प्रयागराज (ब्यूरो)राज्य सरकार ने प्रदेश के वन विभाग के 36 हजार से अधिक कार्यरत दैनिक वेतनभोगी कर्मियों को बड़ी राहत दी है। अपर मुख्य सचिव पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मनोज सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अनुपालन हलफनामा दाखिल कर बताया कि वन विभाग के जिन दैनिक कर्मियों को छठे वेतन आयोग से 7000 रूपये दिये जा रहे हैं, सभी को 1 अप्रैल 18 से बकाये सहित प्रतिमाह 18000 रूपये वेतन दिया जायेगा। जो सेवा में नियमित हो चुके हैं उन्हें भी इसी दर से बकाये का भुगतान किया जायेगा। यह कार्य एक हफ्ते में कर दिया जाएगा और 20 वर्ष से अधिक समय से कार्यरत शेष दैनिक कर्मियों के न्यूनतम वेतनमान भुगतान की नीति तैयार कर ली जायेगी।

15 जनवरी तक बन जाएगी पॉलिसी

अपर महाधिवक्ता अशोक मेहता ने भी इसी तरह का आश्वासन दिया और कहा अगली सुनवाई की तिथि 15 जनवरी तक सभी कर्मियों को न्यूनतम वेतनमान देने की नीति तैयार कर ली जायेगी। कोर्ट ने कहा है कि वन विभाग के कार्यरत सभी दैनिक कर्मचारियों को कार्य करने दिया जायेगा। किसी को भी आउटसोर्सिंग कर्मचारी रखकर हटाया नहीं जायेगा। कोर्ट ने अपर मुख्य सचिव पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन या सचिव स्तर के नामित अधिकारी की अध्यक्षता में कमेटी बनेगी। जिसमें सरकार व वन विभाग के पांच या छ: अधिकारी सदस्य होंगे। कमेटी में प्रमुख चीफ वन संरक्षक भी सदस्य होंगे। यह कमेटी वन विभाग के सभी कार्यरत दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को न्यूनतम वेतनमान देने की नीति तैयार करेगी। जिसे अपर मुख्य सचिव द्वारा अनुपालन हलफनामा के मार्फत कोर्ट में पेश किया जाएगा। याचिका की अगली सुनवाई 15जनवरी को होगी।

गोरखपुर के कर्मचारी की याचिका

यह आदेश जस्टिस अजित कुमार ने गोरखपुर वन विभाग में कार्यरत दैनिक कर्मी विजय कुमार श्रीवास्तव की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। याची अधिवक्ता पंकज श्रीवास्तव ने सरकारी अधिकारियों के पिछले रवैए के आधार पर आदेश का पालन होने पर आशंका जताई कहा आश्वासन के बाद अधिकारी पलट सकते हैं। जवाब में अपर महाधिवक्ता ने कहा पिछली बातें भूले, सरकार ईमानदारी व गंभीरता से नीति तैयार करने जा रही है। एक हफ्ते में भुगतान होगा और नीति बनेगी। संदेह का कोई कारण नहीं है। कोर्ट ने उम्मीद जताई कि अधिकारी अपने शब्दों पर अमल करेंगे और 10- 20 साल से अधिक समय से कार्यरत दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को न्यूनतम वेतनमान देने की नीति बनेगी। किसी को हटाया नहीं जायेगा।

2002 से चल रहा है मामला

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2002 में पुत्तीलाल केस में वन विभाग के दैनिक कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन देने की नीति बनाने व नियमानुसार नियमित करने का आदेश दिया था। तब से कई राउंड की मुकद्दमेबाजी के बाद सरकार का ढुलमुल रवैया बना रहा। विशेष सचिव के मार्फत अपर महाधिवक्ता मेहता ने सभी 7000 रूपये वेतन पाने वालों को 18000 रूपये प्रतिमाह देने का आश्वासन दिया। इसके तुरंत बाद सरकार ने इसे मानने से इंकार कर दिया और नये कर्मी रखने पर रोक लगाते हुए कहा काम न हो तो हटा दें और आउटसोर्सिंग से सेवा लेने का निर्देश जारी किया गया। इसपर कोर्ट ने कहा रूख अपनाया और कारण बताओ नोटिस जारी कर कहा आदेश का पालन करें या अवमानना आरोप निर्मित होने के लिए हाजिर हो। इसके बाद सरकार बैंक पुट पर आई और अपर मुख्य सचिव ने हलफनामा दाखिल कर कोर्ट आदेश के पालन करने का आश्वासन दिया।