प्रयागराज (ब्यूरो)। एचआईवी वन पर रिसर्च करने के बारे में प्रो। शर्मा ने बताया कि जब वह ब्राजील के फेडरल रिपब्लिक यूनिवर्सिटी आफ रियो डीजेनेरो में विजिटिंग प्रोफेसर थे। उस समय उन्होंने वहां के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ कैंसर में प्रो। ए सोरे मार्सेलो की लैब में रिसर्च करते समय पाया था कि ये वायरस साउथ अफ्रीका के आदिवासियों में मिला। आदिवासियों में वहां के बंदरों से आया था। क्योकि, वहां के आदिवासी बंदरों को मारकर खाते थे और उनका खून अपनी बॉडी पर लगाते थे। यानी एचआईवी वन का पहला होस्ट बंदर थे। इसके बाद इसके मोड आफ ट्रांजिक्शन पर रिसर्च हुआ। जिसमें सामने आया कि ये वायरस खून के माध्यम से, मदर टू चाइल्ड या फिर अनसेफली फिजिकल रिलेशन बनाने से ट्रंासफर होता है।
क्या होता है एचआईवी- 1
प्रो। शर्मा ने बताया कि एचआईवी 1 एक वायरस है।
एचआईवी के कई टाइप होते हैं। टाइप वन ह्यूमन बॉडी में ज्यादा पाया जाता है।
टाइप 2 बर्ड और ह्यूमन दोनों में होता है।
सबसे ज्यादा खतरनाक टाइप वन होता है।
एचआईवी टाइप वन और टाइप 2 में 10 से 20 प्रतिशत ही सिमिलरिटी होती है।
दोनों के जीन में अनुवांशिक अंतर होता है।
ह्यूमन इम्युनोडेफिसियेंसी वायरस यानी एचआईवी टाइप वन मानव शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है।
ये दवा की तुलना में अच्छी इम्युनिटी से जल्द ठीक होता है।
तमिलनाडु में मिला था पहला केस
प्रो। बेचन शर्मा ने बताया कि इंडिया में पहला केस तमिलनाडु के नमक्कल में मिला था। वहां पर प्रो। सुनीती सोलोमन ने इसकी पहचान की थी। इसी कारण भारत में इस वायरस को खोजने का श्रेय प्रो। सुनीती को ही दिया जाता है। जहां तक इसके पहचान की बात है, तो इसका सीधा तरीका है कि व्यक्ति कभी भी किसी भी प्रकार के अनसेफ रिलेशन बनाता है तो उसे एक महीने के अंदर इसकी जांच करा लेनी चाहिए। 1 से 4 महीने इसका विंडो पीरियड होता है। जिसके बाद ये बॉडी में तेजी से बढऩे लगता है। इसके अलावा इसका कोई खास सिम्पटम नहीं होता है।
क्या करता है वायरस
हमारी बॉडी में बहने वाले ब्लड के कई पार्ट होते है।
इसमें डब्लूबीसी की भी अलग फैमली होती है।
इन फैमली के सीडी4 पॉजिटिव रिसेप्टर में यह वायरस चिपक जाता है।
इसके बाद यह तेजी से बढऩे लगता है।
यहां जानने वाली बात है कि एचआईवी वन और एड्स अलग-अलग है।
एचआईवी वन से ग्रसित व्यक्ति को 15 से 20 साल बाद एड्स होता है।
इंडिया में पीसीआर टेस्ट एचआईवी वन के लिए सबसे ज्यादा सेंसिटिव माना जाता है।
पारथेनियम प्लांट में एंटी वायरस के मिले गुण
एचआईवी वन के लिए मार्केट में कई सिथेसाइज दवाएं है।
जिनका यूज होता है। सिटेटिक ड्रग बॉडी से बाहर जाने में समय अधिक लेता है।
अगर लंबे समय तक ड्रग बॉडी में रहता है, तो कई तरह की दिक्कतें होने लगती है। इसी को देखकर यह रिसर्च शुरू हुआ।
ये वायरस लगातार खुद को मोडिफाई करता रहता है। वायरस के कई वैरियंट बनते है। एचआईवी के ही 300 से ज्यादा वैरियंट है।
जो भी दवाएं दी जाती है, तो इम्युनिटी बढ़ाने के लिए ही होती है।
इसी दौरान एक स्टडी में पता चला कि कांग्रेस ग्रास के पारथेनियम प्लांट में मेडिसीन वैल्यू है।
इसके बाद उस पर रिसर्च शुरू हुआ। एचआईवी वन आरटी किट से परीक्षण शुरू हुआ।
प्रो। डॉ। बेचन शर्मा ने बताया कि उन्होंने रिसर्च में जापान के कोयोतो यूनिवर्सिटी से प्रो। यासूक आवा, पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन हरिद्वार और बियानी ग्रुप आफ एजूकेशन जयपुर के साथ मिलकर सेंसटिव टेक्नोलॉजी में जांच शुरू की।
इसमें पता चला कि इस पौधे से एन्टी एचआईवी ड्रग बन सकता है। रिसर्च में यह भी पता चला कि ये सिथेंटिक दवाओं से ज्यादा कारगर साबित होने की पूरी उम्मीद है।
इसके साथ ही कई अन्य प्लांट पर भी रिसर्च किया गया, लेकिन सबसे इफेक्टिव पारथेनियम प्लांट ही साबित हुआ। इसके जो मालिक्यूर होते है।
वह आसानी से पानी में घुल जाते हैं। जिससे ये अभी की दवाओं के तुलना में कम नुकसानदायक होगा।
रिसर्च पूरा हो चुका है। इंडियन गवर्नमेंट के नियमों के अनुसार इसके लिए एनबीए का एप्रूवल जरूरी है। 2018 में इसके लिए अप्लाई कर दिया था। कुछ दिन पहले ही लगभग सारी फार्मेलिटी पूरी हो चुकी है। अब इसे पेंटेंट कराने की तैयारी है।
प्रो। डॉ। बेचन शर्मा
बायोकेमेस्ट्री एंड मालिक्यूलर डिपार्टमेंट, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी