प्रयागराज ब्यूरो । हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां यहां पॉलिसी करने के बाद लोगों को कैसे परेशानी में डालती हैं? इसका एक उदाहरण शुक्रवार को सामने आया। मेडिक्लेम वैधता की डेट होने के बावजूद पीडि़ता को कंपनी पॉलिसी का लाभ नहीं दे रही थी। आंख के इलाज में लगे रुपयों को अदा करने के बाद जब वे भुगतान के लिए कंपनी में आवेदन की तो उसे टरकाया जाने लगा। इंसाफ के लिए जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग का दरवाजे पर जा पहुंची। यहां वर्ष 2018 से चल रहे इस केस में फैसला अब आ चुका है। आयोग ने पीडि़ता के पक्ष में निर्णय सुनाते हुए मय ब्याज पूरा पैसा भुगतान करने का आदेश कंपनी को दिया है।
वर्षों बाद महिला को मिला इंसाफ
कैंट के पीछे ऑकलैण्ड रोड निवासी मीनाक्षी मोहन पत्नी विशाल मोहन ने यह वाद दायर किया था। उन्होंने जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग को पूरी जानकारी दी थी। बताया था कि पति ने मेडिक्लेम पॉलिसी विपक्षी मण्डलीय प्रबंधक नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड पटेल मार्ग इलाहाबाद से कराई थी। जिसकी वैधता 30 अप्रैल 2015 से 29 अप्रैल 2016 तक की थी। उसकी आंख में दिक्कत हो गई थी। जिसका इलाज वह एलबी प्रसाद आई इंस्टीट्यूट हॉस्पिटल हैदराबाद में भर्ती होकर करवाई। इलाज में एक लाख 40 हजार 500 रुपये का बिल बना। जिसका भुगतान उन्होंने कर दिया। इसके बाद 11 अप्रैल 2016 को वह क्लेम के लिए फार्म एवं सभी कागजात लगाकर कंपनी में कीं। बावजूद इसके विपक्षी ने उनका भुगतान नहीं किया गया। कंपनी सेवा में कमी की जिससे उन्हें परेशान होना पड़ा। जबकि उनका क्लेम पॉलिसी की वैधता तिथि के अंदर का था। उनके इस केस की सुनवाई कई वर्षों तक उपभोक्ता फोरम में चलती रही। नवंबर 2024 में केस का फैसला पीडि़ता के पक्ष में आया। आयोग यानी फोरम अध्यक्ष व सदस्य ने सेवा में कमी के लिए कंपनी को फटकार भी लगाई। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग अध्यक्ष मो। इब्राहीम व सदस्य प्रकाशचंद्र त्रिपाठी सख्त आदेश पारित किया। फैसले में कहा गया है कि पीडि़ता को इलाज में खर्च हुए एक लाख 40 हजार 500 रुपये मय ब्याज के साथ कंपनी भुगतान करे। साथ ही मानसिक एवं शारीरिक क्षतिपूर्ति के रूप में पांच हजार और वाद व्यय के रूप में दो हजार भी कंपनी पीडि़ता को अदा करे।