एसआरएन अस्पताल में कोरोना के दूसरे सीजन में किसी भी मरीज को नहीं चढ़ाया गया प्लाज्मा
पिछले साल 20 मरीजों पर यूज हुई थी थेरेपी, कईयों की बचाई गई थी जान
आईसीएमआर ने प्लाज्मा थेरेपी को कोरोना ट्रीटमेंट प्रोटोकाल से बाहर कर दिया है। लेकिन, यह कहीं नहीं कहा गया कि प्लाज्मा थेरेपी कोविड पेशेंट पर कारगर नहीं है। इसके बाद भी प्रयागराज का एक सच यह भी है कि कोरोना की दूसरी लहर में एक भी मरीज को प्लाज्मा थेरेपी नहीं दी गई। एसआरएन ब्लड बैंक के अधिकारियों का कहना है कि डॉक्टर्स की ओर से इस बार प्लाज्मा की डिमांड ही नहीं की गई। कोरोना की पहली लहर में बीस मरीजों को यह थेरेपी दी गई जिसमें कुछ की जान भी बची थी। इसी पद्धति के यूज के लिए प्रदेश सरकार ने मेडिकल कॉलेज को करोड़ों की लागत से अफेरेसिस मशीन भी उपलब्ध कराई थी।
शहर के डॉक्टर्स ने नकार दी थेरेपी
अधिकारियों का कहना है कि इस थेरेपी की जरूरत नहीं है।
कोरोना संक्रमण के शुरुआती दिनों में इसकी जरूरत होती है। तब कोरोना से ठीक हो चुके मरीज का ब्लड ग्रुप टेस्ट कर मरीज को प्लाज्मा चढ़ाया जाता है।
कुछ मरीज ऐसे भी थे जो वैक्सीनेटेड थे और उनके ब्लड में एंटी बॉडी मौजूद थी।
प्रयागराज के मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर्स ने इस बार प्लाज्मा थेरेपी को पूरी तरह से रिजेक्ट कर दिया।
कानपुर, लखनऊ सहित यूपी के दूसरे शहरों में मरीजों पर इस थेरेपी का यूज किया गया।
दिल्ली सरकार की ओर से हाल ही में प्लाज्मा डोनेशन की अपील भी की गई है।
प्राइवेट में गई चार यूनिट
जो हाल एसआरएन हॉस्पिटल का था वही प्राइवेट अस्पतालों का भी रहा।
इन्होंने भी गंभीर मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी का यूज नहीं किया।
एसआरएन हॉस्पिटल के ब्लड बैंक से इस सीजन में केवल चार यूनिट प्लाज्मा ही एक प्राइवेट अस्पताल ने लिए हैं।
इसके अलावा कहीं से इस सीजन में कोई डिमांड नहीं आई है।
हॉस्पिटल प्रशासन का कहना है कि परिजनों ने भी इस बार प्लाज्मा थेरेपी की कोई डिमांड नहीं की।
क्या है प्लाज्मा थेरेपी, कैसे होता है यूज
कोरोना मरीज को शुरुआती 1 से 7 दिन के भीतर यह थेरेपी दी जाती है।
इसमें कोरोना से ठीक हुए मरीज की बॉडी से प्लाज्मा लेकर मरीज को चढ़ाया जाता है।
इससे उसकी बॉडी में एंटी बॉडी बन जाती है और उसका शरीर कोरोना से लड़ने लगता है।
कोरोना की पहली लहर में पूरे देश में इस थेरेपी का खूब यूज किया गया था।
इसी को देखते हुए सरकार ने अक्टूबर में एसआरएन हॉस्पिटल में करोड़ों रुपए की मशीन भी लगाई थी।
जो डॉक्टर्स कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे हैं उन्होंने हमारे पास डिमंाड नहीं भेजी। अगर मांग होती तो हम प्लाज्मा जरूरत उपलब्ध कराते। वैसे भी मरीज में पांच से सात दिन में एंटी बॉडी बनने लगती है इसलिए इस थेरेपी का बहुत अधिक यूज नहीं है।
डॉ वत्सला मिश्रा
एचओडी, पैथॉलाजी डिपार्टमेंट, एसआरएन