प्रयागराज (ब्यूरो)। मूंज से बने उत्पादों की बहुत अधिक मांग है। यह देखने में आकर्षक और अलग नजर आते हैं। सरपत घास की बाहरी परत को बल्ला कहा जाता है। कांसा घास के ऊपर मूंज को लपेटकर तरह-तरह की वस्तुएं बनाते हैं। इनसे ब्रेड बॉक्स, पेन स्टैंड, टी पोस्टर, नाइट लैंप, वाल हैंगिंग और बर्तन स्टैंड आदि का निर्माण किया जाता है। अकेले इस गांव में कारीगरों के झुकाव को देखते हुए 50 लोगों को बैंकों से लोन भी दिलाया जा चुका है।
प्लास्टिक बैन के बाद बढ़ी मांग
अभी तक रोजमर्रा की घरेलू उपयोग की वस्तुएं कांच और प्लास्टिक की बनी होती थीं। लेकिन अब प्रदूषण का देखते हुए इन पर लगाम कसी जाने लगी हैं। ऐसे में हमारी पारंपरिक तरीके से बनी वस्तुओं की मंाग बढ़ रही है। मूंज से बने उत्पाद इसी कड़ी में आते हैं। सबसे अहम कि मूंज के उत्पाद हाथों की कारीगरी से तैयार होते हैं। इनके लिए किसी मशीन की जरूरत नही है। कारीगरों को ट्रेनिंग देने के साथ उन्हें टूल किट भी उपलब्ध कराई जा रही है।
शहर पश्चिमी में भी बढ़ा आकर्षण
महेवा के बाद शहर पश्चिमी एरिया में भी लोगों ने मूंज से बने उत्पाद तैयार करने में रुचि दिखानी शुरू कर दी है। हाल ही में पचास लोगों ने इसके लिए ट्रेनिंग ली है। इनको टूल किट भी मिली है। अधिकारियों का कहना है कि आने वाले समय व्यवसाय के अहम माध्यमों में मूंज शामिल हो जाए तो बडृी बात नही होगी। जिसका श्रेय महेबा गांव के कारीगरों को जाता है।
मूंज के उत्पाद तो पहले से तैयार किए जा रहे थे। लेकिन अब इसकी मांग बढ़ गई है। हमलोगों को ट्रेनिंग मिली है। दिल्ली, लखनऊ, बनारस सहित तमाम शहरों मेें हमारे सामान का निर्यात होता है। हमारे गांव में मूंज से बनी एक से बढ़कर चीजें मिल जाएंगी।
अबसार अहमद, मूंज कारीगर महेबा गांव
पहले मैंने मूंज से बने उत्पादों की ट्रेनिंग ली और अब खुद ट्रेनर बन गई हूं। बहुत से लोगों को सिखा रही हूं। ओडीओपी ने इस व्यवसाय को बढ़ाया है और हमारे गांव में बुहुत से लोग इस काम से जुड़ गए हैं।
आबदा, मूंज कारीगर महेबा गांव
मूंज एक बड़े व्यवसाय के रूप में पनप रहा है। धीरे धीरे लोग इसे अपना रहे हैं। प्रयागराज का महेवा गांव सबसे आगे चला गया है। यहां के कारीगर पूरे देश में उत्पाद सप्लाई कर रहे हैं और बेहतर रोजगार का विकल्प तलाश रहे हैं।
अजय चौरसिया, महाप्रबंधक, उद्योग विभाग प्रयागराज