प्रयागराज (ब्यूरो)। आमतौर पर हार्ट के मरीजों की एंजियोप्लास्टी पैर के रास्ते से होती है। इसमें उसे इलाज के बाद दो से तीन दिन तक अस्पताल में रहना पड़ता है। जबकि एसआरएन अस्पताल की कैथ लैब में मरीजों की एंजियोप्लास्टी रेडियल तरीके यानी हाथों के जरिए की जा रही है। इसमें मरीज 6 से 8 घंटे में डिस्चार्ज हो जाता है। इससे उसका समय बच जाता है। मरीज की धमनियों में स्टेंट को डालकर खून के प्रवाह नार्मल किया जाता है। जिससे मरीज को हार्ट अटैक की संभावना कम हो जाती है।

घट रही है औसत एज

कैथ लैब शुरू होने के बाद एसआरएन अस्पताल में कुल दस मरीजों की एंजियोप्लास्टी की गई है। डॉक्टर्स की माने तो जितने लोगों की एंजियोप्लास्टी हुई है, उनकी औसत उम्र 45 से 50 साल के बीच है, जो पहले दस साल घट गई है। उनका कहना है कि यह चिंता का विषय है। कम उम्र में लोग दिल के मरीज बन रहे हैं। इसके अलावा कैथ लैब में अब तक दो मरीजों के पेस मेकर लगाया गया है। बाई पास सर्जरी के मरीजों को रेफर कर दिया गया है। कई मरीज एंजियोप्लास्टी कराने की तैयारियों में लगे हैं।

काफी सस्ता है इलाज

प्राइवेट अस्पतालों के मुकाबले एसआरएन अस्पताल में एंजियोप्लास्टी काफी सस्ती हो रही है। यहां स्टेंट समेत कुल खर्च 60 से 65 हजार रुपए में इलाज मिल रहा है। वहीं पेस मेकर लगाने में 70 हजार रुपए तक खर्च आ रहा है। यह सिंगल चैंबर पेस मेकर की कीमत है। वहीं डबल चेंबर पेस लगाने में एक लाख से अधिक खर्च हो रहा है। बावजूद इसके यह खर्च प्राइवेट अस्पतालों से कहीं कम है।

रोजाना औसतन चार केस

एसआरएन की कैथ लैब में रोजाना औसतन चार केस किए जा रहे हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि नए सेटअप में थोड़ा टाइम लगता है। जबकि मरीज बड़ी संख्या में आ रहे हैं। जिसका कारण है कि कम पैसे में बेहतर इलाज मिल रहा है। खासकर एंजियोप्लास्टी, एंजियोग्राफी और पेस मेकर लगाने का काम सस्ता है। अब तक यहां कुल हार्ट के 34 केस दस्तक दे चुके हैं।

हमारे यहां रेडियल तरीके से एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी हो रही है। इसमें मरीज को जोखिम कम और समय भी कम लगता है। सर्जरी के कुछ घंटों बाद मरीज मूवमेंट करने योग्य हो जाता है।

डॉ। अभिषेक सचदेवा, कार्डियोलाजिस्ट एमएलएन मेडिकल कॉलेज प्रयागराज