प्रयागराज (ब्यूरो)हर साल जून से अगस्त के बीच नगर निगम द्वारा फागिंग कराई जाती है। इसमें जबरदस्त मैन पावर और लाखों रुपए का कीटनाशक और केमिकल यूज होता है लेकिन नतीजा सिफर होता है। मच्छरों की सेहत पर इस धुएं का कोई प्रभाव नही होता है। कुछ क्षणों के लिए उनकी संख्या कम जरूर होती है, लेकिन फिर से प्रकोप शुरू हो जाता है। हालांकि इसके कई कारण हैं। फिर भी लोगों की मांग है कि फागिंग के पैटर्न में अब बदलाव किया जाना चाहिए।

दवाइयों से नहीं घबराते मच्छर
अधिकारी बताते हैं कि पिछले 15 से 20 साल से मच्छरों पर लगाम लगाने के लिए फाग्रिंग में दो दवाईयों का यूज किया जाता है। इनमें मैलाथियान टेक्निकल और टेमीफास शामिल है। एक्सपट्र्स की माने तो लंबे समय से एक ही दवा का यूज होने से अब मच्छरों को इनसे कम खतरा महसूस होता है। इनकी वजह से थोड़ी देर के लिए भागते जरूर है लेकिन फिर से असर कम होते ही वापस आ जाते हैं। यह तय है कि इन दवाईयों से मच्छर मरते नही हैं।

गली-मोहल्लों तक होती है फागिंग
ऐसा नही है कि डेंगू और मलेरिया से बचाव के लिए नगर निगम द्वारा एफर्ट नही किया जाता है।
हर साल जून से अगस्त के बीच गली-मोहल्लों तक फागिंग कराई जाती है।
इसके लिए नगर निगम द्वारा 135 छोटी मशीने लगाई गई हैं।
यह मशीनें साइकिल पर रखकर मोहल्लों में फागिंग कराई जाती है।
इसके अलावा 16 बडी मशीनें हैं जिसमें से 6 मशीन खराब पड़ी हैं।
नगर निगम के अधिकारियों की माने तो शहर में कुल सौ वार्ड हैं और प्रत्येक वार्ड में दो कर्मचारियों को केवल फागिंग के लिए अपाइंट किया गया है।
इस तरह से कुल दो सौ कर्मचारी इस काम में अपना योगदान देते हैं।

खर्च हो जाती है 800 लीटर दवा
नगर निगम के स्टोर कीपर संजय श्रीवास्तव बताते हैं कि हर साल बारिश के सीजन में डेंगू और मलेरिया से बचाव के लिए तीन माह में 800 लीटर कीटनाशक का फागिंग में यूज किया जाता है। यह दवा शेड्यूल वाइज वार्डों में डलवाई जाती है। मैलाथियान और टेमीफास में धुएं के लिए डीजल को मिक्स किया जाता है। उधर मलेरिया विभाग का कहना है कि हमारी ओर से इस साल दो सौ लीटर कीटनाशक नगर निगम का उपलब्ध कराया गया है। जिससे प्रत्येक वार्ड में दवा की बेहतर तरीके से फागिंग कराई जा सके।

सेहत के लिए खतरा फिर भी बना मजबूरी
मैलाथियान को डीजल में मिलाकर फागिंग की जाती है।
इससे मशीन से घना धुआं निकलता है और इससे मच्छर भागने लगते हैं।
एक्सपट्र्स का कहना है कि मच्छर इन कीटनाशकों से मरते नही हैं।
उनके अंदर प्रतिरोधी क्षमता विकसित हो चुकी है।
उल्टे इस धुएं से लोगों को नुकसान हो सकता है।
जो लोग सांस के मरीज हैं या कमजोर हैं, उनको सांस लेने में तकलीफ की शिकायत सामने आती है।
बहुत से लोगों की शिकायत है कि फागिंग के धुएं से उनका सिरदर्द करता है।
नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग से रिटायर हो चुके कर्मचारी अरुण जैन बताते हैं कि कुछ साल पहले 42 डिग्री से अधिक तापमान होने पर मच्छर खत्म हो जाते थे लेकिन अब यह जीवित रहते हैं।
इसलिए फागिंग की अधिक आवश्यकता पड़ती है। इसी तरह से आसमान में घने बादल और नमी का दबाव होने पर धुआं ऊपर नही जाता है।
यह लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचाने लगता है। इसलिए पूर्व में जून से अगस्त के बीच फागिंग कम की जाती थी।
लेकिन मच्छरों के प्रकोप और डेंगू के बढ़ते मामलों को देखते हुए इस सीजन में अधिक फागिंग करनी पड़ती है।

फागिंग के लिए हमारी ओर से दो सौ लीटर मैलाथियान और दो सौ लीटर टेमीफास नगर निगम को उपलब्ध कराया गया है। बाकी वह कीटनाशक मिलाकर बारिश के सीजन में शहर के प्रत्येक वार्ड में फागिंग कराएंगे। यह कहना गलत है कि दवाओं का मच्छरों पर असर नही है। कई अन्य कारण भी हैं जिसकी वजह से मच्छर पनपते हैं।
आनंद सिंह, जिला मलेरिया अधिकारी प्रयागराज

केवल फागिंग से मच्छरों को नही भगाया जा सकता है। नालियों को साफ कर उनमें एंटी लार्वा स्प्रे कराया जाता है। इसकी वजह से मच्छरों से काफी निजात मिलती है। सरकार की तरफ से एप्रूव कीटनाशक का फागिंग में इस्तेमाल किया जाता है जिसका असर मच्छरों पर भरपूर होता है।
डॉ। महेश कुमार, नगर स्वास्थ्य अधिकारी प्रयागराज

फागिंग के धुएं से मच्छर कुछ देर के लिए जरूर गायब हो जाते हैं लेकिन कुछ ही देर में वे लौट आते हैं। मेरी नजर में जब तक साफ सफाई ठीक से नही होगी तब तक फागिंग के भरोसे मच्छरों को नही भगाया जा सकता है। फागिंग के दौरान आधुनिक तरीकों और एडवासं कीटनाशक का यूज किया जाना चाहिए।
महेंद्र गोयल, व्यापारी नेता