आईसीसीसी में पहली बार किया गया यूज, दूसरी लहर में हुआ इंट्रोड्यूज
कम्प्यूटर पर यलो, आरेंज और रेड कलर में दिखते थे अधिक संक्रमित इलाके
कोरोना की दूसरी लहर में केसेज को काबू करने में तकनीक का भी इस्तेमाल किया गया। जिसमें हीट मैप एनालिसिस टॉप पर रहा। इस साफ्टवेयर का यूज अधिक संक्रमित इलाकों में कंटेनमेंट जोन बनाने में किया गया। जिससे यह पता चलता रहा कि किस एरिया में संक्रमण का स्तर कितना है। यहां पर अधिक सख्ती बरतने के साथ तमाम अभियान चलाए गए जिससे कोरोना को फैलने से रोका जा सका। इस साफ्टवेयर का कोरोना की दूसरी लहर में पहली बार यूज किया गया।
अपने आप ट्रेस हो जाते थे एड्रेस
हीट मैप एनालिसिस साफ्टवेयर को जीपीएस से इन बिल्ट किया गया था। रोजाना आने वाले पाजिटिव केसेज जब कम्प्यूटर पर अपलोड किए जाते थे तब यह साफ्टवेयर इन एड्रेस को आटोमेटिक ट्रेस कर लेता था और गूगल मैप पर संबंधि त एरिया में संक्रमण का घनत्व नजर आने लगता था। एग्जाम्पल के तौर पर अगर प्रीतमनगर में 15 नए केसेज आए तो इनके नाम और पता अपलोड करते ही गूगल मैप पर इस एरिया में यलो या लाल डाट्स नजर आने लगते थे। जिससे पता चलता था कि कौन सा एरिया कंटेनमेंट या क्लस्टर जोन बनाया जा सकता है।
कलर बताते हैं संक्रमण की दर
जिस एरिया में संक्रमण जितना अधिक होता है, हीट मैप एनालिसिस उसको वैसा ही प्रदर्शित करता है। अधिकारियों की माने तो जिस एरिया में महज एक केस होता था उसे ब्ल्यू कलर के जरिए प्रदर्शित किया जाता था। वही अधिक संक्रमण वाले एरिया को यलो, आरेंज और डार्क रेड डाट्स के जरिए साफ्टवेयर दिखा रहा था। जिससे टीमों को पता चल जाता था कि कौन से एरिया में सख्ती करना ह और कहां ढील देना है।
तुरंत चलाई जाती है एक्टिविटी
आरेंज और रेड जोन एरियाज में तत्काल तमाम अभियान चलाए जाते थे। यहां पर टीमों को भेजकर डोर टू डोर सर्वे व रैपिड टेस्टिंग कराई जाती थी। इसके अलासा सर्वे टीमों को भेजा जाता था। अधिकारियों का कहना है कि हैवी कंटेनमेंट जोन में सर्विलांस टीमों को लगाया जाता था। अधिक दूरी के एरिया में बांस बल्ली लगाकर सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया जाता था। इन एरिया में मजिस्ट्रेट ड्यूटी लगाई जाती थी। इस तरह से हैवी कंटेनमेंट एरियाज में संक्रमण की दर को कम किया जा सका।
क्यों पड़ी जरूरत
कोरोना की पहली लहर में भी आईसीसीसी में गूगल मैपिंग के जरिए शहर में संक्रमण का जायजा लिया जाता रहा।
दूसरी लहर में जब प्रतिदिन 2000 से अधिक केसेज आने लगे तब प्रशासन और नगर निगम के अधिकारियों ने मिलकर इस साफ्टवेयर को प्लान किया।
इसके जरिए कम्युनिकेबल डिजीज के फैलाव व घनत्व का जीपीएस व गूगल मैप के जरिए मानीटरिंग की जाती है।
नगर आयुक्त राजीव रंजन के सुझाव पर डीएम भानुचंद्र गोस्वामी ने आईसीसीसी के जरिए इस तकनीक का सहारा लिया
इससे स्वास्थ्य विभाग, पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को संक्रमित एरिया में कार्रवाई करने में सफलता हासिल हुई।
इस तकनीक का इस्तेमाल खासकर पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों द्वारा किया गया लेकिन इससे स्वास्थ्य विभाग को खासी मदद मिली। हमें गूगल मैप के जरिए पता चल जाता था कि कौन सा एरिया वर्तमान में कितना संक्रामक है। कहां पर अधिक रेड डॉट दिख रहे हैं। उन एरिया में तत्काल गतिविधियां तेज कर दी जाती थीं।
डॉ। ऋषि सहाय
नोडल कोविड, प्रयागराज