प्रयागराज (ब्यूरो)।
11 माह में 69 बच्चे हुए गुमशुदा
22 बच्चों को पुलिस ने परिवार से मिलाया
47 लापता बालकों की तलाश जारी
213 बालिग हुए गायब
05 बालिगों को पुलिस ने पहुंचाया घर
परिजनों को न डांटने की हिदायत
हर जिद पूरी करने वाले मां बाप की डांट से आहत होकर घर छोडऩे वाले बालकों की संख्या दर्जनों में है। इनमें सिर्फ बालक ही नहीं बालिकाएं भी शामिल हैं। घर से अचानक गुम हुए बच्चों की रिपोर्ट परिजनों द्वारा जिले के विभिन्न थानों में दर्ज करवाई गई। बालकों की दर्ज की गई गुमशुदगी के मुकदमों की संख्या कुल 69 बताई गई। इनमें सर्वाधिक 53 बालक और 16 बालिकाएं शामिल हंै। रिपोर्ट दर्ज कर तलाश में जुटी पुलिस द्वारा टोटल 22 नाबालिगों को बरामद किया गया। बरामदगी में 17 बालक और 05 बालिकाएं शामिल हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो 47 नाबालिगों की तलाश अब भी जारी है। बताया गया कि बरामद बालक एवं बालिकाओं को उनके परिजनों को सौंपते वक्त हिदायत दी गई है। कहा गया है कि वह आइंदा उन्हें किसी गलती पर डांटने के बजाय प्यार से समझाएं। मारने-पीटने या ताना देने अथवा किसी दूसरे के बच्चों से इन्हें कम आंकने जैसी हरकतें न करें।
सैंपल केस एक
खुल्दाबाद पुलिस द्वारा 15 नंवबर को दो बालिकाएं बरामद की गईं। पूछताछ में परिजनों द्वारा पुलिस को चौंकाने वाली बात बताई गई। कहा गया कि पढ़ाई न करने पर दोनों को मम्मी व पापा ने डांट लगाई गई थी। इससे आहत होकर वह घर से निकल गयी थीं। शाम तक पता नहीं चलने पर पुलिस से की शिकायत। इसके बाद पुलिस ने छानबीन शुरू की। इंस्पेक्टर बीरेंद्र सिंह यादव ने बताया कि दोनों को स्टेशन के पास से भटकते हुए बरामद किया गया था।
सैंपल केस दो
शंकरगढ़ में भी एक नाबालिग लड़के ने इसलिए घर छोड़ दिया था क्योंकि पिता ने डांटा था। तहरीर पर 11 नवंबर को गुमशुदगी रिपोर्ट दर्जकर पुलिस ने तलाश शुरू की। इंस्पेक्टर ब्रिजेश सिंह ने बताया कि उसे कस्बे में रहने वाली रिश्ते की एक बुआ (सगी नहीं) के घर बरामद किया गया। अकेले उसके घर पहुंचने पर उसकी बुआ के घर वालों ने सूचना पुलिस और उसके परिजनों को दी थी। इसके बाद पुलिस ने बच्चे को उसके परिजन के सौंपा गया।
बच्चों को डांटें तो यह ध्यान रखें
एक परिवार के चलते बच्चों से परिजनों का कम्यूनिकेशन गैप बढ़ रहा है।
इससे उनकी मानसिक दशा में चेंज आते हैं और उन्हें भावुकता बढ़ जाती है
इसके चलते छोटी छोटी बातें भी उन्हें हर्ट करती हैैं। वह ऐसे कदम उठाते हैैं।
ऐसी स्थिति से बचने के लिए परिजनों को चाहिए कि बच्चों को प्यार से समझाएं। डांटने फटकारने के बजाय किसी बात को साथ बैठकर समझाएं और समय दें।
अहसास कराएं कि आप उन्हें डांट नहीं रहे बल्कि समझा रहे हैं
कभी डांट भी दें तो उनकी हरकत पर नजर रखें और कुछ देर बाद प्यार भी दें
माता पिता साथ न डांटें, इससे उनके पास बात कहने का एक आप्शन होगा
यदि वह कुछ कहना चाहते हैं तो उनकी बात भी सुनें फिर जो सही हो उसे समझाएं।
उन्हें ऐसा नहीं फील होना चाहिए कि आप अपनी बात उन पर थोप रहे हैैं।
परिजन बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं। इससे बच्चों के विहैबियर में चिड़चिड़ापन प्रभावी रूप से उभरकर सामने आ रहा है। इस हाईटेक दौर में उनमें बातों को समझने की क्षमता भी बढ़ रही है। ऐसे में उन पर अपनी बात थोपें नहीं।
डॉ। राकेश पासवान मनोचिकित्सक