-10 परसेंट मंथली ब्याज पर दी जाती है रकम

-रकम देने से पहले एक महीने का ब्याज एडवांस में काटा जाता है

-वसूली को पालते हैं गुंडे, सरकारी कर्मचारी भी फंसे चंगुल में

ALLAHABAD: बॉलीवुड मूवी मदर इंडिया में सूदखोर साहूकार सुखी लाला के नरगिस के पूरे परिवार को तबाह करने की कहानी तो आपको याद ही होगी। सेल्युलाइड के पर्दे की यह कहानी अब सिटी में स्याह हकीकत के रूप में दिखने लगी है। सिटी की गलियों में सुखी लाला जैसे सैकड़ों सूदखोरों का जाल फैला हुआ है। लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर गहने से लेकर गाड़ी या जमीन जो मिल जाए सबकुछ रकम वापसी की गारंटी के तौर गिरवी रखा जा रहा है। मजबूरी के मारे लोगों से हर महीने 10 फीसद का ब्याज वसूला जाता है। कई बार मामूली सी रकम पर भी ब्याज का बोझ इस कदर बढ़ जाता है कि गरीब लोगों का सूदखोरों के चंगुल से निकल पाना नामुमकिन हो जाता है। कई लोग ऐसे हैं जो सिर्फ ब्याज ही अदा करते करते हैं, मूल तो जस का तस बना रहता है। पुलिस से सेटिंग और वसूली के लिए पाले गए गुंडों के आतंक के आगे आम आदमी की चलती भी नहीं है।

हर दफ्तर में नेटवर्क

नगर निगम, राजकीय मुद्रणालय, विकास भवन, पीडब्ल्यूडी के साथ रेलवे के निचले स्तर के हजारों कर्मचारी सूदखोरों के चंगुल में फंसे हैं। अधिकांश लोग घर बनवाने व बच्चों की शादी के लिए कर्जदार बने और आज तक इससे निकल नहीं पाए। वसूली का तरीका भी नायाब होता है। अब भले ही सैलरी सीधे खाते में जाती हो, लेकिन वसूली तो अब भी दफ्तरों के गेट पर ही होती है। सैलरी आने के दूसरे दिन ही सूदखोर पहुंच जाते हैं और अपने गुडों को लगाकर वसूली कराते हैं। जो रुपए लेकर नहीं आता, उसके घर तक जा पहुंचते हैं।

10 महीने में दोगुनी रकम

ब्याज पर रकम देने का गणित बिल्कुल क्लीयर है। अगर कोई व्यक्ति एक लाख रुपए का कर्ज लेता है तो उससे हर महीने 10 हजार रुपए का ब्याज लिया जाता है। जब उसे रकम दी जाती है तो 10 हजार रुपए का ब्याज एडवांस में काट लिया जाता है। मतलब कि लोगों के हाथ में आते सिर्फ 90 हजार रुपए। अगर कोई हर महीने 10 हजार रुपए ब्याज देता रहे तो भी एक साल बाद एक लाख रुपए बचे रहते हैं। वहीं, ब्याज देने में एक महीने का भी गैप किया तो पेनाल्टी दोगुनी।

कोई अंकुश नहीं

कलेक्ट्रेट से ब्याज पर रुपए बांटने के लिए लाइसेंस दिया गया है, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या कुछ दर्जन ही है। जबकि शहर में ब्याज पर रकम देने का काम करने वालों की संख्या पांच हजार से अधिक है। ब्याज पर रकम बांटने वाले मोहल्लों के रसूखदार लोग या सोना-चांदी का काम करने वाले होते हैं। मुट्ठीगंज, कोठापारचा, बहादुरगंज, बलुआघाट, चौक, शिवकुटी, धूमनगंज, अल्लापुर में ब्याज पर रुपए देने वाले लोगों की संख्या अच्छी खासी है। सूदखोर उन इलाकों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जहां सफाई कर्मचारी, छोटे कारोबारी व प्राइवेट जॉब करने वाले लोग रहते हैं। इन्हीं लोगों को अक्सर रुपए की जरूरत पड़ती है। सारा धंधा गुंडों की शह पर और पुलिस की सरपरस्ती में चलता है। जब कभी झाम हो जाता है तो पुलिस भी सूदखोरों की ही मदद करती है।

मुश्किल है चंगुल से निकलना

-नगर निगम से 2008 में रिटायर हुए मुट्ठीगंज के रहने वाले सफाई कर्मचारी ने घर बनवाने के लिए एक लाख रुपए का कर्ज लिया था। चार साल तक तो उनकी पेंशन ब्याज देने में ही चली गई। उनको एक लाख रुपए से छुटकारा पाने में पांच साल लग गए। वह छूटे भी तब जब उनके दो रिश्तेदारों ने आर्थिक मदद दी।

-झारखंड से आकर सिटी में प्राइवेट जॉब करने वाले 28 साल के युवक को 2012 में मां के इलाज के लिए 50 हजार रुपए की जरूरत पड़ी थी। उसने अपने दोस्त की मदद से एक साहूकार से रुपए उधार लिए थे। उसको भी चंगुल से छूटने में दो साल से अधिक का समय लग गया था।