प्रयागराज (ब्यूरो)।जानकारी के अभाव में आमतौर पर लोग स्किजोफ्रेनिया की चपेट में आने वाले युवाओं की सनक या भूत-प्रेत का साया समझ बैठते हैं। जबकि इसमें अपनी भावनाओं व विचारों पर मरीज़ का कोई नियंत्रण नहीं रहता। ऐसे मरीजों के परिजन कई बार झाड़-फूक कराने में लग जाते हैं जो इनकी मानसिक स्थिति को और खराब कर देते हैं। इसलिए अंधविश्वास में न पड़कर ऐसी स्थिति में मरीज को इलाज के लिए चिकित्सक के पास ले जाएं। यह बात मनोचिकित्सक डॉ। राकेश पासवान ने कही। वह बुधवार को वल्र्ड स्किजोफ्रेनिया डे पर आयोजित एक सेमिनार में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि अक्सर ओपीडी में आने वाले मरीजों की काउंसिलिंग के साथ इलाज करना पड़ता है। जिससे उनकी हालत में सुधार देखने को मिलता है।

किया गया नाटक का प्रस्तुतिकरण

इस बार स्किजोफ्रेनिया डे की थीम सामुदायिक दयालुता की शक्ति का जश्न रखा गया है। सेमिनार का आयोजन विनीता अस्पताल एवं आरएन इंस्टीट्यूट ऑफ नर्सिंग एंड पैरामेडिकल कॉलेज में किया गया। इस अवसर पर छात्रों ने नुक्कड़ नाटक का प्रस्तुतीकरण किया। इसमें उन्होंने बीमारी के के लक्षण व सही उपचार के बारे में बताया। छात्रों के प्रयास से एक लघु नाटक प्रस्तुत किया गया जिसमे स्किज़ोफ्र निया से ग्रसित व्यक्ति के साथ जानकारी के अभाव में किस तरह का व्यवहार करते हैं।

हमेशा भ्रम की स्थिति में रहता है मरीज

मंडलीय एनसीडी नोडल अधिकारी डॉ वीके मिश्रा बताया कि स्किज़ोफ्र निया का मरीज हमेशा भ्रम की स्थिति में रहता है। वह अकेले रहना और खुद से बातें करना पसंद करता है। उसे ऐसी चीजें दिखाई व सुनाई देती हैं, जो हकीकत में होती ही नहीं हैं। धीरे-धीरे उसका व्यवहार हिंसक और आक्रामक हो जाता है। यह बीमारी इस हद तक बढ़ जाती है कि व्यक्ति अपना ही दुश्मन बन जाता है। यह मानसिक बीमारी कई बार आत्महत्या का कारण बन जाती है। बीमारी का कारण आनुवंशिक, तनाव, पारिवारिक झगड़े व नशे की लत हो सकती है। नैदानिक मनोवैज्ञानिक डॉ। ईशान्या राज ने कहा कि दवाओं और मनोवैज्ञानिक चिकित्सा का संयोजन लोगों को सिजोफ्रे निया के खिलाफ लड़ाई जीतने में मदद कर सकता है। डॉ। बिंदु विश्वकर्मा ने कार्यक्रम के समापन पर सभी को धन्यवाद देते हुए कहा कि समुदाय में स्किजोफ्रे निया (मानसिक विकार) के प्रति जागरूकता लाना हमारा कर्तव्य हैं और इसे हमे पूरी निष्ठा के साथ करना होगा।