प्रयागराज (ब्‍यूरो)। वर्तमान में लोग इसे भूल गए हैं। वह खुलेआम अपनी गंदी आदतों से दूसरे की आजादी और अधिकारों का हरण कर रहे हैं। संविधान की धारणाओं को झुठलाने में लगे हैं। फिर चाहे वह अतिक्रमण, गंदगी, बैड ट्रैफिक हैबिट हो या पालिथिन का यूज। तमाम ऐसे रीजन हैं जो गणतंत्र के तंत्र को खराब करने का कारण देश के गण को ही बता रहे हैं।

सड़कों पर गंदगी फैलाना इनका अधिकार

स्वच्छ भारत अभियान देश में शुरू हुए कई साल हो गए लेकिन अभी भी सड़कों पर गंदगी फैलाना लोग अपना अधिकार समझते हैं। अभी भी लोग घर का कूड़ा सड़क के किनारे फेकना पसंद करते हैं। वह डस्टबिन का जरा भी उपयोग नही करते हैं। चौक, मीरापुर, चकिया, राजरूपपुर, मुट्ठीगंज, कीडगंज सहित पुराने शहर के जितने भी मोहल्ले हैं वहां पर ऐसा दृश्य आम देखने को मिल जाएंगे। डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन में लगे दीपक बताते हैं कि कई मोहल्लों में हमें घर से कम कूड़ा मिलता है और इधर उधर अधिक बिखरा रहता है। इससे लगता है कि लोग अभी भी जागरुक नही हैं। ऐसे में नगर निगम को अधिक मैन पॉवर लगानी पड़ती है और इसका बोझ अंत में पब्लिक के कंधों पर पड़ता है। इसी तरह शहर की तमाम सड़कों पर चलने वाले वाहनों से पानी की बोतल, चिप्स के पैकेट, थर्माकोल के बाउल फेकना भी आम बात है। खासकर जहां पर वेंडिंग जोन है और खानपान की दुकाने हैं वहां पर सड़कों पर अध्कि कूडृा मिलता है। लोग इस कूड़े को प्रॉपर डस्टबिन में फेकने के बजाय सड़कों पर फैला देते हैं।

लाइनलॉस का कारण बनते कटियामार

शहर की कुल पॉवर सप्लाई का तीस फीसदी लाइन लॉस का शिकार हो जाता है। यह आंकड़े खुद बिजली विभाग के हैं। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि लोगों की मनमानी से ऐसा होता है। शहर में कटियामारी एक बड़ी समस्या है। वह भी तब जब कई इलाकों मे प्लास्टिक की पैक केबिल डाली जा चुकी है। लोग खंभों में बने ज्वाइंटर से कनेक्शन लेने में नही हिचकते हैं। जब बिजली विभाग की टीम छापेमारी करने जाती है तो आम जनता और विभागीय अधिकारियों व कर्मचारियों के बीच बहस और मारपीट तक होती है। विभाग की एक बड़ी रकम हर साल ट्रांसफारमर बदलने में लगती है। कटियामारी की वजह से ट्रांसफारमर का जलना आम बात है। गर्मी के मौसम में ऐसी घटनाओं से सभी को दिक्कत का सामना करना पड़ता है। क्योंकि कटियामारी की वजह से बिजली की असली खपत का अंदाजा नही हो पाता और ट्रांसफारमर जल जाते हैं। विभागीय अधिकार यह भी कहते हैं कि इस तरह के नुकसान की भरपाई के लिए विभाग जनता से ही वसूली करता है। अगर लाइन लॉस कम हो जाए तो बिजली की दरें अपने आप कम हो जाएंगी। इससे लोगों को सस्ती बिजली मिलने लगेगी।

बैड ट्रैफिक सेंस

स्मार्ट सिटी बन रहे प्रयागराज में सिस्टम सबसे ज्यादा एफर्ट ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने में कर रहा है। लेकिन अफसोस है कि वर्तमान में यह सेक्शन सबसे अधिक दयनीय बना हुआ है। लोगों को बैड ट्रैफिक सेंस सुधर ही नही रहा है। सबसे बड़ा एग्जाम्पल रांग साइड टर्न का है। लोग जरा सा समय और दूरी बचाने के लिए उल्टी तरफ मुडऩा पसंद करते हैं। ऐसे में अक्सर रोड एक्सीडेंट होते हैं। हर साल सैकड़ों लोगों की इस गंदी आदत की वजह से जान तक चली जाती है। फिर भी सुधार देखने को नही मिल रहा है। बैरहना, पुराना यमुना पुल, सीएमपी डिग्री कॉलेज चौराहा इसका जीता जागता उदाहरण है। यहां पर आए दिन रांग साइट टर्न की वजह से दिक्कतें पैदा होती हैं। दूसरी बैड हैबिट है सिग्नल को जंप करना। रोजाना सैकड़ों चालान इसी बात के होते हैं। इसकी वजह से भी दुर्घटना होती है। कार चलाते समय सीट बेल्ट नही बांधना, शराब पीकर ड्राइव करनार और बाइक चलाते समय हेलमेट नही लगाना भी बैड ट्रैफिक सेंस में आता है। इसका खामियाजा लोग जान देकर या जुर्माना भरकर चुकाते हैं। रोड पर बने डिवाइडर के कट से वाहनों को मोडऩा भी एक बडी समस्या बनी हुई है।

कभी था शान, अब हुआ बदनाम

पुराने समय में नवाबों के घरों की शान हुक्का हुआ करते थे। इसे महिलांए और पुरुष शान से गुडग़ुड़ाते थे। यह अमीर और सभ्य घरों की शान हुए करते थे। लेकिन वर्तमान सिनेरियो में यही हुक्का बदनामी का कारण बन रहे हैं। इसके लिए भी दोषी हम लोग हैं। हमने इसे अय्याशी का साधन बना लिया है। शहर में चोरी छिपे चल रहे हुक्का बार की आड़ में नशे का व्यापार भी किया जा रहा है। कानूनन हुक्का बार का लाइसेंस नही दिया जाता है। यही कारण है कि पुलिस सूचना मिलने पर हुक्का बार को बंद करा देती है या सामान जब्त कर लेती है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान कॉलेज गोइंग बच्चो को हो रहा है। वह दो से तीन सौ रुपए देकर अलग अलग फ्लेवर में अपना पैसा फूंक रहे हैं। सबकुछ जानते हुए भी पुलिस इस पर कोई ठोस कार्रवाई नही करती है। हुक्का बार संचालकों का कहना है कि हुक्का बार को लेकर लाइसेंस दिया जाना चाहिए। जिससे वैध तरीके से इसे चलाया जा सके। हालांकि उनका कहना है कि बार में बालिग को भी घुसने दिया जाता है। यहां केवल फ्लेवर परोसा जाता है। नशे बाजी नही की जाती है।

कहीं भी थूक दो, कौन भला बोलेगा

पान और गुटखा खाने वालों की वजह से शहर की सड़कों, डिवाइडर और दीवारों की बदसूरती बनी हुई है। जहां तहां लोग पान और गुटखा खाकर थूक देते हैं। सबसे ज्यादा खराब स्थिति कलेक्टे्रट, कचहरी और विकास भवन की है। यहां सीढिय़ों पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा गया है कि पान खाकर थूकना मना है लेकिन लोग उसी पर पान की पीक मार देते हैं। सरकार ने पूर्व में सार्वजनिक जगहों पर पान गुटखा खाने और थूकने वालों पर 50 रुपए से लेकर 500 रुपए तक का जुर्माना लगाया था। लेकिन कोई भी जिम्मेदार इस पर कार्रवाई नही कर रहा है। इससे लोगों की हिम्मत बढ़ती जा रही है। सरकारी और प्राइवेट संस्थानों में लोग खुले आम पान खाकर घूम रहे हैं। खुद स्वास्थ्य विभाग के परिसर में भी जगह जगह पान की पीक मिल जाएगी। कई जगह तो इतना गंदा है कि लोग खड़े ही नही हो सकते हैं। यहां पर भी किसी पर जुर्माना नही लगाया जाता है। इसके अलावा सार्वजनिक जगहों सिगरेट के कश फूकना भी लोगों का मुख्य शगल बना हुआ है। सबसे ज्यादा स्कूल गोइंग छात्र-छात्राएं चौराहों और दुकानों पर कश फूकते मिल जाएंगे।