प्रयागराज (ब्यूरो)।माहे मोहर्रम की सातवीं को 1836 में कायम किया गया दुलदुल का गश्ती जुलूस पान दरीबा स्थित इमामबाड़ा सफदर अली बेग से भोर में निकाला गया जो पूरे दिन और रात भर विभिन्न इलाक़ों में गश्त करने के उपरान्त अपने कदीमी इमामबाड़े पर पहुंच कर सम्पन्न हुआ।

187 साल पुरानी परंपरा

पानदरीबा से लगभग 187 साल से इमामबाड़ा सफदर अली बेग से निकाला जाने वाला दुलदुल का ऐतिहासिक जुलूस इस वर्ष भी अकीदत व ऐहतेराम के साथ निकला। दुलदुल जुलूस के आयोजक मिर्जा बाबर बेग, सुहैल, शमशाद, जहांगीर, सलीम, मुन्ना, माहे आलम, छोटे बाबू, मुर्तुजा अली बेग, मुज्तबा अली बेग, रिजवान, सादिक आदि चौबीस घंटों के दुलदुल के गश्ती जुलूस में सिलसिलेवार एक एक घरों में दुलदुल ले जाने क्रम में सहयोग करते रहे।

इमाम हुसैन के वफादार घोड़े ज़ुलजनाह को घरों में दूध जलेबी व भीगी चने की दाल खिलाकर अकीदत का इजहार किया। मन्नती दुलदुल पर सैकड़ों वर्षों से चली आ रही परम्परा का निर्वहन करते हुए सुन्नी समुदाय की महिलाएं भी हाथों में कटोरा और बर्तन में दूध जलेबी भिगो कर गलियों में क़तार लगाए खड़ी रहीं और जैसे ही दुलदुल पास पहुंचा भीगी आंखों से बोसा लेकर इस्तेकबाल किया और दूध जलेबी खिलाई। एक ऐसा नज़ारा भी देखने को मिला जो अपने पुरखों की परम्परा को निभाते हुए डॉ चड्ढा रोड लोकनाथ व गुड़ मंडी में हिन्दू औरतें व मर्द नंगे पांव महिलाएं सर पर पल्लू डाल कर अपने छोटे छोटे बच्चों को दुलदुल से मस्स (मत्था लगाने) करने और बोसा लेने पहुंचीं।