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PRAYAGRAJ: अपनी रचनाओं में भावनाओं को शामिल करके रचनाओं के जरिए लोगों के हृदय की गहराई तक पहुंचने में माहिर कवि अशोक कुमार स्नेही ने संडे को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। नारायण आश्रम स्थिति चिकित्सालय में उन्होंने संडे को दिन में 11.15 बजे अंतिम सांस ली। स्नेही की पत्नी स्नेहलता श्रीवास्तव का 10 अप्रैल को निधन हो गया था। पत्‍‌नी के निधन के बाद से ही लगातार डिप्रेशन में चल रहे थे। जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। गोविंदपुर स्थित उनके निवास से दोपहर अंतिम यात्रा निकाली। इसके बाद रसूलाबाद घाट पर अंतिम संस्कार हुआ। छोटे बेटे गौरव श्रीवास्तव ने पिता के पार्थिव शरीर को मुखाग्नि दी।

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से की थी पढ़ाई

मूलरूप से फतेहपुर के लालीपुर गांव के रहने वाले अशोक कुमार स्नेही का जन्म 11 नवंबर 1944 को हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पीजी की पढ़ाई की। इसके बाद सिंचाई विभाग में नौकरी लग गई। वहां से वरिष्ठ सहायक पद से सेवानिवृत्त हुए थे। इनका काव्य संग्रह 'इन्हीं कविताओं से' चर्चित रहा। लगभग 20 वर्ष पहले बेटी निशा श्रीवास्तव का निधन होने से कवि अशोक कुमार स्नेही अंदर से काफी टूट गए थे। अपनी मृतक बेटी को समíपत गीत 'बह गया अब तो खाली घडे़ रह गए। जब कफन जल गया चीथड़े रह गए। लाश बेटी की गंगा बहा ले गई। हम किनारे खड़े के खड़े रह गए' की रचना की। साहित्यिक संस्था गुफ्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज अहमद गाजी ने स्नेही के निधन को साहित्यजगत के लिए झकझोरने वाली घटना बताया। समालोचक रविनंदन सिंह ने कहा कि स्नेही मंच को जीवंत बनाने वाले कवि रहे है। उनके निधन का समाचार साहित्य जगत से जुड़े लोगों के लिए गहरा आघात है। गीतकार शैलेंद्र मधुर ने अभी अपनी शोक संवेदना व्यक्त की।