प्रयागराज (ब्यूरो)।अगर किसी एक्ट में कोई बदलाव होता है तो उसकी जानकारी भी मिलनी चाहिए। लेकिन जीएसटी में ऐसा नहीं है। सरकार एक्ट में मोडिफिकेशन कर देती है लेकिन इसके बारे में व्यापारियों को पता नहीं चलता है। अक्सर यह देखने में आता है। कई बार वस्तुओं का टैक्स स्लैब बदल जाता है लेकिन पता नही चल पाता है। एक ही धातु से बनी वस्तुओं का अलग अल टैक्स होता है, इसकी जानकारी भी नहीं हो पाती है।
बदल दिया व्यापार का तरीका
एग्जाम्पल के तौर पर सरकार ने हाल ही में आटे को जीएसटी में शामिल कर लिया। इसमें 25 किलो की आटे की बोरी पर 5 फीसदी टैक्स लगाया गया है। इसका जनता ने विरोध भी किया था। इसके बाद कंपनियों ने तरीका बदलते हुए अब 30 किलो की बोरी में आटा बेचना शुरू कर दिया। इससे सरकार के टैक्स का नुकसान हो गया। हालांकि पब्लिक को अभी भी इसकी जानकारी नहीं है।
रिटर्न की प्रॉसेस में लगातार चेंजेस
शुरुआत में जीएसटी में रिटर्न फाइलिंग का जो नियम था उसमें अब बदलाव आ रहा है। वर्तमान में सरकार ने दो तरीके के फाइलिंग के नियम बनाए हैं। रेगुलर जीएसटी के व्यापारी हर माह रिटर्न फाइल करते हैं जबकि कम्पोजिशन वाले व्यापारी तीन माह में एक बार रिटर्न फाइल करते हैं। इनमें भी हाल ही मेंं बदलाव हुए हैं। इसकी जानकारी भी लोगों को नही है। मोडिफिकेशन से आम व्यापारी परेशान है।
एचएसएन कोड में भी चल रहा मोडिफिकेशन
दो साल पहले कहा गया था कि किसी भी वस्तु की खरीद या बेचने में एचएसएन कोड में बदलाव होगा। यानि पांच करोड़ से ऊपर के व्यापार में छह डिजिट का एचएसएन कोड मान्य होगा। लेकिन अब एक नया नियम आ रहा है कि चार डिजिट का एचएसएन कोड अब स्वीकार नही किया जाएगा। इस मोडिफिकेशन के बारे में भी लागों को नही पता है। ऐसे जब लोग इनवाइस या बिल पर गलत एचएसएन कोड डालेंगे तो उन्हें कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
यहां भी मोडिफिकेशन का विवाद
देखा जाए तो अक्सर एक ही वस्तु से बने तमाम उत्पादों पर अलग अलग जीएसटी वसूली जाती है। एग्जाम्पल के तौर पर आटे से बनी रोटी पर पांच फीसदी और पराठे पर 18 फीसदी जीएसटी वसूली जा रही है। सामान्य दूध पर टैक्स नही लगता लेकिन फ्लेवर्ड मिल्क पर 12 फीसदी टैक्स देना होता है। एक अन्य मामले में पापड़ पर जीएसटी नही लगती है और फा्रयम पर 18 फीसदी टैक्स वसूला जाता है। जबकि फ्रायम आलू और साबूदाने से मिलकर बनता है।
यह एक बड़ी समस्या है। एक ही उत्पाद के मोडिफाइड स्वरूप की अलग अलग टैक्स दरें लगाई गई हैं। इनका टैक्स स्लैब अलग है। इसकी जानकारी भी नही होती है। इसकी वजह से कंपनियों ने व्यापार का तरीका भी बदल दिया है। जीएसटी की इन विसंगतियों को बदल देना चाहिए।
विभू अग्रवाल, व्यापारीमोडिफिकेशन के मामले कोर्ट में भी जा चुके हैं लेकिन इन पर सरकार का रुख साफ होता है। तर्क के साथ मोडिफिकेशन को सही साबित कर दिय ाजाता है। इतना ही नही, इनकी जानकारी भी व्यापारियों को नही होती है। इसलिए वह कानूनी कार्रवाई का शिकार हो जाते हैं।
राहुल यादव, टैक्स एक्सपर्ट