलेम सराय में रहने वाले सुशील सिंह बड़े बिजनेसमैन हैं। उनकी 11 साल साल की बेटी काफी चंचल है। वह एक जगह टिक कर नही रहती है। उसका दिमाग हर पल स्विंग होता है। अक्सर वह एक हाथ में रिमोट तो दूसरे हाथ में मोबाइल फोन लेकर बैठी रहती है। किसी भी काम में उसका कंसंट्रेशन नही रहता है। इससे माता-पिता दोनों परेशान हैं। यह तो एक बानगी भर है। लगभग हर घर में ऐसे बच्चे हैं जो पॉपकार्न ब्रेन के आदी हैं। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें लोगों का दिमाग स्थिर नही होता है। इससे उनका कंसंट्रेशन लेवल लूज होता है। पैरेंट्स के बीच ऐसी शिकायतें बढ़ती जा रही हैं।
एक जगह नही लगता मन
एक स्टडी में ऐसी आदतों वाले व्यक्ति के दिमाग को पॉपकार्न ब्रेन की संज्ञा दी गई है। यह लोग एक जगह स्थिर नही रहते हैं। बच्चों के साथ किशोर और युवाओं में भी पॉपकार्न ब्रेन की समस्या बढ़ती जा रही है। शुरुआत में लोग इस समस्या को यह समझकर इग्नोर करते हैं कि यह चंचलता है। लेकिन, बाद में यह लोगों का भविष्य खराब कर देता है। स्थिरता नही होने से व्यक्ति किसी भी फील्ड में समय नही दे पाता और हमेशा कन्फ्यूजन और हड़बड़ाहट की स्थिति में रहता है।
सोशल मीडिया की रील्स है बड़ा रीजन
डॉक्टर्स का कहना है कि आजकल सोशल मीडिया पर ढेर सारा कंटेंट मौजूद है। यह सब मोबाइल फोन पर है और हम कम समय में सबकुछ देखना चाहते हैं। कहानी शुरू हुई और तीस सेकंड में खत्म हो गई। इसका सबसे बडा एग्जाम्पल आजकल बननेे वाली रील्स हैं। इनको युवा सबसे ज्यादा पसंद कर रहे हैं। इससे उनके ब्रेन पर बडा असर पड़ रहा है। वह स्थिर नही रहता चाहता है। एक मानक के अनुसार पहले लोगों की औसतन कंसंट्रेशन की क्षमता ढाई मिनट थी जो अब घटकर महज 45 सेकंड रह गई है। लोग किसी भी कंटेंट को इससे अधिक समय नही देना चाहते हैं।
पॉपकार्न ब्रेन के लक्षण
- दिमाग का लगातार इधर उधर भटकते रहना।
- एकाग्रता की कमी होना
- दिमाग का हमेशा अग्रेसिव रहना
- बार बार सोशल मीडिया पर लाइक, कमेंट चेक करने के साथ टीवी पर चैनल बदलते रहना
- अक्सर दिमाग के अधिक वर्क करने से थकान होती है और लोगों में भूलने की आदत बढ़ती जाती है
ऐसे मिलेगा लक्षणों से छुटकारा
- दस मिनट से अधिक सोशल मीडिया को टाइम मत दें
- रोजाना मेडिटेशन की आदत डालें, कंसंट्रेशन करने पर अधिक ध्यान दें
- किसी की बात को ध्यान से सुनें
- एक समय में एक ही चीज पर फोकस करें
- कम से कम छह घंटे की नींद जरूर लें
- रात में सोते समय कम से कम मोबाइल का यूज करें

यह एक बड़ी समस्या है। आजकल के बच्चों का कुछ समझ नही आता है। उनका कंसंट्रेशन लेवल कम होता जा रहा है। एक जगह दिमाग ठहरता ही नही है। कई बार लगता है कि इतनी कम उम्र में इनका ब्रेन आखिर सोचता क्या है?
नेहा श्रीवास्तव, पैरेंट

यह समस्या हर एज ग्रुप के साथ है। बच्चे टीवी देखने बैठे तो अचानक मोबाइल फोन हाथ में आ जाता है। अब टीबी ऑन है और दिमाग मोबाइल पर लगा है। अचानक इन दोनों से अलग दिमाग में कुछ और चलने लगता है।
रिंकू देवी, पैरेंट

सोशल मीडिया ने किशोरों का दिमाग दिग्भ्रमित कर दिया है। एक जगह स्थिर ही नही रहता है। कोई चीज समझाओ तो उनके पल्ले नही पड़ता है। हर समय अजीब सी जल्दी रहती है। कंसंट्रेशन लेवल लूज होता जा रहा है।
उमेश यादव, पैरेंट

यह वर्तमान की एक बड़ी समस्या है। अक्सर पैरेंट्स आकर शिकायत करते हैं कि उनका बच्चा कंसंटे्रट नही कर रहा है। युवाओं की भी यही शिकायत है। मेरा कहना है कि आप सोशल मीडिया से थोड़ी दूरी तो बनाइए। परिवार में अपने से बड़े की बात सुनिए। समाज से कटने की जरूरत नही है। मोबाइल और टीवी की अधिकता लोगों को पॉपकार्न ब्रेन जैसी बीमारी दे रही है। यह समस्या क्लीनिकल होने के साथ व्यवहारिक भी है।
डॉ। राकेश पासवान, मनोचिकित्सक