प्रयागराज (ब्यूरो)।
ऑनलाइन परिचर्चा में अपने विचार रखते हुए प्रो। वीके सिंह ने कहा कि आज का युवा वर्ग अपने कैरियर को लेकर तनाव में रहता है। कभी कभी अवसाद में जाने से आत्महत्या जैसे घातक कदम भी उठा लिए जाते हैं। ऐसे में आज के समय में जरूरी है कि हम समाज को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करें। वरिष्ठ चिकित्सक एवं विश्व आयुर्वेद मिशन के अध्यक्ष डॉ जी एस तोमर ने कहा कि मानसिक अवसाद को कम करने के लिए हमे यह प्रयास करना चाहिए कि हमारे आचरण, मन, वचन एवं कर्म से किसी को कष्ट न हो और न ही कोई व्यक्ति हमारी वजह से मनोरोगी बने। नई पीढ़ी को चाहिए कि श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार अपना कर्म करे परंतु फल की चिंता न करे। क्योंकि चिंता ही मानसिक रोगों का मूल कारण है। उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद में बताये गए सत्ववाजय चिकित्सा के विषय मे जानकारी दी, साथ ही मन एवं मस्तिष्क के लिए उपयोगी ब्राह्मी, मण्डूकपर्णी, अश्वगंधा, गिलोय, वचा, शंखपुष्पी जैसे मेध्य रसायनों के महत्व को बताया।
मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च होता है 2 प्रतिशत बजट
गुरुकुल कैंपस हरिद्वार के निदेशक डॉ अरुण त्रिपाठी ने कहा कि आज विश्व में हर सातवां व्यक्ति मानसिक रोगी है। आज स्वास्थ्य बजट का मात्र दो प्रतिशत ही मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता है। तनाव की वजह से ही नई पीढ़ी में ड्रग्स एवं अन्य नशे की लत देखी जा रही है। न्यूक्लियर फैमिली में बच्चों को स्वस्थ वातावरण नही मिल पा रहा। जो पहले संयुक्त परिवार में मिलता था। मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज की पूर्व शोध अधिकारी डॉ शांति चौधरी ने बताया कि मानसिक रोगी आज चिकित्सक से परामर्श लेने में संकोच करता है। यह संकोच त्यागना होगा क्योंकि मानसिक रोग भी बीपी और डायबिटीज की तरह एक गंभीर समस्या है। उन्होंने बताया कि आयुर्वेद के साथ ही होलिस्टिक मेडिसीन से भी इसका उपचार नितांत आवश्यक है। बीएचयू, एम्स नई दिल्ली से भी जुड़े एक्पट्र्स ने कई टिप्स दिए। संचालन विश्व आयुर्वेद मिशन के प्रदेश सचिव डॉ अवनीश पाण्डेय ने किया।