प्रयागराज ब्यूरो । केस नंबर वन- मामला झूंसी त्रिचेणीपुरम के रहने वाले कपिल देव का है। चार साल पहले उनकी तबियत अचानक खराब हो गई। उनका लड़का बाहर रहता है। अस्पताल में जांच के बाद पता चला कि उनके शरीर में खून की कमी है। उनको ब्लड की जरूरत है। यह सुनने के बाद साथ आए रिश्तेदार धीरे धीरे निकल गए। ऐसे में परिजनों ने किसी तरह जानकारी मिलने पर रक्तदाता राजीव मिश्रा के मोबाइल फोन पर फोन किया। राजीव ने तत्काल ब्लड देकर कपिल की जान बचाई। 15 राज्यों में 93 बार रक्तदान करने वाले राजीव कहते हैं कि एक व्यक्ति साल में चार बार ब्लड डोनेशन कर 16 लोागें की जान बचा सकता है।

केस नंबर दो- ऐसी ही कहानी दारागंज के रहने वाले मनीष साहनी की है। उनक तबियत भी अचानक खराब हुई थी। अस्पताल में उनके साथ कई दोस्त और रिश्तेदार थे। डॉक्टर ने जांच के बाद बताया कि उनको ब्लड की जरूरत है। यह सुनने के बाद सभी साथ आए लोग वापस चले गए। जो बचे थे उन्होंने बताया कि वह ब्लड देने योग्य नही हैं। ऐसे में मरीज की तबियत खराब होने लगी। जब इसकी जानकारी 16 बार रक्तदान कर चुके दिग्विजय मिश्रा को हुई तो उन्होंने बिना देरी किए ब्लड देकर मनीष की जान बचाई।

केस नंबर तीन- पेशे से चिकित्सक डॉ। राहुल द्विवेदी ने भी मौके पर ब्लड देकर मानवता की मिसाल कायम की है। वह बताते हैं कि प्रतापगढ़ के रहने वाले एक मरीज को एसआरएन अस्पताल में भर्ती कराया गया। उसका नाम रामलाल यादव था। बताया गया कि ब्लड की कमी होने की वजह से पहले मरीज को ब्लड चढ़ाया जाएगा इसके बाद ही उनका आपरेशन होगा। ऐसे में काफी देर तक कोई रिश्तेदार खून देने को तैयार नही हुआ। तब डॉ। राहुल ने आगे आकर खून दिया और रामलाल की जान बचाई।

एसआरएन में तीन यूनिट ब्लड, इसलिए पड़ती है डोनर की जरूरत

आखिर क्यों जरूरत पडऩे पर लोगों को डोनर की आवश्यकता पड़ती है। ऐस ाइसलिए कि समाज में ब्लड डोनेशन करने वाले गिनती के लोग हैं। अक्सर ब्लड बैंक का स्टाक काफी कम रहता है। ऐसे में मजबूरी में ब्लड बैंक किसी को ब्लड देने के बदले में डोनर की मांग करते हैं। वर्तमान में देखा जाए तो शहर के सरकारी ब्लड बैंकों में खून की जबरदस्त कमी है। आंकड़ों के मुताबिक मंगलवार को मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के ब्लड बैंक में तीन और बेली अस्पताल के ब्लड बैंक मे महज नौ यूनिट स्टाक बचा था। डाप्कू के डीपीएम डॉ। रोहित कहते हैं कि ऐसे में बिना डोनर किसी को ब्लड देना बेहद मुश्किल काम है।

ओ और बी पाजिटिव हैं बड़े डोनर

आपको बता दें कि समाज में सबसे ज्यादा संख्या बी पाजिटिव ब्लड ग्रुप वालों की है लेकिन सबसे ज्यादा डोनेशन ओ पाजिटिव ब्लड ग्रुप वाले करते हैं। इन दोनों ब्लड ग्रुप का स्टाक हमेशा ज्यादा रहता है। सबसे कम स्टाक निगेटि वब्लड ग्रुप जैसे ओ, बी, एबी का रहता है। इनके डोनर भी रेयर हैं। अक्सर निगेटिव ब्लड की आवश्यकता होने पर परिजनों का नाको चने चबाने पड़ते हैं।

ब्लड डेनेशन के फायदे

- हर तीन महीने में बॉडी में नया ब्लड बन जाता है।

- नियमित रक्तदान से बॉडी में आयरन का स्तर मेनटेन रहता है।

- रक्त प्रवाह एकुरेट बना रहता है।

- एक बार ब्लड देकर चार लोगों की जान बचाई जा सकती है। इससे मन में संतोष की भावना जन्म लेती है।

- एक बार ब्लड देने से पहले खून की फ्री जांच होती है जिससे बॉडी की फिटनेस का अंदाजा हो जाता है।