- अब तक कइयों ने फ्री ऑफ कास्ट ऑक्सीजन सिलेंडर देकर दिखाई इंसानियत

- हॉस्पिटल ऑक्सीजन की कमी से परेशान मरीजों के तीमारदारों ने खोज निकाला रास्ता

PRAYAGRAJ: हॉस्पिटल में ऑक्सीजन के लिए तड़पते अपनों की जिंदगी बचाने के लिए लोग क्या-क्या जतन नहीं कर रहे। आक्सीजन सिलेंडर को वह कार गराज और वेल्डिंग करने वालों से लेजाकर भरवा रहे हैं। मौत बनकर टूट रही महामारी की वजह से दांव पर लगी जिंदगी को देख गराज वेल्डिंग करने वाले भी मदद में पीछे नहीं हैं। जहां कुछ हॉस्पिटल में भर्ती व इलाज के नाम लाखों रुपये वसूले जा रहे हैं। वहीं गराज संचालक और वेल्डिंग करने वाले फ्री में खाली ही नहीं भरे हुए ऑक्सीजन सिलेंडर देकर इंसानियत को कायम करने में जुटे हैं। शहर के कई ऐसे गराज संचालक हैं जो अपना तो सिलेंडर दिए ही वह दूसरे गराज मालिकों से भी जरूरतमंदों को ऑक्सीजन दिलवा रहे हैं। किसी ने सच ही कहा था कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है। आक्सीजन सिलेंडर की जरूरत पड़ी तो लोग किसी सूरत गराज और वेल्डिंग तक पहुंचने का रास्ता खोज ही लिए।

यदि आज हम एक दूसरे के काम नहीं आए तो कब आएंगे। तीन दिन पहले मेरे पास दो लोग आए थे। वह करेली एरिया के थे। उनके मरीजों को आक्सीजन की जरूरत थी। जो हॉस्पिटल में मिल नहीं था। हमसे रुपये देकर खाली सिलेंडर की डिमांग करने लगे। चूंकि मेरे पास तीन सिलेंडर थे, मैने उन्हें दो सिलेंडर दे दिए। वह हजारों रुपये देने को तैयार थे। मगर, भाई इस मुसीबत की घड़ी में किसी की जान बच जाय। उसके आगे रुपये मायने नहीं रखते। यही सोचकर मैने बगैर रुपये के सिलेंडर दे दिए।

वाई.के। विश्वकर्मा, संचालक लोहा मैकेनिकल कारखाना खुल्दाबाद

मेरे मित्र के पिता प्राइवेट हॉस्पिटल में एडमिट थे। वहां आक्सीजन न होने की बात कहकर निकाल रहे थे। वे काफी परेशान था फोन पर रोने लगा। मुझे लगा कि मदद करनी चाहिए। मेरे पड़ोस में एक वेल्डिंग वाला है। वह सुना तो कहा कि मेरे पास खाली सिलेंडर है, नैनी ले जाकर प्लांट से आक्सीजन भरवा के दे दो। मैने ऐसा ही किया। सिलेंडर देने के लिए वे कोई रुपया नहीं लिया। अब उसके पिता की हालत नार्मल है। फिलहाल उसका सिलेंडर अभी मेरे मित्र के पिता के पास हॉस्पिटल में ही है।

पंकज कुमार, अल्लापुर

मम्फोर्डगंज के दो लोग मेरे पास आए थे। किसी ने उन्हें बताया था कि खाली ऑक्सीजन सिलेंडर मेरे पास मिल जाएगा। वे आकर खाली सिलेंडर की डिमांड करने लगे। मेरे पास सिलेंडर तो थे नहीं, लिहाजा मैं उन्हें भरा हुआ सिलेंडर दे दिया। अपना आधार कार्ड व फोन नंबर दे गए हैं। बता रहे थे कि उनका कोई करीबी रिश्तेदार झलवा में कहीं भर्ती है। वहां ऑक्सीजन तो दूर सिलेंडर तक नहीं कि लोग भरवा कर दे सकें। वह तीन हजार रुपये दे रहे थे। मैने इंकार कर दिया। इस मुसीबत में मेरी मदद से किसी की जान बच जाय इससे बड़ी दौलत और क्या होगी?

संजय प्रजापति, मालिक कार गराज

खाली आक्सीजन सिलेंडर के लिए रोज कोई न कोई आ रहा है। मेरे पास दो सिलेंडर थे। गुरुवार को मैने दो लोगों को दे दिया। अब मेरे पास भी नहीं है, जिससे मैं काम कर सकूं। काम बंद है कोई बात नहीं यदि मेरे सिलेंडर से इस वक्त किसी एक की भी जान बच गई तो बड़े पुण्य का काम होगा। यही सोच कर मैंने काम बंदकर उन दोनों को सिलेंडर दे दिए। एक तो खाली ही था, एक में कुछ ऑक्सीजन थी। वह नैनी प्लांट ले जाकर उसमें आक्सीजन भरवा कर हॉस्पिटल ले गए हैं। सिलेंडर के लिए रुपये क्या लेते, आदमी बच जाय यही बड़ी बात है।

ओम कुमार, मालिक कार गराज