नवाबगंज कांड में मारी गई वंदना के साथ कातिलों ने पार की थी क्रूरता की हदें
एक साथ हुआ था परिवार के चार सदस्यों का कत्ल, एक पखवारे बाद भी असली गुनाहगारों का पता नहीं
निर्भया कांड के बाद पूरा देश जाग उठा था। विरोध प्रदर्शन ने सरकार की चूलें हिला दी। नतीजा पुलिस ने आरोपियों को पकड़ने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा का पुख्ता इंतेजाम करने के लिए कानून में बदलाव कर दिया। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया के गुनाहगारों को फांसी की सजा पर मुहर लगा दी। सिक्के का एक पहलू यह है तो दूसरा यह कि निर्भया जैसा ही वीभत्स कांड इलाहाबाद में एक पखवारे पहले हुआ। लेकिन, न जनता का सुर मुखर हुआ और न ही पुलिस अफसरों ने घटना की तह तक जाने की कोशिश की। अभी तक तो यह भी पता नहीं है कि नवाबगंज कांड के असली गुनाहगार हैं कौन? क्या इस कांड के असली गुनाहगारों को कभी निर्भया कांड जैसी सजा मिलेगी?
24 अप्रैल को हुई थी घटना
नवाबगंज एरिया के जूड़ापुर गांव में सनसनीखेज हत्याकांड 24 अप्रैल को सामने आया था। 23 अप्रैल की रात गांव के रहने वाले मक्खन लाल, उनकी पत्नी मीरा देवी और उनकी दो बेटियों वंदना और निशा को एक साथ मौत के घाट उतार दिया गया था। बड़ी बेटी बबिता और इकलौता बेटा रंजीत घर पर मौजूद नहीं होने से जिंदा बच गए। वंदना और निशा की हालत जिस किसी ने भी देखी उनके रोंगटे खड़े हो गए। एक के साथ रेप तो हुआ ही था, उसकी आखें फोड़ दी गई थी। प्राइवेट पार्ट पर बेरहमी की हदें पार करते हुए वार किए गए थे। यह देख ग्रामीणों ने विरोध किया लेकिन पुलिस ने पूरा जोर लगाकर उनकी आवाज को दबा दिया। सुरक्षा के नाम पर रंजीत और बबिता को सर्किट हाउस में रख दिया गया।
अब तक नहीं खुला पूरा मामला
इस मामले में रंजीत ने शक के आधार पर गांव के लोगों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज करा दी। यहीं पुलिस को खेलने का मौका मिल गया। उसने नामजद लोगों को गिरफ्तार करके जेल भेजा और काम खतम हो गया। हालांकि, बाद में पहुंचे डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह के साथ कैबिनेट मिनिस्टर नंद गोपाल गुप्ता ने पीडि़तों को न्याय का भरोसा दिलाया लेकिन स्थितियां नहीं बदलीं। आज भी किसी को नहीं पता कि वंदना के साथ क्रूरता की हदें पार करने वाले असली गुनाहगार कौन थे और इस हद तक क्यों गए? जो जेल गए, वह गुनाहगार हैं भी या नहीं?
काई नहीं आया साथ देने
सर्किट हाउस में रखे गए भाई-बहन रंजीत और बबिता परिवार के साथ क्रूरता करने वालों के बारे में जानने को परेशान हैं लेकिन कोई कुछ बताने वाला नहीं है। प्रशासन ने प्रति मृतक दो लाख रुपए देकर उनकी जुबान बंद कर दिया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस घटना पर साहू समाज के कुछ लोगों को छोड़कर कोई इस परिवार का साथ देने नहीं आया। कांग्रेस के लोग बयान देने तक सीमित रहे जबकि बसपा के नेता हाल-चाल पूछने तक नहीं गए। स्थानीय विधायक बयान देकर खामोश हो गए। सपा का दल लखनऊ से आया और चला गया। भाजपा वैसे भी सत्तारूढ़ पार्टी है तो उससे उम्मीद भी करना बेमानी है। लेकिन, स्वंयसेवी संस्थाओं की खामोशी जरूर चौंकाने वाली है। इसलिए कि यह दिल्ली नहीं है।