प्रयागाज (ब्‍यूरो)। छुट्टी किसे नहीं चाहिए। अवकाश मिलने से काम का बोझ कम होता है और फिजिकल के साथ मेंटल रिलीफ भी मिलता है। यही कंडीशन मेडिकल कॉलेजेस और अस्पतालों के पीजी स्टूडेंट्स पर भी लागू होती है। लगातार कई घंटे काम करके वह डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। ऐसे में एनएमसी (नेशनल मेडिकल कमीशन) ने अपनी नई गाइड लाइन में उन्हें वीकली आफ के साथ साल में बीस पेड लीव की भी सुविधा दी है। मतलब वह काम के बोझ से परेशान होकर अपने परिवार के साथ समय बिता सकें। हालांकि रेजिडेंट्स का कहना है कि कागज पर तो अवकाश दिया गया है लेकिन असलियत में मिले तो जानें।

80 फीसदी अटेंडेंस भी जरूरी है एक साल में
15 से 20 घंटे पीजी स्टूडेंट को अमूमन करना पड़ता है काम

कई लेवल पर होता है काम
जूनियर डॉक्टर्स यानी पीजी स्टूडेंट्स का कहना है कि मेडिकल कॉलेज में कई लेवल पर काम होता है। पहले तो ओपीडी में मरीज को देखना होता है। इसके वार्ड में भर्ती होने के बाद उसकी देखरेख करनी होती है। अगर आपरेशन होना है तो उसमें भी भूमिका तय है। सबसे ज्यादा काम फस्र्ट ईयर पीजी स्टूडेंट को हाता हैै। इससे कम सेंकंड और फिर फाइनल ईयर पीजी स्टूडेंट को पड़ता है। आमतौर पर 15 से 20 घंटे पीजी स्टूडेंट को काम करना पड़ता है। वह चाहकर भी अवकाश नहीं ले सकता है। ऐसे में एनएमसी ने जो छुट्टियां स्वीकृत कर दी हैं, लेकिन वह मिले भी तो बड़ी बात है।

आए दिन होता है झगडृा और मारपीट
एमएलएन मेडिकल कॉलेज में आए दिन छात्रों और मरीजों के बीच झगड़ा होता है। पीजी स्टूडेंट्स का कहना है उन पर काम का भार अधिक होता है। ऐसे में कई बार मरीज के परिजनों पर फ्रस्ट्रेशन निकल जाता है। कई बार पीजी स्टूडेंट छुुट्टी या आराम नहीं मिलने से डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। अगर उनको समय से अवकाश मिले तो इससे उनकी मेंटल हेल्थ काबू में रहेगी और इसका लाभ मरीज और उनके परिजनों को भी मिलेगा। उनका कहना है कि कई बार छुट्टियों को लेकर आपस में मैनेज करना पड़ता है।

एमएलएन में हैं 500 रेजिडेंट
वर्तमान में एमएलएन मेडिकल कॉलेज में 500 रेजिडेंट हैं। यह तीनों इयर्स मिलाकर हैं। जबकि एसआरएन में रोजाना तीन सौ नए मरीज आते हैं और एक हजार बेड हैं जो अक्सर फुल रहते हैं। इतने मरीजों का इलाज और उनकी देखभाल का जिम्मा भी रेजिडेंट्स के कंधे पर हाता है। ऐसे में एनएमसी ने अपनी नई गाइड लाइन में कहा है कि वीकली आफ और बीस दिन की पेड लीव के अलावा पीजी स्टूडेंट को हर साल पांच दिन की एकेडमिक पेड लीव सहित मातृत्व और पितृत्व अवकाश लेने की भी सुविधा होगी। हालांकि एक साल में 80 फीसदी अटेंडेंस भी जरूरी है।

एनएमसी की इस गाइड लाइन का स्वागत है लेकिन मेडिकल कॉलेजों की हालत किसी से छिपी नही है। जूनियर डॉक्टर्स पर अधिक लोड होता है। उनका अवकाश लेना इतना आसान नही होता।
सूर्यभान कुशवाहा, जूनियर डॉक्टर

हम लोगों को कैजुअल लीव मिलना चाहिए। काम का अधिक दबाव होता है। कम से कम बारह घंटे काम करना होता है। इससे भी अधिक ड्यूटी करना पड़ता है।
शेषनाथ, जूनियर डॉक्टर

कोई ऐसा है जो छुट्टी के लिए मना करता हो लेकिन मिलना भी तो चाहिए। एनएमसी ने भले ही पेड लीव दी हो लेकिन काम का अधिक दबाव होने से छुट्टी लेना आसान नही होता है।
हर्षित शर्मा, जूनियर डॉक्टर

मेडिकल कॉलेज की रीढ़ की हड्डी रेजिडेंट डॉक्टर होता है। हमें जब अवकाश चाहिए होता है तो आपस में मैनेज करना होता है। एनएमसी ने बेहतर कदम उठाया है लेकिन यह प्रेक्टिकली प्रभावी तो बेहतर होगा।
सर्वेश मिश्रा, जूनियर डॉक्टर