24 से 48 घंटे में गले से फेफड़े तक पहुंच रहा है वायरस
बच्चों के लिए भी खतरा बढ़ा, ढाई साल की बच्ची की हो चुकी है मौत
कोरोना पार्ट-2 में आया वायरस पिछले साल आए कारोना वायरस से ज्यादा खतरनाक है। इसे खुद डॉक्टर्स स्वीकार कर रहे हैं। उनकी मानें तो इस बार सामने आ रहे मरीज अधिक लक्षण वाले हैं। इन्हें ऑक्सीजन और वेंटीलेटर की आवश्यकता ज्यादा है। बुधवार रात ढाई साल की बच्ची की कोरोना से मौत के बाद माना जा रहा है कि बच्चे भी खबरे से बाहर नहीं हैं।
देखते ही देखते जाम हो रहा सीना
कोरोना के नए स्ट्रेन को लेकर डॉक्टर्स भी आश्चर्यचकित हैं।
पिछले साल फैले कोरोना में ए सिम्पोटेमेटिक मरीज अधिक थे।
इस बार अप्रैल में दस्तक देने वाले कोरोना वायरस में लक्षण वालों की तादाद बढ़ गई है।
खांसी, फीवर, बदन दर्द और सांस लेने में दिक्कत वाले मरीजों की संख्या बढ़ रही है।
मरीजों के मुताबिक महज 24 से 48 घंटे के भीतर उन्हें सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगी।
पूछताछ में भर्ती मरीजों का कहना है कि उन्हें शुगर या बीपी की बीमारी नही है।
लेकिन, जब जांच होती है तो किसी का शुगर 400 है या 500 आ रहा है।
ब्लड प्रेशर भी दो सौ के आंकड़े को छू रहा है।
क्या बढ़ेगा मार्टेलिटी रेट
केवल प्रयागराज की बात करें तो पिछले साल अप्रैल में कोरोना के मरीज आना शुरू हुए थे और अगस्त-सितंबर में यह पीक पर पहुंचा था। इस दौरान रोजाना सामने आने वाले संक्रमितों की संख्या 300 से 400 के बीच थी। इस साल महज 22 दिन के भीतर संक्रमितों की संख्या एक हजार का आंकड़ा क्रास कर गई है और मरने वालों का आंकड़ा भी प्रतिदिन छह पहुंच गया है। स्पीड यही रही तो इस साल कोरोना की मार्टेलिटी रेट नई चुनौतियां पेश कर सकती है।
वायरस नया, इलाज पुराना
तेजी से फैलते संक्रमण और सीरियस मरीजों की संख्या को देखने के इसे नए वायरस का असर माना जा रहा है। माना जा रहा है कि यह कोरोना का नया स्ट्रेन है और वायरस अपने नए स्वरूप में वापस लौटा है। डबल म्यूटेंट होने के कारण यह अधिक संक्रामक है। बावजूद इसके हॉस्पिटल्स में पुरानी गाइड लाइन पर ही इलाज किया जा रहा है। बेली हॉस्पिटल भी लेवल टू है और यहां पर गंभीर मरीजों को इलाज के लिए एंटी वायरल रेमिडेसीविर दी जा रही है। सामान्य मरीजों को डाइक्सीसाइक्लीन, एजीथ्रोमाइसीन, पैरासिटामाल, सिट्रीजिन और खांसी का सीरप दिया जा रहा है। साथ में जिंक और विटामिन सप्लीमेंट भी दिए जा रहे हैं। यही इलाज पिछले साल भी चल रहा था।
मरीजों को चाहिए आक्सीजन सपोर्ट
पिछले बार की अपेक्षा इस बार अधिक मरीजों को आक्सीजन सपोर्ट चाहिए। बेली हॉस्पिटल में ऑक्सीजन सपोर्ट वाला महज एक बेड बचा है। एसआरएन हॉस्पिटल का भी लगभग यही हाल है। सबसे ज्यादा हाईफ्लो आक्सीजन सपोर्ट की मरीजों को जरूरत हो रही है।
कुछ कहा नहीं जा सकता। पिछले साल के मुकाबले इस बार कोरोना की मारक क्षमता बढ़ी हुई है। लोगों की लापरवाही की वजह से गंभीर मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है। यह चिंता का विषय है। इसलिए सभी को होशियार रहना होगा।
डॉ। मनोज माथुर
सीनियर फिजीशियन, एसआरएन हॉस्पिटल
पिछले साल बुजुर्गो की संख्या अधिक थी लेकिन इस बार सभी उम्र के मरीज सामने आ रहे हैं। 50 साल से अधिक वालों में गंभीर मरीज ज्यादा हैं। कोरोना से बचाव में लोगों को सोशल डिसटेंसिंग का पालन करना होगा। तभी वह संक्रमण से बच सकेंगे।
डॉ। एमके अखौरी
अधीक्षक, बेली हॉस्पिटल