प्रयागराज (ब्यूरो)।क्या आपको पता है कि घरों, दुकानों और फैक्ट्रियों से निकलने वाले रोजाना लाखों लीटर सीवेज को ट्रीट कर सीधे नदियों में बहा दिया जाता है। अगर इस पानी के जरिए ग्राउंड वाटर लेवल को रिचार्ज किया जाए तो इससे भविष्य में लोगों को काफी फायदा हो सकता है। आने वाली पानी की कमी की समस्या से निजात मिल सकती है। प्रयागराज में कुल ऐसी नौ एसटीपी लगाई गई हैं जिनके जरिए प्रतिदिन तीन सौ से अधिक एमएलडी पानी को गंगा में बहा दिया जाता है।

प्लानिंग का दिखता है अभाव
इस समय प्रयागराज शहर में नौ एसटीपी यानी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाया गया है। इनके जरिए 326 एमएलडी पानी का ट्रीटमेंट किया जाता है। विभिन्न प्रकार के तरीकों से पानी का शोधन कर उसे साफ किया जाता है। जिससे नदी में छोड़े जाने पर उसका पानी गंदा न हो। नदियों में जलीय जीव जंतुओं का वास होता है और गंदे पानी में आक्सीजन की कमी से उनकी मौत हो जाती है। रोजाना लाखों-करोड़ों लीटर पानी के ट्रीटमेंट के बाद उसका एक बूंद भी ग्राउंड वाटर के लिए रिचार्ज नही किया जाना, वाकई सोचने का विषय है।

किस एटीपी से कितना ट्रीटमेंट
एरिया सीवेज ट्रीटमेंट एमएलडी में
राजापुर 60
सलोरी 29
नुमायाडाही 50
पोंगहट 10
कोडरा 25
नैनी वन 80
नैनी टू 42
फाफामऊ 14
झूंसी 16
कटरा 19

अभी बढ़ेगी एसटीपी की क्षमता
शहर में निकलने वाले सीवेज की मात्रा दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
अधिकारियों की माने तो जल्द ही दो नई एसटीपी चालू होने जा रही हैं। इनके टेंडर का प्रॉसेस चल रहा है।
इनमें एक राजापुर की एसटीपी 90 एमएलडी और सलोरी की एसटीपी 43 एमएलडी क्षमता की है।
इसके अलावा 50 एमएलडी क्षमता की एक एमएलडी के प्रस्ताव को शासन के पास अप्रूवल के लिए भेजा गया है।
यह सभी एसटीपी चालू होने के बाद शत प्रतिशत सीवेज का ट्रीटमेंट संभव हो सकेगा।

क्यों नदी में डाला जा रहा है ट्रीट वाटर
शहर में एसटीपी का संचालन गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई द्वारा किया जाता है। जिसका मेन उददेश्य सीवेज के पानी को यूज (पीने योग्य नही) करने के लिए बनाया जाए। अधिकारियों का कहना है कि जितना पानी खेतों की सिचाई, क्लीनिंग आदि में यूज होता है, बाकी पानी गंगा में छोड़ दिया जाता है। एग्जाम्पल के तौर पर नैनी स्थित एसटीपी से निकलने वाले 80 एमएलडी ट्रीट वाटर का एक हिस्सा इस आफिस में कई कामों में यूज होता है। इसके अलावा कुछ पानी का यूज सिचाई के लिए भी दिया जाता है। हालांकि एक बड़ा हिस्सा बह जाता है। अधिकारियों के मुताबिक नदियों में अक्सर पानी कम हो जाता है। इसलिए उसके फ्लो को बनाए रखने के लिए एसटीपी का पानी छोड़ दिया जाता है।

रिचार्ज को लेकर अपने अपने तर्क
एसटीपी के ट्रीटेड वाटर को रिचार्ज करने के लिए नाम पर पूछे गए सवाल पर विशेषज्ञों के अपने अपने व्यू हैं। भूगर्भ जल विभाग के हाइड्रोलाजिस्ट रविशंकर पटेल कहते हैं कि एसटीपी में पानी को ट्रीट करने के लिए क्लोरीन की अधिक मात्रा मिलाई जाती है। अगर इस पानी को ग्राउंड वाटर रिचार्ज करने के लिए यूज किया जाएगा तो जमीन के भीतर अपने आप क्लोरीन की मात्रा छनकर निकल जाएगी। वहीं इविवि के जियोलाजी विभाग के एचओडी प्रो। एचएन त्रिपाठी कहते हैं कि ट्रीटेड वाटर में कई तरह के केमिकल होते हैं इसलिए इसे रिचार्ज करना सही नही होगा। इस पानी को पेयजल की तरह इस्तेमाल नही किया जा सकता है।


आसान नही है डैम बनना
इविवि के प्रो। एचएन त्रिपाठी कहते हैं कि वाटर रिचार्ज के लिए डैम बनाने का प्रस्ताव तो बेहतर है लेकिन प्रयागराज के भौगोलिक दृष्टिकोण से यह आसान नही है। क्योंकि अधिकतर डैम पथरीली जमीनों पर बनाए जाते हैं लेकिन हमारे यहां की जमीन बलुई और नम है। एग्जाम्पल के तौर पर एक दस मीटर ऊंचा बांध भी बनता है तो इसका क्षेत्रफल दस किमी स्क्वायर होगा और इसका भार 100 मिलियन टन पानी के बराबर होगा। ऐसे में जगह जगह पानी का रिसाव होगा और जमीन के धंसने और गड्ढा होने की घटनाएं होंगी। जिसकी जगह बांध की मजबूती पर भी असर पड़ेगा।

हमारे पास कुल नौ एसटीपी हैं। जिसमें एक एसटीपी का संचालन नगर निगम नगरीय के द्वारा किया जा रहा है। कुल 326 एमएलडी पानी का रोजाना शोधन होता है। हमारे पास रिचार्ज का कोई इंतजाम नही है। नदियों में पानी का फ्लो बनाए रखने के लिए उसे शोधित कर बहाया जाता है।
सुरेंद्र सिंह परमार
प्रोजेक्ट मैनेजर, गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई प्रयागराज