प्रयागराज ब्यूरो । अगर मरीज एक बार टीबी से ठीक हो गया तो फिर उसे खतरा नही है। इस बीमारी की वजह से व्यक्ति का फेफड़ा कमजोर हो जाता है। इसलिए उसकी केयर और इलाज दोनों जरूरी है। सही दिशा में जांच होने से इलाज भी बेहतर होता है। यह बात लखनऊ के केजीएमयू के डॉ। वेद प्रकाश ने कही। वह रविवार को एमएलएन मेडिकल कॉलेज व यूपीटीबी एसोसिएशन के द्वारा आयोजित यूपीटीबीसीकॉन 2023 कॉन्फ्र ंस के दूसरे दिन बोल रहे थे। कार्यक्रम में देशभर से आए सैकड़ों डॉक्टर्स ने पल्मोनरी मेडिसिन विषय पर चर्चा की।

60 साल से अधिक के मरीज हो जाएं होशियार

लखनऊ से आए सीनियर कंसल्टेंट डॉ। रजनीश श्रीवास्तव ने बताया कि 60 साल की एज के बाद बुजुर्गों को फेफड़े संबंधी दुर्लभ बीमारी होती है। जिसे इंटरस्टीशियल लंग डिजीज कहते हैं। इसमें फेफड़े सिकुड जाते हैं और मरीज की सांस फूलती है। लोगों को इसके बारे में पता नही चलता है। डॉक्टर्स भी कई बार अस्थमा का इलाज करते हैं। इसलिए इस एज के मरीजों की बीमारी कीउचित जांच किया जाना जरूरी हे। सेमिनार में डॉ। श्रीराम सलवारजू, डॉ। आरएएस कुशवाहा , डॉ। रोबर्ट कोच ओरशन, डॉ। राजेंद्र प्रसाद ने 2025 तक क्षय उन्मूलन पर अपने विचार रखे।

पेश किए गए 86 रिसर्च पेपर

सेमिनार में पल्मोनरी मेडिसिन के क्षेत्र के रिसर्च स्कालर्स ने 86 रिसर्च प्रस्तुत कीं। इनमें से कईयों को सराहा भी गया। बेहतर रिसर्च पेपर को सम्मानित किया गया। तीन सौ अधिक डॉक्टर्स ने सेमिनार में प्रतिभाग किया। इसके पहले केजीएमयू के डॉ। सूर्यकांत ने बच्चों में होने वाल एमडीआर टीबी पर चर्चा की। डॉ। एसके कटियार ने सांस के मरीजों को नेबुलाईस करने पर चर्चा की। फेफड़े का कैंसर, खर्राटे की बीमारी व धूम्रपान से होने वाले अस्थमा पर डॉ। बीपी सिंह ने प्रकाश डाला। आयोजन समिति का नेतृत्व एमएलएन मेडिकल कॉलेज पल्मोनरी मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ। अमिताभ दास शुक्ला और सह-आयोजन सचिव डॉ। अभिषेक सिंह ने किया।

कोरोना के बाद भी आए मामले

सेमिनार में डॉक्टर्स ने बताया कि कोरोना के बाद भी ठीक होन वाले मरीजों के फेफड़ों में काफी कमजोरी देखने को मिल रही है। इसकी जांच और उचित दिशा में इलाज बेहद जरूरी है। संक्रमित होने वाले मरीजों का लगातार इलाज जारी है। कई ऐसे मरीज भी हैं जिनका आजीवन इलाज चल सकता है। कुछ ऐसा ही टीबी के मरीजों के साथ भी है।