प्रयागराज (ब्यूरो)। सीरिंज का पैक हो या दवा की स्ट्रिप। हर जगह सिंगल यूज प्लास्टिक का यूज हो रहा है। अस्पतालों से लेकर घरों से रोजाना कई टन पॉलिथिन निकल रही है। इस कूड़े को खपाने में सरकार का रोजाना लाखों रुपए खर्च होता है। इससे पता चलता है कि हर जगह पालिथिन पर लोगों की निर्भरता बढ़ी हुई है। ऐसे में इनका विकल्प खोजना जरूरी है। एक जुलाई के बाद सिंगल यूज प्लास्टिक बैन होने के बाद पॉलिथिन से तो निजात मिल जाएगी लेकिन लोगों के पास विकल्प के रूप में क्या होगा। यह बता पाना फिलहाल अभी मुश्किल है। लोगों को जागरूक करते हुए दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट लगातार अभियान चला रहा है। इसी कड़ी में पेश है एक रिपोर्ट
चौका देगा आपको यह डाटा
जिले के अंदर सबसे ज्यादा सिंगल यूज पॉलिथिन व प्लास्टिक सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों से निकलता है। सिर्फ
पॉलिथिन दो टन से अधिक प्रतिदिन निकलता है। हर एक दवा सिंगल यूज पॉलिथिन में पैक रहता है। उसके साथ ही शहर से प्रतिदिन 80 टन पॉलिथिन व अन्य कूड़ा निकलता है। तीन टन के करीब प्रतिदिन मंडी से सिर्फ निकलता है। जिसमें गीला व पॉलीथिन वाला कचरा शामिल है। शहर में जगह-जगह रखे गए बड़े व छोटे कूड़ा दान व मोहल्ले व घरों के बाहर से करीब नौ टन पॉलीथिन में लिपटा कचरा उठाया जाता है। दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट से बातचीत में तमाम मेडिकल स्टोर व दुकानों पर काम करने वाले कहते हैं कि सिंगल यूज पॉलिथिन व प्लास्टिक अपना महत्व है और इसकी जरूरत भी है। उदाहरण देते हुये जनरल स्टोर के दुकानदार आनंद राय का कहना है कि हम दूध लाने के लिए प्लास्टिक बैग के अलावा और कोई विकल्प नहीं देख सकते हैं
सिंगल यूज पॉलिथिन व प्लास्टिक क्या होता है?
पॉलिथिन व प्लास्टिक की बनी ऐसी चीजें, जिनका हम सिर्फ एक ही बार इस्तेमाल कर सकते है या इस्तेमाल कर फेंक देते हैं जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है, वह सिंगल यूज पॉलिथिन व प्लास्टिक कहलाता है। इसका इस्तेमाल चिप्स पैकेट की पैकेजिंग, बोतल, स्ट्रॉ, थर्मोकॉल प्लेट और गिलास बनाने में किया जाता है।
इन क्वालिटी और रेट पर करें गौर
- एक पेपर बैग की कीमत पांच से दस रुपए है, इसे 4 से 5 बार इस्तेमाल कर सकते है
- कॉटन बैग की कीमत बीस रुपए, एक स्टडी के मुताबिक इसे 173 बार इस्तेमाल कर सकते है
- पॉलिथिन बैग एक रुपए व उससे सस्ते में मिलता है, लेकिन मजबूती के हिसाब से सिर्फ दो से तीन बार इस्तेमाल करने लायक होता है।
सिंगल यूज पॉलिथिन को जलाया भी नहीं जा सकता क्योंकि इससे बहुत हानिकारक गैस निकलती है। जिससे वातावरण को बहुत नुकसान होता है। सिंगल यूज पॉलिथन व प्लास्टिक जल के साथ-साथ हवा को भी दूषित कर रहा है। जिससे ओजोन लेयर पर भी काफी असर पढ़ रहा है। यह ही नहीं सिंगल यूज पॉलिथिन व प्लास्टिक ने आम आदमी की जिंदगी आसान बना दिया है। इसके साथ ही जिंदगी जल्दी खत्म करने का रास्ता भी बना दिया है।
इन आकड़ों पर करें गौर
01
जुलाई से सिंगल यूज पॉलीथिन होना बैन एक बड़ी चुनौती
80
टन के करीब शहर से प्रतिदिन निकलता है पॉलिथीन वाला कूड़ा
03
टन के करीब प्रतिदिन मंडी से सिर्फ निकलता है गीला व पॉलीथिन वाला कचरा
02
टन से अधिक शहर के अस्पताल से निकलता है पॉलीथिन वाला कचरा
09
टन के करीब शहर में रखे गए बड़े व छोटे कूड़ा दान व मोहल्ले में बने घरों के बाहर से मिलता पॉलीथिन में लिपटा कचरा
पॉलिथिन (सिंगल यूज प्लास्टिक) - पेपर बैग - कॉटन बैग
वजन - 7.5 से 12.6 ग्राम - 55.2 ग्राम - 78.7 से 229.1 ग्राम
वॉल्यूम कैपसिटी - 17.9 से 21.8 लीटर - 17 से 33.4 लीटर
इस्तेमाल - 2 से 3 बार - 4 से 5 बार - 173 बार या उससे ज्यादा
कीमत (अनुमानित) - 50 पैसे एक रुपए - 5 से 10 रुपए - 10 से 20 रुपए
कार्बन फुट प्रिंट - 1.3 किलो/1000 बैग - 21.8 किलो/1000 बैग - 38.6/1000 बैग
डिकं पोजिशन - 1000 साल तक भी जमीन की सतह पर रहती है और डिकंपोज नहीं होती। जैविक प्रक्रिया से डिकंपोज किया जा सकता है और रिसाइकल भी किया जा सकता है।
पर्यावरण को कितना नुकसान - प्लास्टिक रिसाइकल नहीं किया जाता है, तो यह वायु, जल और भूमि को प्रदूषित करेगा, इसे जलाने से जहरीली गैस निकलती है आरै जब यह नदी या समुद्र में पहुंचता है तो जीवों को नुकसान पहुंचाता है।
पेपर पेड़ों के पल्प से बनाया जाता है तो पेपर के अधिक इस्तेमाल से पेड़ों के ज्यादा काटे जाने की संभावना है, इसे बनाने में पर्यावरण को नुकसान है, लेकिन इस्तेमाल से नुकसान नहीं