प्रयागराज (ब्यूरो)। दारागंज स्थित प्रयागराज संगम स्टेशन पर कई सालों से बंदरों का आतंक चला आ रहा है। यहां दस-बीस नहीं बल्कि सैंकड़ों बंदर हैं। जो रोज उत्पात मचाकर स्टेशन पर रखे गमले को तोडऩे के साथ ही परिसर के अंदर और बाहर लगे सीसीटीवी कैमर के तार तक नोंच दे रहे हंै। यहां पहुंचने वाले कई लोगों को काट भी चुके हैं। इनके डर से रेलवे स्टाफ से लेकर पैसेंजर्स गुलेल-डंडा लेकर चलते है। दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट इस मुद्दे को उठाया तो वन विभाग से लेकर रेलवे तक हरकत में आया। टारजन को पकडऩे के लिए वन विभाग ने टारजन को बीस बंदर पकडऩे की लिखित अनुमति थी। पहले दिन टारजन ने 13 पकड़ा उसके ठीक एक महीने बाद 14 पकड़े गए। एक महीने में कुल अब 27 बंदर पिंजड़े में आए है। रेलवे अधिकारियों की माने तो जिस रफ्तार से टारजन पकड़ रहा है। उसको लगभग एक साल लग जायेगा।
टारजन के साथ लोगों ने भी उठाया सवाल
सोरांव एरिया से आए बीके टारजन ने वन विभाग द्वारा बंदर पकड़े जाने की मिलने वाली अनुमति पर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि वन विभाग ने सिर्फ 20 बंदरों को पकडऩे की अनुमति दी थी। उन्होंने यह टारगेट एचीव कर लिया है। विभाग से अनुमति और बजट जारी हो तो वह अपना एफर्ट और तेज करें। कई बार बजट की दिक्कत के चलते रफ्तार धीमी हो जाती है। बंदर को पकडऩे के लिए पिंजड़े से लेकर खाने तक का इंतजाम रेस्क्यू के दौरान होता है। बंदरों को पहले भरपूर खाना खिलाना पड़ता है। इसके अलावा ट्रेवल पर खर्च होता है। एक बंदर को पकडऩे के लिए आज भी पुराना रेट 14 व 15 सौ रुपये ही दिया जा रहा है। वहीं स्टेशन पर पहुंचने वाले लोगों का कहना है कि बंदरों के आतंक के चलते दूसरा विकल्प ढूंढ पड़ेगा। लोकल ट्रेनें ज्यादातर यहीं से संचालित होने लगी हैं तो यहां आ जाते थे।
एक महीने में 27 बंदरों को टारजन व उनकी टीम ने पकड़ा है। इनका प्रयास जारी है। लेकिन रफ्तार थोड़ी धीरे है। रोजना बंदरों के आतंक से काफी नुकसान हो रहा है। इनके चलते परिसर के बाहर व अंदर लगे सीसीटीवी कैमरे तोड़े गए। जिनको कई बार बदले गए।
एएम पाठक स्टेशन अधीक्षक प्रयागराज संगम, उत्तर रेलवे