प्रयागराज ब्यूरो । शहर के सरकारी अस्पतालों में सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की जबरदस्त कमी है। इसकी वजह से गंभीर बीमारियों से ग्रस्त मरीज या तो जैसे तैसे नार्मल इलाज करा रहे हैं या उनको प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ रहा है। शहर के बेली और काल्विन अस्पतालों के फिलहाल यही हाल हैं। यहां पर सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के पद तो हैं लेकिन कई सालों से इन पर नियुक्ति नही की गइ्र है।
मरीज को रेफर कर देते हैं फिजीशियन
किसी भी सरकारी अस्पताल में किडनी, लीवर, हार्ट सहित अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रसित मरीजों के इलाज के लिए सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की आवश्यकता होती है। लेकिन बेली और काल्विन अस्पताल में ऐसा नही है। यहां आने वाले गंभीर मरीजों को फिजीशयन एसआरएन या पीजीआई रेफर कर देते हैं। यहां पर आसानी से इलाज नही मिलने पर मरीज प्राइवेट अस्प्ताल चले जाते हैं या फिर खुद को बीमारी के हवाले कर देते हैं।
डिग्री लेने के बाद नही करते ज्वाइन
बेली और काल्विन दोनों अस्पताल में प्लास्टिक सर्जन, नेफ्रोलाजिस्ट और कार्डियक स्पेशलिस्ट का एक-एक पद है। यह डॉक्टर्स आग से झुलसे गंभीर मरीजों सहित किडनी और हार्ट के मरीजों का इलाज करते हैं। फिलहाल इनकी जगह नार्मल फिजीशियन ही मरीजों को हैंडल कर रहे हैं। जानकारी के मुताबिक रोजाना सौ से डेढ़ सौ इन बीमारियों के मरीज इन अस्पतालों में पहुंचते हैं और डॉक्टर नही मिलने पर प्राइवेट अस्पतालों का रुख कर लेते हैं। इतना ही नही, इन अस्पतालों में न्यूरो सर्जन और गैस्ट्रो स्पेशलिस्ट के पद ही नही हैं। ऐसे में मस्तिष्क और रीढ़ की हड््िडयों सहित पेट व लीवर की बीमारियो से ग्रसित मरीजों को भी निराशा हाथ लगती है।
लाखों रुपए करने पड़ते हैं खर्च
बता दें कि सुपर स्पेशलिस्ट के डॉक्टर्स सरकारी अस्पतालों में भले न हो लेकिन प्राइवेट अस्पतालों मं आसानी से मिल जाते हैं। लेकिन इनकी फीस और इलाज काफी महंगा है। एक से दो हजार रुपए फीस और लाखों रुपए इलाज में लगाने पड़ते हैं। बता दें कि इन बीमारियों के इलाज में लगने वाली दवाओं की बाजार में कीमत हजारों रुपए में है। मेडिकल कॉलेज में सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं लेकिन वह मरीजों में ज्यादा इंट्रेस्ट नही लेते हैं। इससे भी मरीज परेशान होते हैं।
भविष्य में अधिक बदतर होंगे हालात
हालत तो यह है कि नार्मल डॉक्टरों की कमी भी इन अस्पतालों में बनी हुई है। इस माह काल्विन अस्पताल से फिजीशियन डॉ। संजीव यादव और सर्जन डॉ। वीके सिंह रिटायर होने वाले हें। इसके बाद यहां दोनों विधा के एक-एक डॉक्टर ही बचेंगे। इसी तरह बेली अस्प्ताल में स्किन के केवल एक डॉ। पीके सिंह नियुक्त हैं। इन डॉक्टरों पर रोजाना ओपीडी में जबरदस्त लोड होता है। बेली में इस समय 42 और काल्विन में 22 डॉक्टर तैनात हैं। इनमें से एक भी सुपर स्पेशलिस्ट नही है। जबकि दोनों अस्पतालों में रोजाना ढाई से तीन हजार नए मरीज दस्तक देते हैं।
हमारे यहां सुपर स्पेशलिस्ट के तीन पद हैं लेकिन नियुक्ति एक की भी नही है। इससे गंभीर मरीजों को दिक्कत होती है। उनको यहां इलाज नही मिल पाता है। जो आर्थिक रूप से कमजोर मरीज हैँ उनके लिए यह स्थिति काफी दुखदायी साबित होती है।
डॉ। एमके अखौरी, अधीक्षक, बेली अस्पताल
इस महीने के अंत में हमारे अस्पताल से एक फिजीशियन और एक सर्जन रिटायर होने जा रहे हैं। सुपर स्पेशलिस्ट तो एक भी नही मिल रहे हैँ, ऊपर से जो डॉक्टर हैं उनकी संखयाभी कम होती जा रही है। इससे आम मरीज बहुत परेशान होते हैं।
डॉ। राजेश कुमार, अधीक्षक, काल्विन अस्पताल