प्रयागराज ब्यूरो । शहर की सड़कों पर सन्नाटा था। देर रात तक गुलजार रहने वाली दुकानें बंद थीं। हर तरफ खामोशी का आलम था। आम दिनों में जिस रोड पर पैदल चलना मुश्किल था, उस रोड पर बच्चे साइकिलिंग का लुत्फ उठा रहे थे। सड़कों पर चंद ई-रिक्शा और कार ही दिखाई दे रही थीं। पूरा दृश्य लॉक डाउन और कफ्र्यू सरीखे नजर आ रहा था। हम बात कर रहे शनिवार को मतदान वाले दिन पॉश कामर्शियल विथ रेजीडेंसियल इलाकों के हालात की। जब आप मतदान करने व घरों के अंदर ऐसी व कूलर में टीवी की स्क्रीन पर नजर गड़ाए हुए थे। उस वक्त तपती दोपहर में 'दैनिक जागरण आईनेक्स्टÓ रिपोर्टर बाइक से इस खामोशी की चादर में लिपटी सड़कों और बाजारों का जायजा ले रहा था।
जानिए हालात-ए-शहर
शनिवार को मतदान का दिन था। दोपहर के करीब डेढ़ बज रहे थे। रिपोर्टर अपनी ऑफिस से म्योहाल और पत्रिका चौराहा होते हुए सिविल लाइंस पहुंचा। दिन रात गुलजार रहने वाले सिविल लाइंस में खामोशी पसरी हुई थी। रोडवेज बस स्टैंड होने के बावजूद गिने चुने लोग ही सड़कों पर नजर आए। यहां फुटपाथ पर लगने वाली रेड़ी दुकानों से लेकर बड़े मॉल तक बंद दिखाई दिए। करीब दस पंद्रह मिनट रुकने के बाद रिपोर्टर फायर स्टेशन चौराहा पहुंचा तो यहां पूरी तरह सन्नाटे की स्थिति मिली। एंग्लो बंगाली इंटर कॉलेज की बाउंड्री व बिजली घर वाली लाइन में फुटपाथ ही नहीं स्थायी पक्की दुकानों के भी शटर डाउन दिखाई दिए। ऐसा लग रहा था मानों शहर में कफ्र्यू लग गया हो। यहां से जानसेनगंज चौराहे तक सड़क पूरी तरह खाली रहीं। फुटपाथ और सड़क तक फैले रहने वाले दुकानों के सामान शटर के भीतर कैद दिखाई दिए। इस चौराहे से शाहगंज होते हुए घंटा घर चौक पहुंचने पर खामोशी का आलम रहा।
लॉकडाउन में दिखी थी ऐसी खामोशी
दरअसल सुबह आंख खुलने से लेकर रात में सोने तक चौक की मार्केट गुलजार रहती है। वजह यह है कि यह इलाका शहर ही नहीं आसपास के जिलों के लिए भी सबसे बड़ा व्यापारिक हब है। साथ ही यह क्षेत्र मार्केट के साथ रेजीडेंसियल भी है। आम दिनों में जानसेनगंज चौराहे से लेकर चौक घंटाघर, फांसी नीम से शाहगंज थाना रोड पर पैदल चुना मुश्किल रहता है। मगर शनिवार को मतदान के दिन यहां की सड़कें क्रिकेट मैदान की तरह सपाट थीं। खाली मिली सड़कों पर यहां बच्चे साइकिलिंग का मजा ले रहे थे। पूरे चौक की दुकानों के शटर में ताला लटक रहा था। हर प्रकार की दुकानें बंद मिलीं। जिस चौक में बाइक
लेकर घुसने में शुक्रवार तक पसीने छूट रहे थे वहां का यह सन्नाटा किसी आश्चर्य से कम नहीं था। बीच सड़क तक लगने वाली दुकानें भी गायब मिलीं। एक दो ई-रिक्शा व कार सवार ही रोड पर दिखाई दिए। ऐसा लग रहा था मानों आज बंधन से मुक्त चौक इलाका खुली फिजां में सांस लेते हुए ठहाके लगा रहा है। आप यहां की खामोशी का अंदाजा लॉक डाउन के हालात की कल्पना करके लगा सकते हैं।