राष्ट्रीय पुस्तक मेले में पाठकों को नहीं रिझा सकी स्वाइपिंग मशीन
ALLAHABAD: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों का असर राजनैतिक पार्टियों के साथ जनता के सिर पर भी देखने को मिल रहा है। चुनाव जीतने की चर्चाएं हर तरफ हो रही हैं। इस चुनावी सरगर्मी का सबसे बड़ा नुकसान राष्ट्रीय पुस्तक मेले में झेलना पड़ रहा है। असेम्बली इलेक्शन ने पुस्तक मेले का जायका बिगाड़ दिया है। देश के नामी गिरामी प्रकाशकों के स्टॉलों पर न तो उम्मीद के मुताबिक पुस्तक प्रेमियों की भीड़ पहुंच रही है और न ही पुस्तकों की खरीदारी हो रही।
संडे को ही लग गया था अनुमान
दस दिवसीय पुस्तक मेले का आगाज तीन फरवरी को हुआ था। उस समय इलाहाबाद में चौथे चरण के चुनाव के लिए नामांकन प्रकिया चल रही थी। पांच फरवरी को रविवार था, उस दिन भी पुस्तक मेले में खास रौनक नहीं दिखी थी। राजपाल एंड संस, वाणी प्रकाशन व पुस्तक महल के सेल्स मैनेजर की मानें तो छुट्टी के दिन हमेशा मेले में पाठकों की भीड़ होती थी। इस बार स्टॉलों पर ऐसा नहीं दिखाई दिया था।
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66 स्वाइपिंग मशीन की सुविधा
नालेज हब की ओर से आयोजित इस राष्ट्रीय पुस्तक मेला में 66 स्टॉल लगाए गए हैं। जिनमें पुस्तक महल, राजपाल एंड संस, राजकमल समूल, प्रभात प्रकाशन, स्कॉलर हब, तिरुमाला सॉफ्टवेयर व आनलाइन गाथा सहित कई प्रकाशकों के स्टॉल शामिल हैं। सभी स्टॉलों पर नोटबंदी के असर को देखते हुए प्रकाशकों ने स्वाइपिंग मशीन की भी सुविधा पाठकों को उपलब्ध कराई है।
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पिछले साल थी 24 लाख की बिक्री
इस वर्ष की तरह ही जीजीआईसी
परिसर में वर्ष 2015 में भी आठवां राष्ट्रीय पुस्तक मेला आयोजित किया गया था। पांच सौ व एक हजार की नोट बंद किए जाने के बाद दिसम्बर 2016 में लगने वाला नौवा पुस्तक मेला स्थगित कर दिया गया था। जो इस समय चल रहा है। आयोजक देवराज अरोरा के मुताबिक आठवें पुस्तक मेले में दस दिनों में 24 लाख से अधिक रुपए की पुस्तकें शहरियों ने खरीदी थी।
पुस्तक मेला तीन फरवरी से लगा है। उस समय इलाहाबाद में चुनाव की नामांकन प्रकिया चल रही थी। अधिकारी और कर्मचारी उसमें व्यस्त रहे तो युवा वर्ग भी प्रत्याशियों के प्रचार में जुट गया है। हमारे स्टॉल पर तो सात दिनों में एक लाख रुपए की भी सेल नहीं हुई। अब उम्मीद भी टूट गई है। पांच फरवरी को संडे होने केबाद भी सन्नाटा ही था। संडे को ही अंदाजा लग गया था कि इस बार का मेला फीका हो जाएगा।
पंकज सिंह मेहरा,
पुस्तक महल
इस बार पुस्तकों की सेलिंग न होने का सबसे बड़ा कारण चुनाव ही है। प्रकाशकों ने स्वाइपिंग मशीन की सुविधा दी थी, फिर भी चुनावी सीजन में बिक्री प्रभावित हो गई। यहां केन्द्रीय विश्वविद्यालय और एक राज्य विश्वविद्यालय है, लेकिन वहां पढ़ने वाले अधिकतर छात्र किसी न किसी राजनैतिक दल से जुड़े हैं। इसका असर तो पड़ना ही था।
अंजनी कुमार मिश्रा,
राजकमल समूह
आठवें पुस्तक मेले में 24 लाख रुपए तक की पुस्तकों की बिक्री स्टॉलों से हुई थी। इस समय इलाहाबाद सहित पूरे प्रदेश में चुनावी सरगर्मी जोरों पर है। हर कोई उसमें व्यस्त है। लेकिन पाठकों का रुझान कम नहीं हुआ है। इसके बाद भी सात दिन में 14 लाख रुपए के आसपास पुस्तकों की बिक्री हुई है।
देवराज अरोरा,
आयोजक नॉलेज हब